बिहार चुनाव से पहले 35 लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम होंगे वोटर लिस्ट से बाहर, जानिए क्या है वजह
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू किया है, जिसके तहत अब तक 35.69 लाख नाम हटाए जा चुके हैं. इनमें मृत, राज्य से बाहर स्थानांतरित और दोहराए गए मतदाताओं के नाम शामिल हैं. इस कार्रवाई पर विपक्ष ने सियासी साजिश का आरोप लगाया है, जबकि आयोग पारदर्शिता की बात कह रहा है. अब तक 83.66% मतदाता फॉर्म जमा हो चुके हैं और प्रक्रिया जारी है.
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बिहार की सियासी फिजाओं में इन दिनों एक नई सरगर्मी दिखाई दे रही है. विधानसभा चुनावों की दस्तक से पहले राज्य में मतदाता सूची को लेकर जबरदस्त हलचल मची हुई है. चुनाव आयोग ने इस बार मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) अभियान की शुरुआत की है, जिसमें वोटर लिस्ट को सत्यापन करने की प्रक्रिया ज़ोरों पर चल रही है. इस अभियान के तहत अब तक 35 लाख से अधिक नाम हटाए जाने की तैयारी है, जिससे विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है. विपक्ष का आरोप है कि यह केवल एक तकनीकी कवायद नहीं, बल्कि एक सियासी चाल भी हो सकती है.
क्यों हटाए जा रहे हैं नाम?
चुनाव आयोग की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अब तक की जांच में यह पाया गया है कि बड़ी संख्या में मतदाता या तो मृत पाए गए हैं, स्थायी रूप से राज्य से बाहर चले गए हैं, या फिर एक से अधिक जगहों पर पंजीकृत हैं. कुल 1.59% मतदाता (12.55 लाख) मृत घोषित किए गए हैं, जबकि 2.2% (17.37 लाख) स्थायी रूप से अन्य स्थानों पर स्थानांतरित हो चुके हैं. इसके अलावा 0.73% (5.76 लाख) मतदाताओं के नाम दोहराए गए हैं. इन सभी के नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं, जिससे यह संख्या 35.69 लाख को पार कर चुकी है. चुनाव आयोग के मुताबिक यह अंतिम आंकड़ा नहीं है. अब भी वोटर फॉर्म भरने की प्रक्रिया जारी है और यह संख्या आगे बढ़ सकती है. आयोग ने यह भी बताया कि अब तक कुल 83.66% मतदाताओं के फॉर्म प्राप्त हो चुके हैं, जबकि शेष 11.82% मतदाताओं के पास अब भी समय है फॉर्म जमा करने का. गणना फॉर्म भरने की अंतिम तारीख तक अभी 11 दिन बाकी हैं.
पारदर्शिता का दावा, लेकिन विपक्ष का शक
इस पुनरीक्षण अभियान को लेकर जहां आयोग ने पारदर्शिता की बात कही है, वहीं विपक्षी नेता लगातार इसकी मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उनका आरोप है कि इस बहाने सरकार कुछ खास वर्गों के मतदाताओं को जानबूझकर लिस्ट से बाहर करवा सकती है. हालांकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि "कोई भी पात्र मतदाता छूट न जाए", इसके लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं. इस अभियान की निगरानी ईसीआईनेट (ECINET) नामक नए एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से की जा रही है, जिसमें अब तक 5.74 करोड़ से अधिक फॉर्म अपलोड हो चुके हैं. यह प्लेटफॉर्म पुराने 40 से अधिक ईसीआई एप्लिकेशन को मिलाकर तैयार किया गया है, जो अब राज्य में इस पूरे अभियान का डिजिटल कनेक्शन बन चुका है.
घर-घर जाकर सत्यापन की तैयारी
आयोग ने अपने स्तर पर इस प्रक्रिया को तेज़ और सटीक बनाने के लिए एक व्यापक मैकेनिज़्म तैयार किया है. अब जल्द ही राज्यभर में एक लाख बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर तीसरे राउंड का दौरा शुरू करेंगे. उनके साथ 1.5 लाख बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) भी सहयोग करेंगे, जो हर दिन औसतन 50 गणना फॉर्म प्रमाणित कर सकेंगे. शहरी मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए, बिहार के 261 शहरी स्थानीय निकायों के 5,683 वार्डों में विशेष शिविर लगाए जा रहे हैं. इन शिविरों का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी मतदाता, खासकर शहरी इलाकों में रहने वाला, सूची से बाहर न हो जाए.
प्रवासी बिहारियों को जोड़ने की कोशिश
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि लाखों बिहारी श्रमिक और विद्यार्थी बिहार से बाहर काम या पढ़ाई के सिलसिले में रहते हैं. ऐसे में चुनाव आयोग ने उनके लिए भी खास योजना बनाई है. समाचार पत्रों, डिजिटल विज्ञापनों और व्हाट्सऐप जैसे माध्यमों के जरिए उनसे संपर्क किया जा रहा है. वे अब https://voters.eci.gov.in वेबसाइट या ईसीआईनेट ऐप के जरिए ऑनलाइन फॉर्म भर सकते हैं. इतना ही नहीं, वे दस्तावेज़ों के साथ फॉर्म अपने परिवार या स्थानीय बीएलओ को डिजिटल रूप से भी भेज सकते हैं.
बताते चलें कि बिहार में यह विशेष पुनरीक्षण अभियान चुनावी पारदर्शिता की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है. हालांकि, जिस तरह से 35 लाख से अधिक मतदाताओं को हटाने की बात सामने आई है, उससे कहीं न कहीं आम जनता और राजनीतिक दलों के मन में संदेह भी पैदा हो रहा है. ऐसे में चुनाव आयोग को चाहिए कि वह न केवल इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए, बल्कि विपक्षी दलों को भी भरोसे में ले, ताकि मतदाता सूची में बदलाव पर कोई राजनीतिक आरोप न लगे.
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