6 CM, 16 मंत्री और 200 सांसदों ने डाला बिहार में डेरा… BJP कैसे जीतती है चुनाव? जानें बिहाइंड द सीन स्टोरी
गठबंधन के साथ तालमेल बैठाने के अलावा BJP के कौनसे वो बड़े फैक्टर हैं जो पार्टी को लगातार जीत दिला रहे हैं. जानिए
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भारतीय जनता पार्टी के बारे में कहा जाता है कि वह एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव की तैयारी करने लगती है. 14 नवंबर को बिहार के नतीजों के बाद PM मोदी ने पार्टी की इसी रणनीति की ओर इशारा किया. BJP चुनाव लड़ने की एक पूरी मशीनरी है. गठबंधन के साथ तालमेल बैठाने के अलावा BJP के कौनसे वो बड़े फैक्टर हैं जो पार्टी को लगातार जीत दिला रहे हैं. जानिए
14 नवंबर को बिहार में NDA की जीत के बाद जब PM मोदी पार्टी मुख्यालय पहुंचे तब उन्होंने कहा था, ‘गंगा जी बिहार से बहते हुए ही बंगाल तक जाती हैं. मैं पश्चिम बंगाल के लोगों को आश्वस्त करता हूं कि BJP वहां से भी जंगलराज को उखाड़ फेकेंगी.’ इस बयान का मतलब साफ था कि बिहार साध दिया अगला टारगेट पश्चिम बंगाल है. जिस पर BJP शिफ्ट हो चुकी है. वो भी अपने तय पैटर्न के साथ.
अमित शाह का वो मंत्र
बिहार चुनाव के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कार्यकर्ताओं से कहा था कि वह घर-घर जाएं, हर एक वोटर्स से संपर्क साधें. क्योंकि ये चुनाव सरकार बनाने का नहीं बल्कि न तिहाई बहुमत से ज्यादा सरकार बनाने का है. बिहार में जब विपक्ष SIR और वोट चोरी को चीख-चीखकर मुद्दा बना रहा था. उस समय BJP चुपचाप अंदरखाने अपनी तैयारी को धार दे रही थी. Micro लेवल से लेकर बड़े लेवल तक BJP के कार्यकर्ता, नेता, राज्य स्तर के मंत्री, दूसरे राज्यों के मंत्री यहां तक कि केंद्रीय मंत्री भी चुपचाप अपना काम कर रहे थे.
हर बूथ नहीं, हर वोटर तक पार्टी की पहुंच
BJP की एक खासियत है वह एक भी वोटर को हल्के में नहीं लेती है. पार्टी का टारगेट 100% का होता है. SIR की सुगबुगाहत के बीच पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को जनता का मन टटोलने का जिम्मा सौंपा. इस दौरान एक एक वोटर तक संपर्क साधा गया. नफा-नुकसान का आकलन किया गया और भरपाई कैसे करनी है इस पर काम शुरू कर दिया.
बिहार को जोन में बांटा
बिहार में जनसंपर्क ठीक तरीके से हो और कोई भी इलाका छूट न जाए. इसलिए पूरे बिहार को अलग-अलग जोन में बांट दिया गया. इसके बाद हर जोन के हिसाब से नेता चुना गया. जो अपनी टीम की जिम्मेदारी लेगा और सुनिश्चित करेगा कि जनसंपर्क तय प्लानिंग के साथ हुआ है या नहीं. इसके लिए उन नेताओं को चुना जाता है जो देश के बाकी राज्यों में भी चुनावी प्रभार संभाल चुके हैं या अलग अलग जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. कैंडिडेट आज किस इलाके में चुनाव प्रचार के लिए जाएगा, साथ में कौन-कौन जाएगा, क्या मसौदे होंगे, रूपरेखा क्या होगी? ये भी चुना हुआ नेता ही तय करता है.
BJP ने उतार दी नेताओं की फौज
बिहार चुनाव के लिए BJP ने विनोद तावड़े और धर्मेंद्र प्रधान को प्रभारी बनाया था. दोनों की जोड़ी ने सीट शेयरिंग से लेकर, गठबंधन के दलों के साथ तालमेल, प्रत्याशियों के चयन, BJP की अपनी सीटें चुनना और प्रचार जैसी मूल रणनीति को जमीन पर उतारा.
वहीं, बिहार के हर एक वोटर को साधने के लिए BJP ने अपनी पूरी फौज उतार दी. जिसमें पार्टी के चर्चित चेहरे, दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री, केंद्रीय मंत्री समेत तमाम नेताओं को छोटी से लेकर बड़ी जिम्मेदारी दी गई और इस रणनीति के सूत्रधार रहते हैं गृह मंत्री अमित शाह.
महीनों भर बिहार में टिके रहे मंत्री और बड़े नेता
बिहार में NDA की जीत के बाद एक पत्रकार अजीत अंजुम का एक पोस्ट काफी सुर्खियों में रहा. पत्रकार अजीम अंजुम को यूं तो सरकार के विरोधी माना जाता है लेकिन BJP की रणनीति को आंखों देखी उदाहरण से समझाया और चुनाव के लिए BJP की मेहनत और गंभीरता को बिंदुवार समझाया.
