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राहुल गांधी ने बताया बाइक से भारी क्यों होती है कार... BJP ने ली मौज, कहा- अद्भुत इंजीनियरिंग ज्ञान

राहुल गांधी दक्षिण अमेरिका दौरे पर कोलंबिया के ईआईए विश्वविद्यालय में छात्रों को सत्ता के विकेंद्रीकरण का उदाहरण देते हुए कार और मोटरसाइकिल के इंजन की तुलना के जरिए समझा रहे हैं. उन्होंने इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को शक्ति के बंटवारे का प्रतीक बताया. राहुल गांधी के संबोधन का वीडियो शेयर करते हुए बीजेपी नेता ने चुटकी ली है.

04 Oct, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
10:00 AM )
राहुल गांधी ने बताया बाइक से भारी क्यों होती है कार... BJP ने ली मौज, कहा- अद्भुत इंजीनियरिंग ज्ञान
Rahul Gandhi (File Photo)

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों दक्षिण अमेरिका के दौरे पर हैं. उनकी इस यात्रा के दौरान दिया गया एक लेक्चर इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब चर्चा बटोर रहा है. दरअसल राहुल गांधी ने कोलंबिया के मेडेलिन शहर स्थित ईआईए विश्वविद्यालय में एक सेमिनार को संबोधित किया. वहां उन्होंने छात्रों के सामने सत्ता के विकेंद्रीकरण यानी डिसेंट्रलाइजेशन ऑफ पावर को समझाने के लिए एक बेहद अनोखा उदाहरण रखा. इसको लेकर बीजेपी ने राहुल गांधी की चुटकी लेते हुए कहा कि इनको अद्भुत इंजीनियरिंग ज्ञान है. 

सेमिनार को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने छात्रों से सवाल करते हुए कहा कि जब कार में सिर्फ एक यात्री चलता है तो उसके लिए लगभग 3,000 किलो मेटल की जरूरत क्यों होती है. वहीं दूसरी ओर एक मोटरसाइकिल महज 100 किलो मेटल से बनी होती है और वह दो यात्रियों को आसानी से ले जा सकती है. आखिर यह अंतर क्यों है.

क्या था राहुल गांधी का तर्क?

राहुल गांधी तर्क था कि इस सवाल का जवाब केवल वाहन की बॉडी या आकार में नहीं, बल्कि उसके इंजन में छिपा है. राहुल गांधी ने छात्रों से कहा कि कार का इंजन बेहद भारी होता है और दुर्घटना के समय यह इंजन टक्कर खाकर यात्री की जान ले सकता है. इसी वजह से कार को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि इंजन नुकसान न पहुंचा सके. जबकि मोटरसाइकिल में इंजन हल्का और अलग तरीके से जुड़ा होता है, इसलिए टक्कर के समय वह अलग हो सकता है और जान का खतरा उतना बड़ा नहीं होता.

इलेक्ट्रिक वाहनों का क्यों दिया उदाहरण 

राहुल गांधी ने इस चर्चा को इलेक्ट्रिक व्हीकल्स से जोड़ते हुए कहा कि यही कारण है कि इलेक्ट्रिक मोटर भविष्य का समाधान है. क्योंकि इलेक्ट्रिक मोटर को कार में कहीं भी फिट किया जा सकता है. यह भारी इंजन की तरह एक ही जगह केंद्रित नहीं होती. उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को डिसेंट्रलाइजेशन ऑफ पावर यानी सत्ता के विकेंद्रीकरण से समझा जा सकता है. जैसे सत्ता यदि सिर्फ एक हाथ में केंद्रित होगी तो खतरा अधिक होगा. लेकिन अगर सत्ता का वितरण हो जाएगा तो नुकसान का जोखिम कम होगा. राहुल गांधी का यह उदाहरण छात्रों को समझाने के लिए था कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी केवल तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि यह शक्ति के बंटवारे की तरह है.

बीजेपी ने कसा तंज 

राहुल गांधी के इस लेक्चर का वीडियो सोशल मीडिया पर आते ही वायरल हो गया. उनके समर्थकों ने इसे ज्ञानवर्धक और रोचक बताया, वहीं विरोधियों ने तंज कसना शुरू कर दिया. बीजेपी ने इस वीडियो को पकड़कर राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि हार्ले-डेविडसन से लेकर टोयोटा और फोर्ड तक के इंजीनियर राहुल गांधी के इस ‘अद्भुत इंजीनियरिंग ज्ञान’ को सुनकर हैरान होंगे. उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि ऐसा ज्ञान सुनकर तो दुनिया भर के इंजीनियर अपनी छाती पीट रहे होंगे. सुधांशु त्रिवेदी ने आगे कहा कि कांग्रेस में पी चिदंबरम, अभिषेक मनु सिंघवी, शशि थरूर, मनीष तिवारी और जयराम रमेश जैसे विद्वान लोग मौजूद हैं. यहां तक कि सैम पित्रोदा को भी कांग्रेस का इंटेलेक्चुअल माना जाता है. इसके बावजूद विदेशी विश्वविद्यालय राहुल गांधी को ही लेक्चर देने के लिए क्यों बुलाते हैं, यह समझ से परे है.

राजनीतिक संदेश देने की कोशिश 

जानकारों की माने तों राहुल गांधी का यह उदाहरण सिर्फ तकनीकी विषय तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक संदेश भी छिपा था. उन्होंने सत्ता के केंद्रीकरण को कार के भारी इंजन से जोड़ा और यह बताया कि कैसे एक जगह पर शक्ति का अधिक बोझ खतरा बन सकता है. वहीं सत्ता का वितरण या विकेंद्रीकरण लोकतंत्र को सुरक्षित और प्रभावी बना सकता है. राहुल गांधी पहले भी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान छात्रों से सीधे संवाद करते रहे हैं. कई बार उनकी बातें चर्चा और विवाद दोनों का कारण बनी हैं. इस बार भी कुछ लोगों को उनका उदाहरण बेहद दिलचस्प लगा, जबकि राजनीतिक विरोधियों ने इसे मज़ाक बनाने का अवसर मान लिया.

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बताते चलें कि कुल मिलाकर राहुल गांधी का यह लेक्चर सिर्फ एक तकनीकी उदाहरण नहीं था, बल्कि इसके जरिए उन्होंने सत्ता के विकेंद्रीकरण और लोकतांत्रिक ढांचे की अहमियत समझाने की कोशिश की. अब यह देखने वाली बात होगी कि उनका यह संदेश युवाओं और राजनीतिक माहौल में कितना असर छोड़ पाता है.

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