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राष्ट्र शिल्पी, देशज मुसलमानों के हितैषी, असली स्टेट्समैन...भारत के एकीकरण से भी व्यापक था सरदार पटेल का देश के लिए योगदान

आधुनिक भारत के शिल्पकार, देशज मुसलमानों, अल्पसंख्यकों के हितैषी, दूरदर्शी राजनेता और खांटी भारतीय...यानी बड़ा ही व्यापक था सरदार पटेल का व्यक्तित्व. उनकी जिंदगी, कार्यशैली और सफर को देखें तो पता चलता है कि वो ही असली स्टेट्समैन थे. उन्हें महज रियासतों के एकीकरणकर्ता के रूप में याद करना, उन्हें महज एक कार्य के सांचे में ढालना उनके योगदान का अपमान और उनके साथ अन्याय होगा. इस लेख में सरदार साहब के उन पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश है जिसे जानबूझकर छिपाया गया है. मसलन सरदार साहब को एक तबका, लेफ्ट, लिबरल समूह मुस्लिम विरोधी प्रचारित करने की कोशिश करता है, जो कि सरासर साजिश है और तथ्यात्मक रूप से गलत है- डॉ. फैयाज अहमद फैजी

पूरे भारत ने बीते दिनों आधुनिक हिंदुस्तान के शिल्पकार सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाई. यह उनके जीवन-दर्शन और दृष्टिकोण के पुनर्मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण अवसर है. उन्हें अक्सर केवल रियासतों के एकीकरणकर्ता के रूप में याद किया जाता है, जबकि उनका व्यक्तित्व और योगदान इससे कहीं अधिक और व्यापक था.

उन्हें मुस्लिम-विरोधी के रूप में चित्रित करने के प्रयासों के बावजूद, ऐतिहासिक प्रमाण पटेल को अल्पसंख्यक अधिकारों के संरक्षक और देशज पसमांदा मुसलमानों के हितैषी के रूप में स्थापित करते हैं. सरदार पटेल की कार्यशैली त्वरित, दृढ़ और न्यायप्रिय थी. वे मानते थे कि भारतीय सांप्रदायिकता की जड़ें अशराफ मुस्लिम सांप्रदायिकता में हैं और हिंदू सांप्रदायिकता उसकी प्रतिक्रिया मात्र है.

सांप्रदायिकता से निपटने में कृतसंकल्पित थे पटेल!

सांप्रदायिकता से निपटने में पटेल पूरी तरह निष्पक्ष और दृढ़ थे. उन्होंने हिंदू और सिख दंगाइयों को दंडित किया, मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित की और आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी प्रतिबंध लगाया.

मुसलमानों की रक्षा के प्रति तत्परता!

दिल्ली हिंसा के दौरान, जब सिख और राजपूत रेजिमेंटों ने मुसलमानों के प्रति पक्षपात दिखाया, तो पटेल ने उन्हें हटाकर मद्रास रेजिमेंट तैनात की, ताकि मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके. जब निज़ामुद्दीन दरगाह में भयभीत मुसलमानों ने शरण ली, तो सरदार स्वयं वहां पहुंचे और अधिकारियों को उनके संरक्षण के स्पष्ट निर्देश दिए.

उन्होंने कड़े शब्दों में कहा, “वीरों का धर्म निर्दोषों का रक्त बहाना नहीं है.” 

शासन सबका अभिभावक: पटेल

मुसलमानों को देश से निकालने की बात करने वालों को उन्होंने ‘क्रोध से पागल’ कहा और याद दिलाया कि शासन सबका अभिभावक है. मुसलमानों की रक्षा में उनकी यह तत्परता इतनी प्रभावशाली थी कि उनके धुर आलोचक भी इससे प्रभावित हुए थे.

