Bihar Election 2025: क्या राहुल गांधी और मुकेश सहनी ने तेजस्वी को चुनाव हरवा दिया?
Bihar Chunav 2025: बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव ने 7 दलों को साथ लाकर महागठबंधन खड़ा किया, लेकिन वामदलों को छोड़ बाकी सहयोगी ज़मीन पर नदारद हैं. कांग्रेस और राहुल गांधी की उदासीनता ने तेजस्वी का कैंपेन कमजोर किया, वहीं मुकेश सहनी की उपमुख्यमंत्री वाली ज़िद ने महागठबंधन को भीतर से चोट पहुंचाई. नतीजतन, विपक्षी एकता कागज़ पर दिख रही है, जमीन पर नहीं.
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बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए सूबे में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के नाम पर 7 पार्टियों को जुटा लिया, लेकिन इन 7 दलों में से वामदल छोड़कर कौन हैं जो जमीन पर मजबूती से लड़ते दिख रहे हैं? इस रिपोर्ट में देखिए महागठबंधन में शामिल अलग- अलग दलों का हाल.
1. कांग्रेस
तेजस्वी के लिए इस चुनाव में अगर कोई सबसे बड़ा बोझ साबित हुआ है तो वो हैं राहुल गांधी. राहुल गांधी और कांग्रेस ने अनजाने में तेजस्वी यादव का पूरा कैंपेन डिरेल किया या ये रणनीति के तहत् तेजस्वी को हराना चाहते हैं, ये बहस का विषय है. लेकिन साफ़- साफ़ दिख रहा है कि राहुल गांधी का बिहार में कोई खास रुचि नहीं है.
अब ज़रा सोचिए, जिस दिन बिहार में वोटिंग हो रही है, उस दिन राहुल गांधी हरियाणा में वोट चोरी को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं. राहुल गांधी ने जो प्रेस कॉन्फ्रेंस किया वो भी अंग्रेज़ी में. अब बिहार में कितने वोटर अंग्रेज़ी सुनकर वोट देंगे, इसका बस अनुमान लगाया जा सकता है. बिहार कांग्रेस कवर करने वाले एक पत्रकार का कहना है कि राहुल गांधी दरअसल बिहार की जनता को संबोधित ही नहीं कर रहे थे। वो अंग्रेज़ी बोलकर किसी और को संबोधित कर रहे थे.
सिर्फ़ चुनावों के दौरान ही नहीं, करीब दो महीने पहले 'वोट चोरी' यात्रा के दौरान ही ये साफ़ हो गया था कि राहुल गांधी तेजस्वी के उबलते दूध में नींबू निचोड़ने आए हैं. एक बार भी राहुल गांधी ने कैंपेन के दौरान तेजस्वी के सबसे बड़े वादे 'सरकारी नौकरी' पर कुछ कहा हो तो बताएं? ऊपर से प्रधानमंत्री को 'तू तड़ाक' कर और उनकी मां को गाली देकर NDA को फायदा ही पहुंचाया है.
2. मुकेश सहनी (VIP)
कांग्रेस के बाद महागठबंधन के लिए दूसरा बोझ साबित हुए हैं मुकेश सहनी. इनकी खुद को उपमुख्यमंत्री घोषित करवाने की ज़िद ने मुसलमानों को तेजस्वी से नाराज़ कर दिया. '2.5% वाला उपमुख्यमंत्री बनेगा और 18% वाला सिर्फ़ दरी बिछाएगा' वाला narrative बिहार में मुसलमानों के बीच चर्चा का विषय है.
सीट समझौते के समय भी ये अव्यावहारिक सीटें मांगते रहे और तेजस्वी का माहौल खराब करते रहे. इन्होंने तो शुरुआत में ही कह दिया कि "महागठबंधन की तबियत ठीक नहीं है, उसका इलाज़ कराने दिल्ली जा रहे हैं"! सहनी जिन 2.5% मल्लाहों का नेता होने का दावा करते हैं, वो भी पूरी तरह इनके साथ नहीं है. मुजफ्फरपुर के पूर्व सांसद अजय सहनी, मल्लाहों के दिग्गज नेता कैप्टन जय प्रकाश निषाद मीडिया में भले कम दिख रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर उनकी पकड़ मुकेश सहनी से कम नहीं है. आखिर वे सब सांसद रह चुके हैं, सहनी खुद चुनाव नहीं लड़ते, मैदान से भागते हैं.
गौड़ा बौराम में वोटिंग से ठीक एक दिन पहले मुकेश सहनी के भाई चुनाव से हट गए, इसका भी मल्लाह मतदाताओं पर अच्छा असर नहीं हुआ. कांग्रेस और VIP के अलावा तेजस्वी यादव के अन्य सहयोगी दल जैसे झामुमो, पशुपति पारस आदि कहीं नहीं दिखते. वे सिर्फ़ नाम के लिए हैं. हां, वामपंथी दल इस लड़ाई में थोड़ा बहुत साथ दे रहे हैं, वरना ये चुनाव तो तेजस्वी के लिए वाटरलू ही साबित हो रहा है.
बता दें कि कुल मिलाकर देखा जाए तो महागठबंधन भले ही सात दलों के साथ मैदान में उतरा हो, लेकिन असल जंग तेजस्वी यादव लगभग अकेले ही लड़ते नज़र आ रहे हैं. वामदलों के अलावा बाकी सहयोगी दल न तो संगठनात्मक रूप से सक्रिय दिखे, न ही जनसमर्थन जुटा पाए. कांग्रेस और वीआईपी जैसी पार्टियों ने मदद करने के बजाय महागठबंधन की रणनीति को उलझाया ही है. ऐसे में सवाल यही है कि क्या तेजस्वी यादव अपने सहयोगियों के बोझ के बावजूद बिहार की सत्ता की राह बना पाएंगे, या फिर यह गठबंधन उनके लिए उम्मीद से ज़्यादा भारी पड़ जाएगा?
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