चोर करेंगे खजाने की रखवाली... काबुल में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को दी आतंकवाद रोकने की नसीहत, चीन ने लगाई CPEC की सुरक्षा की गुहार
अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन, तीनों देशों के विदेश मंत्री एक साथ आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने बैठे. लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यही थी कि जिन देशों को खुद या तो आतंकवाद के पनाहगाह के रूप में देखा जाता है, या जो खुद बतौर सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए जूझ रहे हैं वे आतंकवादी गतिविधियों से निपटने की रणनीति बना रहे थे.
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अगर आपसे कहें कि चोर को खजाने की रखवाली दे दी जाए तो कैसा लगेगा? बिल्कुल यही कुछ हो रहा है चीन-पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तिकड़ी के साथ. आतंकवाद का जन्मदाता, प्रश्रय और आतंकियों को दूध पिलाने वाला पाकिस्तान आज तालिबान और चीन के साथ टेररिज्म पर बैठकें कर रहा है.
दरअसल काबुल में 20 अगस्त को एक ऐसी ही बैठक हुई, जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कई सवाल खड़े कर दिए. अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन, तीनों देशों के विदेश मंत्री एक साथ आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने बैठे. लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यही थी कि जिन देशों को खुद या तो आतंकवाद के पनाहगाह के रूप में देखा जाता है, या जो खुद बतौर सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए जूझ रहे हैं वे आतंकवादी गतिविधियों से निपटने की रणनीति बना रहे थे.
काबुल में मिले अफागनिस्तान-पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्री
बैठक की मेज़बानी अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी ने की. उनके साथ चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार मौजूद थे. यह बैठक इस लिहाज से भी अहम रही कि 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पहली बार काबुल में ऐसी त्रिपक्षीय वार्ता हुई. इससे पहले इस तरह की बैठकों की मेज़बानी चीन करता रहा है.
CPEC की सुरक्षा को लेकर चीन-पाक ने डाला तालिबान पर दबाव
बैठक में पाकिस्तान और चीन ने तालिबान प्रशासन पर एक बार फिर दबाव डाला कि वह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की सुरक्षा सुनिश्चित करे और ऐसे आतंकी संगठनों पर कार्रवाई करे, जो इन परियोजनाओं के लिए खतरा हैं. खासतौर पर चीन ने ईटीआईएम (East Turkestan Islamic Movement) जैसे अलगाववादी संगठनों का जिक्र किया, जो शिनजियांग में सक्रिय हैं और जिनकी उपस्थिति अफगान सीमा के आसपास पाई जाती है.
نن په کابل کې د افغانستان، چين او پاکستان د بهرنيو چارو وزيرانو د ډيالوگ شپږمه ناسته ترسره شوه.
— Ministry of Foreign Affairs - Afghanistan (@MoFA_Afg) August 20, 2025
په دې ناسته کې د تېرو ناستو پر پرېکړو د بیاکتنې ترڅنگ د درې واړو هېوادونو ترمنځ پر سياسي، اقتصادي او ټرانزیټي برخو کې د اړيکو پر پياوړتيا ټينگار وشو. pic.twitter.com/7tMotIIOg0
आतंकवाद के जन्मदाता पाक ने लगाया अफगानिस्तान पर आरोप!
इस बैठक से पहले अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी ने दोनों देशों के समकक्षों से अलग-अलग द्विपक्षीय बैठकें भी कीं. चीन के साथ बातचीत में व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने पर ज़ोर दिया गया. मुत्ताकी ने चीन को अफगानिस्तान का भरोसेमंद व्यापारिक साझेदार बताते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच सालाना व्यापार अब एक अरब डॉलर तक पहुंच चुका है. वहीं, पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ बैठक में भी सुरक्षा ही मुख्य मुद्दा रही. इशाक डार ने साफ तौर पर नाराज़गी जताई कि अफगानिस्तान अब तक आतंकवाद से निपटने के अपने वादों को पूरा नहीं कर पाया है.
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान और चीन ने तालिबान को आतंकवाद पर कड़े कदम उठाने को कहा हो. मई में हुई पिछली त्रिपक्षीय बैठक में भी यही वादे हुए थे. तब भी पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से वादा लिया था कि वह सीमावर्ती इलाकों में आतंकियों की गतिविधियों पर लगाम लगाएगा, और चीन ने अफगान नेतृत्व से ईटीआईएम के खिलाफ एक्शन की उम्मीद जताई थी. लेकिन अब तक इन वादों पर कितना अमल हुआ है, इस पर खुद बैठक के दौरान भी सवाल उठते दिखे.
चीन की भी मंशा पर उठे सवाल!
इस पूरी कूटनीतिक कवायद के बीच कुछ बुनियादी सवाल भी खड़े होते हैं. क्या तालिबान वास्तव में उन संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करेगा जिनके साथ उसका दशकों पुराना रिश्ता रहा है? क्या पाकिस्तान, जो खुद कई आतंकी संगठनों को समर्थन देने के आरोपों से घिरा है, तालिबान से ईमानदार कार्रवाई की उम्मीद कर सकता है? और क्या चीन केवल अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा तक सीमित रहेगा या वह अफगानिस्तान की स्थिरता में दीर्घकालिक भूमिका निभाना चाहता है?
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काबुल में बैठी यह तिकड़ी एक ओर जहां अंतरराष्ट्रीय मंच पर तालिबान को वैधता देने की दिशा में एक कदम मानी जा सकती है, वहीं दूसरी ओर यह भी बताती है कि क्षेत्रीय शक्तियां अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष को कैसे इस्तेमाल करती हैं. अफगानिस्तान की ज़मीन एक बार फिर भू-राजनीतिक सौदेबाज़ी का केंद्र बनती दिख रही है, जहां आतंकवाद पर चर्चा तो हो रही है, लेकिन समाधान अब भी सवालों के घेरे में है.
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