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‘कट्टर वामपंथ, धुर दक्षिणपंथ मजबूरी’ शशि थरूर ने क्यों बताया वाजपेयी और सरदार पटेल जैसे नेताओं को देश की जरूरत

धुर दक्षिणपंथी और धुर वामपंथ की राजनीति हर दिन तेज होती जा रही है. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस तरह की विचारधार को देश के लिए खतरनाक माना है. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल का जिक्र कर बड़ी बात कह दी.

10 Oct, 2025
( Updated: 10 Oct, 2025
01:25 AM )
‘कट्टर वामपंथ, धुर दक्षिणपंथ मजबूरी’ शशि थरूर ने क्यों बताया वाजपेयी और सरदार पटेल जैसे नेताओं को देश की जरूरत

लेफ्ट या राइट, धुर दक्षिणपंथी या धुर वामपंथी. मौजूदा दौर में देश की राजनीति दो विचारधाराओं के इर्द गिर्द ही घूम रही है. जहां तीसरी विचारधारा की कोई जगह नहीं है. धुर दक्षिणपंथी और धुर वामपंथ की राजनीति हर दिन तेज होती जा रही है. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस तरह की विचारधार को देश के लिए खतरनाक माना है. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल का जिक्र कर बड़ी बात कह दी. 

शशि थरूर ने राजनीति में विचारधारा के बैलेंस को लेकर इंडियन एक्सप्रेस में गंभीर लेख लिखा है. जिसका शीर्षक है,‘सेंट्रिस्ट कैन बी रेडिकल‘. जिसमें शशि थरूर के देश के लिए धुर दक्षिणपंथ और कट्टर वामपंथ को गंभीर और ‘रैडिकल सेंट्रिज्म‘ यानी ‘कट्टरपंथी मध्यमार्गी‘ को जरूरी बताया है. 

शशि थरूर ने योगेंद्र यादव का उदाहरण क्यों दिया? 

शशि थरूर ने इस लेख में आजादी से अब तक की राजनीतिक विचारधारा का जिक्र किया. यहां वामपंथ का जिक्र करते हुए उन्होंने योगेंद्र यादव का जिक्र किया तो दक्षिणपंथ के लिए राम माधव का. थरूर ने कहा, एक तरफ नया वामपंथ है, जिसके समर्थक योगेंद्र यादव जैसे नेता हैं जो वंचित जातियों और वर्गों की शिकायतों पर आधारित राजनीति की वकालत करते हैं. दूसरी ओर, 
दक्षिणपंथ का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है, जिसे राम माधव जैसे विचारक हिंदुत्व के मूल्यों और सभ्यतागत गौरव में भारत की पहचान को स्थापित करने की बात करते हैं.

‘भारत दो विचारधाराओं के बीच मजबूर’

शशि थरूर ने कहा कि, वामपंथ और दक्षिणपंथ दोनों पक्षों की अपनी अपनी आकर्षित कथाएं और दलील हैं, लेकिन क्या भारत इन दो ध्रुवों के बीच झूलने को मजबूर है? या फिर इसका तीसरा रास्ता है. इस तीसरे रास्ते की व्याख्या करते हुए थरूर ने कहा, तीसरे रास्ते को रूप में रैडिकल सेंट्रिज्म (मध्यमार्गी कट्टरपंथी) है. 

इसमें शशि थरूर ने दोनों विचारधारों की ताकतों को शामिल किया है और एक पक्ष की बात को खारिज किया है. उन्होंने कहा, ‘रैडिकल सेंट्रिज्म‘ एक गंभीर विचारधारा है और इसमें बहुलवाद को मिटाए बिना पहचान स्थापित जा सकता है. समता को छोडे़ बिना विकास के रास्ते पर बढ़ा जा सकता है. खुलेपन का विरोध किए बिना सभ्यता का सम्मान किया जा सकता है. एकरूपता को थोपे बिना एकता कायम की जा सकती है.

शशि थरूर ने किया सरदार पटेल और नेहरू का जिक्र 

शशि थरूर ने ‘रैडिकल सेंट्रिज्म‘ के लिए जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल, सी. राजगोपालाचारी ‘राजाजी‘ और बीआर अंबेडकर जैसे नेताओं का जिक्र किया. उन्होंने कहा, इनकी विचारधारा वामपंथ की नैतिक स्पष्टता और दक्षिणपंथ के सांस्कृतिक आत्मविश्वास के बीच किसी को चुनने को विवश नहीं करती. उनके विचार एक सुसंगत, भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण में शामिल करना चाहती है.

‘राष्ट्रवाद में जनता को अंधा न करें’

शशि थरूर ने अपने लेख में जवाहरलाल नेहरू के भारत को देखने के नजरिए को शानदार बताया. उन्होंने लिखा, नेहरू ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, समावेशी लोकतंत्र के रूप में देखा जो शानदार था, लेकिन ‘रैडिकल सेंट्रिज्म‘ को इससे आगे जाना होगा. उन्होंने सरदार पटेल का जिक्र करते हुए कहा, उनका मजबूत राष्ट्रवाद व्यावहारिकता और एकता में निहित था, न कि सांस्कृतिक सर्वोच्चता में. भारत को एक ऐसे राष्ट्रवाद की जरूरत है जो एकजुट करे, न कि जनता को अंधा करे.

'अटल बिहारी वाजपेयी की सहमति का उदाहरण'

शशि थरूर आगे अपने लेख में लिखते हैं, ध्रुवीकरण के इस युग में सहमति निर्माण को अक्सर कमजोरी माना जाता है, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने दिखाया कि सहमति ताकत का साधन है. थरूर ने कहा, उनकी पार्टी के भीतर और बाहर की आवाजों को एक साथ लाने की उनकी क्षमता केवल राजनीतिक कौशल नहीं थी. यह लोकतांत्रिक बुद्धिमत्ता थी. हमारी कटु ध्रुवीकृत राजनीति में ‘रैडिकल सेंट्रिज्म‘ की इस भावना को फिर से लाना होगा और बातचीत को प्राथमिकता देनी होगी. 

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थरूर ने कहा, मजबूत और जवाबदेह संस्थान बनाने होंगे और इसे यह स्वीकार करना होगा कि शासन एक शून्य-जमा खेल नहीं है. यह एक साझा कोशिश है. ‘रैडिकल सेंट्रिज्म‘ को सामाजिक न्याय को अपने मूल में रखना होगा. अंबेडकर की उत्पीड़ितों के अधिकारों की भावुक वकालत को महत्व देना होगा. कुल मिलाकर शशि थरूर ने आज की राजनीति और विचारधारा को एक पक्षीय करार दिया. उन्होंने वामपंथ और दक्षिणपंथ दोनों को खतरनाक मानते हुए. बीच का रास्ता यानी ‘रैडिकल सेंट्रिज्म‘ का रास्ता निकाला. 

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