पाकिस्तान के मुस्लिम राष्ट्र घोषित होने के बाद यह प्रश्न उठा कि क्या भारत को भी हिंदू राष्ट्र बनाया जाना चाहिए. सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस विचार को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने बी. एम. बिड़ला को लिखा, “मैं नहीं समझता कि भारत ऐसा हिंदू राज्य माना जा सकता है, जिसमें शासन का धर्म हिंदू हो. हमें यह भी याद रखना है कि यहाँ अन्य अल्पसंख्यक भी हैं, जिनकी सुरक्षा हमारा पहला दायित्व है.” पटेल का यह दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि भारत की नींव किसी धर्म पर नहीं, बल्कि समानता, न्याय और सर्वसमावेशिता जैसे सार्वभौमिक मूल्यों पर रखी गई है.

मुस्लिम अशराफ वर्ग को पहचान गए थे पटेल

पटेल भारतीय मुस्लिम नेतृत्व के अशराफ वर्ग की दोहरी राजनीति और संदिग्ध निष्ठा से भली-भांति परिचित थे. उन्होंने मौलाना आज़ाद, हिफ़जुर रहमान, सैयद महमूद, खालिकुज्जमां, जोश मलीहाबादी और कासिम रिज़वी जैसे नेताओं के ढुलमुल रवैये, मुस्लिम लीग के प्रति नरमी, और सांप्रदायिक झुकाव को देखा था. स्वतंत्रता के बाद नवाबी अशराफ वर्ग के रवैये ने उनके संदेह को और गहरा किया.

जब राष्ट्रवादी अशराफ मुसलमानों से निराश हो गए पटेल

कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी अशराफ मुसलमानों द्वारा भरोसे पर खरा न उतरने से उन्हें निराशा भी हुई थी. उदाहरण स्वरूप 1950 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की बैठक में भारतीय उम्मीदवार जगजीवन राम के विरुद्ध राजदूत सैयद अली ज़हीर द्वारा ईरान का समर्थन करना और ज़ाकिर हुसैन द्वारा जिन्ना को पत्र लिखकर पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था में सहयोग का प्रस्ताव देना. 

'दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकते मुसलमान अशराफ'

पटेल ने डॉ. सैयद महमूद और मौलाना हिफ़जुर रहमान को स्पष्ट रूप से चेताया था: "घोषणाएँ पर्याप्त नहीं हैं, उन्हें कर्म से सिद्ध करना होगा. जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया, तो आपने निंदा क्यों नहीं की? आप दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकते." 

इसके विपरीत, स्वतंत्रता सेनानी पसमांदा नेता अब्दुल कय्यूम अंसारी ने 1947 में कश्मीर पर पाक आक्रमण की न सिर्फ खुलकर निंदा की बल्कि  इस मामले में मुस्लिम समाज को सचेत करने के लिए इंडियन मुस्लिम यूथ कश्मीर फ्रंट की स्थापना भी की. सितंबर 1948 के दौरान उन्होंने हैदराबाद में रजाकारों के भारत-विरोधी विद्रोह में भारत सरकार का समर्थन करने के लिए भारतीय मुसलमानों को प्रेरित किया.

भारतीय मुसलमानों के बीच के भेद को समझते थे सरदार पटेल 

सरदार पटेल भारतीय मुसलमानों में विदेशी अशराफ और देशज पसमांदा के भेद को समझते थे, और उन्हें “साधारण मुसलमान” “गांव के मुसलमान” कह कर संबोधित करते थे. वे खेतिहर हिंदू और मुसलमान के श्रम को समान मानते थे, उन्होंने कहा था "प्रकृति धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती." पटेल ने हिंदू समाज से आग्रह किया कि मुसलमानों पर अविश्वास छोड़ें;  “अगर हम केवल उनके मुसलमान होने के कारण निष्ठावान लोगों को सताते रहेंगे, तो हमारी स्वतंत्रता व्यर्थ हो जाएगी.”

