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नदी को दो धाराओं के बीच विराजमान मंदिर की अद्भुत है कहानी, पूरी होती है हर मुराद !

CM Pushkar Singh Dhami समय समय पर उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों के बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी देते रहते हैं, इस बार उन्होंने 20 अप्रैल को नैनीताल जिले के रामनगर में स्थित गिरिजा मंदिर के बारे में जानकारी दी, जानिये कहां है ये मंदिर और कैसे पहुंच सकते हैं !

21 Apr, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
01:29 AM )
नदी को दो धाराओं के बीच विराजमान मंदिर की अद्भुत है कहानी, पूरी होती है हर मुराद !

देवभूमि उत्तराखंड को यूं ही देवों की भूमि नहीं कहा जाता है. यहां हरि के द्वार के नाम से मशहूर हरिद्वार नगरी है. तो पहाड़ों में विराजमान बाबा केदारनाथ का पवित्र धाम भी है. जहां हर साल लाखों भक्तों का सैलाब उमड़ता है. वहीं इसी देवभूमि उत्तराखंड में एक ऐसा अद्भुत मंदिर भी है जो पौराणिक नदी की दो धाराओं के बीचोंबीच स्थित है. यह मंदिर हिमालय पुत्री गर्जिया देवी के नाम पर है, जिन्हें मां पार्वती का दूसरा रूप भी माना जाता है. आज हम बात करेंगे इसी पौराणिक गर्जिया मंदिर की. जहां दर्शन-पूजन करने के लिए खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हिंदुओं से अपील की है.

एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि –"नैनीताल जिले के रामनगर क्षेत्र में स्थित गर्जिया देवी मंदिर मां पार्वती (गिरिजा) को समर्पित है. कोसी नदी के बीचों-बीच पहाड़ी टीले पर स्थित इस मंदिर के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग आते हैं. रामनगर आगमन के दौरान मां गर्जिया के दर्शन अवश्य करें."

पर्यटन को बढ़ावा देने में लगे सीएम पुष्कर सिंह धामी समय-समय पर उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों के बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी देते रहते हैं. जिससे लोगों को देवभूमि के मंदिरों के बारे में जानकारी मिल सके. और इस बार उन्होंने 20 अप्रैल को नैनीताल जिले के रामनगर में स्थित गिरिजा मंदिर के बारे में जानकारी दी.

स्कंदपुराण के मानसखंड में जिस पौराणिक नदी को कौशिकी कहा गया है, उसे आज लोग कोसी नदी के नाम से जानते हैं. और इसी पौराणिक कोसी नदी की दो धाराओं के बीच स्थित है एक पहाड़ों का टीला, जिस पर विराजमान हैं मां गिरिजा देवी, जिन्हें भक्त गर्जिया देवी भी कहते हैं. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि हजारों साल पहले एक टीला कोसी नदी में बहते हुए जा रहा था, जिस पर मां गर्जिया देवी विराजमान थीं. उस टीले पर जैसे ही बटुक भैरव की नजर पड़ी, उन्होंने तुरंत उन्हें रोक दिया. और आज भी वह टीला दो धाराओं के बीच उसी स्थान पर स्थित है, जहां बटुक भैरव ने रोका था. तब से लेकर आज तक, साल दर साल गुजरते गए और मां गर्जिया देवी की महिमा दूर-दूर तक फैलती गई.

हर साल नवरात्रि के दिनों में तो इस मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता ही है. बाकी दिनों में भी श्रद्धालु आते रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मनोकामना लेकर मां गर्जिया देवी के धाम आता है, उसकी हर मनोकामना जरूर पूरी होती है. यही वजह है कि भारत ही नहीं, विदेशों से भी श्रद्धालु इस मंदिर तक खिंचे चले आते हैं. मां गर्जिया देवी से मन्नत मांगकर बावड़ घास या चुनरी की गांठ बांधते हैं. जब मनोकामना पूरी हो जाती है, तो श्रद्धालु उस गांठ को खोलने के लिए मंदिर में आते हैं.

इतना ही नहीं, 15 साल पहले नाथ संप्रदाय से जुड़ीं रूस की संन्यासी शंबूरोबा भी इसी साल नवरात्रि के दौरान मां गर्जिया देवी के धाम आई थीं. और इसी धाम में ध्यान लगाते हुए अनोखी साधना की थी. इससे यह समझा जा सकता है कि मां गर्जिया देवी की महिमा सिर्फ भारत में ही नहीं, विदेशों तक फैली हुई है.

अगर आप भी इस पावन धाम के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको बता दें कि इस मंदिर तक पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन रामनगर है, जहां से यह मंदिर 13 किलोमीटर दूर है. और अगर टैक्सी से जाना चाहते हैं, तो नैनीताल से NH 121 के रास्ते 75 किलोमीटर की दूरी तय कर गर्जिया मंदिर पहुंच सकते हैं.

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