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भारत के पास महाशक्ति बनने का शानदार मौका... PM मोदी को मिला पश्चिमी देशों का साथ, US के लिए आत्मघाती साबित होगा ट्रंप का टैरिफ वाला दांव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन भारत पर दबाव बढ़ाने की रणनीति अपना रहा है. हाल ही में अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने यूरोपीय देशों से भारत पर टैरिफ बढ़ाने और वाशिंगटन के साथ दबाव बनाने की अपील की. उन्होंने संकेत दिया कि भारत झुके बिना ट्रंप समझौते को तैयार नहीं होंगे. इसी बीच जानकारों का मानना है कि यह वही पल है जब भारत अपनी कूटनीति और आर्थिक ताकत के दम पर दुनिया को दिखा सकता है कि वह 21वीं सदी की महाशक्ति बनने की राह पर है.

Narendra Modi/ Donald Trump (File Photo)

अंतरराष्ट्रीय राजनीति की बदलती बिसात पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ताजा कदम खुद उनके लिए आत्मघाती साबित होता दिखाई दे रहा है. भारत पर दबाव बनाने की रणनीति ने न केवल वॉशिंगटन की साख पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर भी लेकर आया है. जानकारों का मानना है कि यह वही पल है जब भारत अपनी कूटनीति और आर्थिक ताकत के दम पर दुनिया को दिखा सकता है कि वह 21वीं सदी की सच्ची महाशक्ति बनने की राह पर है.

ट्रंप प्रशासन का भारत पर नया दबाव

पिछले 25 वर्षों से भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक निकटता लगातार गहरी होती रही है. रक्षा, व्यापार, तकनीक और कूटनीतिक मामलों में दोनों देशों के रिश्तों ने नए आयाम छुए. लेकिन अब ट्रंप प्रशासन इस रिश्ते पर पानी फेरता नजर आ रहा है. गुरुवार को अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने यूरोपीय देशों से खुले तौर पर अपील की कि वे भी भारत पर टैरिफ बढ़ाएं और नई दिल्ली पर दबाव डालें. उन्होंने यहां तक कह दिया कि, “हमें यूरोपीय साझेदारों से ज्यादा सहयोग चाहिए. वे भारत को धमकी क्यों नहीं दे रहे?”

ट्रंप प्रशासन का यह बयान साफ संकेत देता है कि वॉशिंगटन अब टकराव के रास्ते पर उतर चुका है. साथ ही, भारतीय आईटी पेशेवरों और छात्रों के लिए अहम माने जाने वाले वीज़ा नियमों को भी और कड़ा कर दिया गया है. अमेरिका का दावा है कि भारत वीजा दुरुपयोग का सबसे बड़ा स्रोत है.

अमेरिका की रणनीति पर क्यों उठ रहे सवाल 

पूर्व अमेरिकी राजनयिक एवन फाइगेनबॉम ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध को “मोदी का युद्ध” बताना हास्यास्पद है. यह दरअसल पिछले 25 सालों की मेहनत से बने अमेरिका-भारत संबंधों को तहस-नहस करने जैसा कदम है. अमेरिका के मौजूदा रूख को देखते हुए इकॉनॉमिस्ट पत्रिका ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी. उसका कहना है कि पाकिस्तान की ओर झुकाव और भारत से दूरी बनाना अमेरिका की सबसे बड़ी भूल होगी. पत्रिका के अनुसार भारत को रूसी तेल खरीदने पर दंडित करना दोहरे मापदंड का उदाहरण है. जबकि असली सवाल यह है कि अमेरिका खुद अपने हितों को कितना नुकसान पहुंचा रहा है.

भारत के लिए अवसर का क्षण

ट्रंप प्रशासन की आलोचना करने वालों का मानना है कि अमेरिका का यह रवैया भारत के लिए अवसर की खिड़की खोल रहा है. अर्थशास्त्री रिचर्ड वोल्फ ने कहा, “अगर अमेरिका भारत को अलग-थलग करेगा तो भारत अपनी निर्यात क्षमता अमेरिका से हटाकर ब्रिक्स देशों की ओर मोड़ेगा. यह कदम ब्रिक्स को और मजबूत बनाएगा और पश्चिम की कमजोरी को उजागर करेगा.” दरअसल, आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है. दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ भारत तेजी से निवेश और उत्पादन का केंद्र बन रहा है. आईटी, फार्मा, रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की क्षमता उसे वैश्विक शक्ति का दर्जा दिला सकती है.

भारत की ताकत को मजबूत कर रहे पश्चिमी देश 

अमेरिका की कठोर नीति के बीच भारत को पश्चिमी देशों से समर्थन भी मिल रहा है. यूरोप के कई देशों ने यह साफ किया है कि वे भारत को अपने रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं. जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश भारत के साथ अपने व्यापारिक और रक्षा सहयोग को और मजबूत करना चाहते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी देशों का यह झुकाव मोदी सरकार की कूटनीति की जीत है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने संतुलित भूमिका निभाई. रूस के साथ अपने रिश्ते भी कायम रखे और पश्चिमी देशों के साथ भी संवाद बनाए रखा. यही कारण है कि अब यूरोप और एशिया के नए बाजार भारत के लिए और ज्यादा अवसर खोल रहे हैं.

चीन को संतुलित करने की चुनौती

ट्रंप की नीति का एक बड़ा असर यह भी है कि अमेरिका की भारत से दूरी चीन के लिए राहत साबित हो सकती है. लेकिन भारत के लिए यह मौका है कि वह अपनी कूटनीति और सुरक्षा रणनीति से चीन को संतुलित करे. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सक्रिय भूमिका और क्वाड जैसे समूहों में उसकी भागीदारी यह संदेश देती है कि भारत किसी भी दबाव में झुकने वाला नहीं है.

निर्णायक साबित हो रहा आत्मनिर्भर भारत का कदम 

महाशक्ति बनने का सपना केवल विदेश नीति पर निर्भर नहीं करता. इसके लिए आंतरिक सुधार और आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम जरूरी हैं. मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिए घरेलू स्तर पर एक मजबूत नींव रखी है. साथ ही, वैश्विक निवेशकों का भरोसा भी भारत की ओर तेजी से बढ़ा है.

बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भारत के खिलाफ यह टकरावपूर्ण रवैया न केवल अमेरिका की साख को चोट पहुंचा रहा है बल्कि भारत के लिए अवसरों का नया दरवाजा खोल रहा है. पश्चिमी देशों का समर्थन, ब्रिक्स देशों की मजबूती और घरेलू सुधारों की रफ्तार भारत को 21वीं सदी की महाशक्ति बनने की ओर आगे बढ़ा रही है. ऐसे समय में जब अमेरिका अपनी ही गलतियों में उलझा हुआ है, भारत के पास वह सुनहरा मौका है जिसे दुनिया लंबे समय तक याद रखेगी.

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