पहला उदाहरण( जो अजीत अंजुम ने बताया)
25 अक्टूबर को बक्सर के एक होटल में मैं अपनी टीम के साथ डिनर कर रहा था. दूसरी टेबल पर बीजेपी का फटका डाले कुछ नेता टाइप के लोग बैठे थे. उनमें से एक सज्जन बार-बार मेरी तरफ़ देख रहे थे. मैं भी उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा था. तभी वो मेरे पास आए और बोले ‘मैं सतीश गौतम, अलीगढ़ से BJP का सांसद हूं. मैंने पूछा, आप यहां ? उन्होंने कहा, मैं एक महीने से बक्सर में हूं. इस बार हम बक्सर जीतेंगे. संक्षिप्त बातचीत के बाद वो अपनी सीट पर चले गए.
अजीत अंजुम- मैं सोचने लगा कि बीजेपी कैसे चुनाव लड़ती है? इसका नमूना ये है कि अलीगढ़ का एक सांसद कई लोगों के साथ बक्सर में कैंप करके बैठा है . ज़ाहिर है और भी बहुत से लोग होंगे बक्सर आख़िर BJP जीत ही गई
उदाहरण 2
इसके बाद अजीम अंजुम ने बताया, अगले दिन वहां से आरा होते हुए पटना लौट रहा था तो सड़क के किनारे झुग्गी बस्तियों मे कुछ लोग बीजेपी के पर्चे बांटते दिखे. तभी मेरी नज़र UP योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह पर पड़ी. मैंने थोड़ा आगे जाकर गाड़ी रोकी और पलटकर देखने गया कि वाकई स्वतंत्र देव ही हैं कि कोई और है, पता चला कि स्वतंत्र देव कुछ लोगों के साथ सड़क के किनारे दुकानदारों और बस्ती वालों से बात करते चल रहे थे. जरा सोचिए, UP के एक बड़ा नेता सड़क के किनारे कुछ कार्यकर्ताओं के साथ धूल फांकता हुआ प्रचार कर रहा था. कोई कैमरा नहीं, कोई पब्लिसिटी नहीं, कोई रील नहीं. BJP की पूरी मशीनरी चुनावों में लग जाती है जो महीने-महीने चुनावी राज्यों में डेरा डालकर रायशुमारी से लेकर रणनीति और उस रणनीति को जमीन तक लाने के साथ परिणाम में तब्दील करने में जुटी रहती है.
छठ पर्व को बना दिया चुनावी प्रचार का मौका
बिहार में रैली के दौरान PM मोदी ने कहा था कि जो छठ मनाने आए हैं वोट डाल के जाएं. इसके साथ ही PM मोदी ने ज्यादातार रैलियों में विपक्ष के खिलाफ मुद्दा छठ पर्व के अपमान को मुद्दा बनाया. इसके साथ-साथ लोक आस्था के इस पर्व पर BJP नेता छठव्रतियों के बीच गए. छठ घाट में सेलिब्रेशन में शामिल हुए. यानी पॉलिटिशन के सांस्कृतिक जुड़ाव को महत्व दिया गया. इसके पीछे BJP की ये सोच भी थी कि छठ पर जो बाहर से बिहार आए हैं उन लोगों को बूथ तक ले जाना है.
वहीं, जिन सीटों पर पिछली बार BJP हारी थी वहां कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों ने घर-घर जाकर संपर्क साधा. जो तबका नाराज था उसे मनाने के लिए संवाद स्थापित किया गया. वर्ग, समुदाय के हिसाब से नेताओं को संवाद की जिम्मेदारी दी गई.
साथी दलों से मिटाई तल्खी
BJP सत्ता को सत्ता के लिए थोड़ा कॉम्प्रोमाइज भी करना पड़े तो वह गुरेज नहीं करती. इसके लिए वह सहयोगी दलों की तल्खी को समन्वय में बदलने की भी कला रखती है. लोकसभा चुनावों के बाद से ही वह अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चल रही है.
बिहार चुनाव की हलचल के बीच NDA में भी टकराहट की स्थिति पैदा हुई थी, लेकिन BJP ने इसे अंदरुनी ही सुलझा लिया और सीट शेयरिंग फॉर्मूला तैयार किया. नतीजा ये रहा कि JDU, LJPR और HAM के साथ समीकरण बेहतर रहे. कई सीटों पर आपसी कॉम्प्रोमाइज भी किया.
PM मोदी और नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ा चुनाव
BJP ने बिहार में भी PM मोदी के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ा, लेकिन नीतीश कुमार को आगे रखा. चुनावी राज्यों में पहले से ही PM मोदी के दौरे तेज हो जाते हैं और PM मोदी भी चुनावी राज्य को अपना राज्य मानकर पूरी मेहनत, निष्ठा और लोकल कैंडिडेट की तरह प्रचार में जुट जाते हैं. जैसे PM मोदी ने बिहार का गमछा ओढ़ा, भोजपुरी बोली और जनता को सीधे पार्टी से जोड़ा. ये भी BJP की चुनावी शैली का ही हिस्सा है.
विपक्ष भले ही NDA की जीत के बाद पैसे बांटने से लेकर EVM में धांधली, वोट चोरी जैसे तमाम आरोप लगाए हों, लेकिन BJP वाली मेहनत और समर्पण कोई भी दूसरी पार्टी कभी नहीं दिखा सकती. विपक्ष को समझना होगा, जमीनी स्तर पर की गई मेहनत को ज़मीनी स्तर पर की गई मेहनत से ही मात दी जा सकती है. BJP चुनावों को इतनी गंभीरता से लेती है कि विरोधी उसे समझ ही नहीं पाते. हालांकि ये बात भी सच है कि BJP जितने मानवीय और वित्तीय संसाधन किसी और पार्टी के पास नहीं है और वह इसका पूरा इस्तेमाल भी करती है.
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