बांग्लादेश-नेपाल के बाद अब पाकिस्तान में बवाल... बलूचिस्तान शटडाउन से बढ़ा जनता का आक्रोश, कई बड़े नेता गिरफ्तार
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर बंद का ऐलान हुआ. झोब से ग्वादर तक बाजार और हाईवे बंद रहे. सुरक्षा बलों ने कार्रवाई कर लगभग 100 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें कई बड़े दलों के नेता शामिल हैं.
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भारत के पड़ोसी देशों में इस समय हालात बेहद अशांत बने हुए हैं. पहले बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ और एक ओर नेपाल में Gen Z आंदोलन ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बड़े पैमाने पर बंद और गिरफ्तारियों ने हालात को तनावपूर्ण बना दिया है. दोनों जगह जनता का गुस्सा सरकार और प्रशासन की नीतियों के खिलाफ साफ दिखाई दे रहा है.
बलूचिस्तान में शटडाउन
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में भी आज माहौल तनावपूर्ण है. बलूचिस्तान के कई राजनीतिक दलों ने मंगलवार को बंद का आह्वान किया. इस शटडाउन का असर इतना व्यापक रहा कि क्वेटा से लेकर ग्वादर तक बड़े शहर सूने दिखाई दिए और बाजार पूरी तरह बंद रहे. बलूचिस्तान पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार झोब से ग्वादर तक हाईवे पर सन्नाटा पसरा है. राजनीतिक दलों का कहना है कि सरकार ने हाल ही में बड़े पैमाने पर रेड की. इस दौरान कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया. इन्हीं गिरफ्तारियों के खिलाफ जनता ने हड़ताल का सहारा लिया. पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने करीब 100 लोगों को हिरासत में लिया है. इनमें बलूचिस्तान नेशनल पार्टी, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ, अवामी नेशनल पार्टी, नेशनल पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के नेता शामिल हैं. गिरफ्तारी की कार्रवाई सिर्फ क्वेटा तक सीमित नहीं रही. सुराब, मास्तंग, लोरालाई, दुकी, जियारत, कलात और चमन से भी नेताओं को पकड़ा गया है. बता दें इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सैन्य संघर्ष के दौरान भी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में शहबाज सरकार के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था. जिसने इस बात की आहट दी है कि आने वाले दिनों में बांग्लादेश जैसे हालात पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हो सकते हैं जो लंबे समय से आज़ादी की मांग कर रहा है.
सैकड़ों प्रदर्शनकारी हुए गिरफ़्तार
अवामी नेशनल पार्टी का कहना है कि पुलिस ने सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें कई वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं. इसी के विरोध में बलूचिस्तान में इतना बड़ा बंद आयोजित हुआ. पार्टी नेताओं का दावा है कि बलूचिस्तान के इतिहास में पहली बार इतना सफल शटडाउन देखने को मिला है. बलूचिस्तान यकजेती कमेटी ने बयान जारी कर कहा है कि सरकार का यह ऐक्शन लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर सीधा हमला है. उनका आरोप है कि आतंकवाद से बचाने में नाकाम रहने वाली सरकार अब जनता पर ही अत्याचार कर रही है. यही वजह है कि लोग सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गए हैं. नेताओं का कहना है कि बंद का सफल आयोजन बताता है कि जनता अब सरकार के फैसलों को मानने को तैयार नहीं है. सवाल यह उठता है कि बलूचिस्तान के लोग क्या दोहरी मुश्किल में फंस चुके हैं. एक तरफ उन्हें आतंकवाद का खतरा झेलना पड़ रहा है और दूसरी तरफ स्टेट टेररिज्म यानी सरकारी दमन का सामना करना पड़ रहा है.
नेपाल में आक्रोशित युवावर्ग
नेपाल की राजधानी काठमांडू सहित कई बड़े शहरों में सोमवार से ही हिंसा का दौर जारी है. Gen Z यानी युवा पीढ़ी का यह आंदोलन धीरे-धीरे बेकाबू हो गया है. पुलिस फायरिंग में अब तक कई दर्जन लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं उपद्रवियों ने संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आवासों को आग के हवाले कर दिया है. सबसे दर्दनाक घटना उस समय हुई जब नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी घर में लगी आग में जिंदा जल गईं. इसके अलावा वित्त मंत्री को सड़कों पर दौड़ाकर मार दिया गया. यह घटनाएं नेपाल की राजनीति और लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए गहरी चोट साबित हो रही हैं. जानकार मानते हैं कि यह आंदोलन केवल नीतियों के विरोध तक सीमित नहीं है, बल्कि यह युवा पीढ़ी की निराशा और गुस्से का विस्फोट है. नेपाल लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहा है। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और आर्थिक संकट ने युवाओं के सब्र को तोड़ दिया है. यही कारण है कि आंदोलन अचानक इतना उग्र हो गया.
क्षेत्रीय स्थिरता पर असर
नेपाल और पाकिस्तान के इन घटनाक्रमों ने पूरे दक्षिण एशिया में चिंता बढ़ा दी है. भारत के लिए भी यह स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों देश भारत की सीमाओं से जुड़े हुए हैं. नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का असर सीधा भारत-नेपाल संबंधों पर पड़ सकता है. वहीं बलूचिस्तान की अशांति पाकिस्तान की सुरक्षा और आंतरिक राजनीति को और अस्थिर कर सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इन दोनों देशों में हालात जल्द नहीं सुधरे तो इसका असर क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा पर पड़ना तय है. खासतौर पर नेपाल का Gen Z आंदोलन लंबे समय तक जारी रहा तो वहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती होगी.
बताते चलें कि नेपाल और पाकिस्तान के मौजूदा हालात एक ही बात की ओर इशारा करते हैं कि जनता अब अपनी आवाज दबाने को तैयार नहीं है. चाहे वह नेपाल के युवा हों या बलूचिस्तान के नागरिक, दोनों जगह लोगों का गुस्सा उनके नेताओं और सरकार की नीतियों के खिलाफ साफ दिख रहा है.
हालांकि स्थिति नियंत्रण में लाने के लिए दोनों देशों की सरकारों के सामने बड़ा सवाल खड़ा है. क्या वे जनता के गुस्से को समझकर समाधान तलाशेंगी या फिर दमन की नीति जारी रखेंगी. जवाब जो भी हो, फिलहाल दक्षिण एशिया का यह कोना राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से गुजर रहा है.
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