उन्होंने स्पष्ट किया, "पाकिस्तान की शरारत शहरों के मुट्ठीभर लोगों की थी; गाँव के लाखों मुसलमान निर्दोष हैं." उन्हें चिंता थी कि अपनी मजबूत गहरी जड़ों के बावजूद सामान्य मुसलमान द्विराष्ट्र सिद्धांत के भ्रम में क्यों फंस रहे हैं.

मुस्लिम लीग की काट खोज चुके थे सरदार साहब!

सरदार पटेल मुस्लिम लीग की अशरफ-केंद्रित राजनीति से परिचित थे. उन्होंने कांग्रेस को कुलीन नेताओं के बजाय साधारण, पसमांदा मुसलमानों से सीधी बात करने का सुझाव दिया. आसिम बिहारी के नेतृत्व वाली प्रथम पसमांदा आंदोलन, मोमिन कॉन्फ्रेंस ने भारत के विभाजन का विरोध करते हुए कहा था कि इसका लाभ केवल अशराफ वर्ग को होगा.

खूब हुई पटेल को मुस्लिम विरोधी साबित करने की साजिश!

यह विडंबना है कि मौलाना आज़ाद और अशराफ वर्ग के सेक्युलर-लिबरल लोगों ने पटेल को मुस्लिम-विरोधी साबित करने की मुहिम चलाई, जिसे गांधीजी ने “सत्य का उपहास” कहा था. मोरारजी देसाई ने पटेल को धार्मिक पूर्वाग्रहों से पूरी तरह मुक्त बताया था. पटेल केवल भाषणों पर निर्भर नहीं रहे, उन्होंने दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा किया, शरणार्थियों का हौसला बढ़ाया और शांति का आह्वान किया. सुचेता कृपलानी ने भी उनके मुस्लिम हितैषी प्रयासों की सराहना की है.

क्या सच में मुस्लिम विरोधी थे पटेल!

पटेल का विरोध मुसलमानों से नहीं, बल्कि उस अशराफ मुस्लिम वर्ग से था जिसकी निष्ठा संदिग्ध और राजनीतिक अवसरवादी थी. वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों के रक्षक थे, और उन्हें मुस्लिम विरोधी कहना अनुचित है. उनका विरोध अशराफ सांप्रदायिकता और तुष्टिकरण से था, न कि आम मुसलमानों से.

'अल्पसंख्यक, देशज पसमांदा मुस्लिमों के हितैषी थे सरदार पटेल'

सरदार पटेल अपने विचार, आचरण और व्यवहार से पूरी तरह पसमांदा हितैषी थे. यह बात उस समय स्पष्ट रूप से सामने आई जब कांग्रेस की अशराफ लॉबी के सर्वोच्च नेता मौलाना आजाद के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने बिहार के प्रथम पसमांदा आंदोलन के नेताओं नूर मोहम्मद और अब्दुल कयूम अंसारी को, जिन्होंने 1946 के चुनाव में मुस्लिम लीग को हराया था, बिना कांग्रेस की सदस्यता दिलवाए मंत्रिमंडल में स्थान दिलाया. यह घटना एक ओर जहां देशज पसमांदा मुसलमानों के प्रति अशराफ मुसलमानों की संकीर्ण और सामंती मानसिकता को उजागर करती है, वहीं दूसरी ओर सरदार पटेल की दृढ़ता, न्यायप्रियता और समावेशी दृष्टि को प्रमाणित करती है.

पटेल कैसे हो सकते हैं मुस्लिम विरोधी?

भारत की लगभग 85% आबादी वाले पसमांदा मुसलमानों के हितों की रक्षा करने वाला व्यक्ति मुस्लिम विरोधी कैसे हो सकता. राष्ट्रीय एकता दिवस पर उन्हें देश का भौगोलिक और भावनात्मक एकीकरण करने वाले, साथ ही देशज पसमांदा समाज को न्याय दिलाने वाले नेता के रूप में याद करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

Dr. Faiyaz Ahmad Fyzie 

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