कहां हो बेटा… मां की वो पुकार जिसे दरकिनार कर मारा गया माडवी हिड़मा, तय हो गई थी आखिरी तारीख
जिस नक्सली पर एक करोड़ का ईनाम है डिप्टी सीएम विजय शर्मा उसके इलाके में बाइक से गए. वहां कोई एक्शन नहीं बल्कि मानवीय पहल शुरू की और हिड़मा को बचने का एक रास्ता दिखाया.
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छत्तीसगढ़ के जंगलों से देश को दहलाने वाले नक्सली टॉप कमांडर माडवी हिड़मा का अंत हो गया है. सुरक्षाबलों ने छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश बॉर्डर पर मरेडमिल्ली के जंगलों में हुए ऑपरेशन में हिड़मा और उसकी पत्नी रजक्का मार गिराया. हिड़मा जिंदा होता अगर वह अपनी मांग की एक बात मान लेता. वो बात जो उसके खात्मे की स्क्रिप्ट को भी मिटा सकती थी. क्या है पूरी कहानी जानते हैं.
11 नवंबर को छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने हिडमा की मां मडवी पुंजी से पूर्ववर्ती गांव में मुलाकात की थी. डिप्टी CM से मुलाकात के बाद हिडमा की मां ने बेटे से एक भावुक अपील की थी. उन्होंने बेटे से कहा था, ‘कहां हो बेटा? घर लौट आओ. सरेंडर कर दो.’
उस दिन मां की गुहार मान लेता तो शायद हिड़मा आज जिंदा होता, लेकिन हथियार घुमाने को कला मानना, दहशत फैलाने को आदत बना लेने वाला हिड़मा कहां मानने वाला था. मां की वो पुकार हिड़मा के लिए जीवनदान बन सकती थी ये ही बात उसे समझ नहीं आई और सुरक्षाबलों ने उसका काम तमाम कर दिया.
डिप्टी CM ने हिड़मा की मां के साथ खाया खाना
जिस नक्सली पर एक करोड़ का ईनाम है डिप्टी सीएम विजय शर्मा उसके इलाके में बाइक से गए. वहां कोई एक्शन नहीं बल्कि मानवीय पहल शुरू की. नक्सलियों को मुख्य धारा में लाने की कोशिश में जुटे. विजय शर्मा ने डिड़मा की मां के साथ खाना खाया और बात की. इस दौरान विजय शर्मा ने मडवी पूंजी से कहा था, हिंसा का अब कोई मतलब नहीं है, बेटे को वापस लौटना ही होगा. आत्मसमर्पण ही एकमात्र सही रास्ता है.
डिप्टी CM से मुलाकात के बाद मडवी पुंजी ने बेटे हिड़मा से कांपती आवाज में वापस आने की गुहार लगाई. उन्होंने कहा, ‘तुम कहां हो, बेटा, मैं तुम्हें आने को कह रही हूं. हम घर पर कमाएंगे और खाएंगे. वापस आओ, अपने लोगों के साथ रहो.’
गद्दारी के डर से हिड़मा ने नहीं किया सरेंडर!
कहा जा रहा है कि हिड़मा को अपने अंजाम का अंदाजा हो चुका था, लेकिन वह, इसलिए सरेंडर नहीं कर रहा था क्योंकि उसे गद्दार कहे जाने का डर सता रहा था. आखिरकार सुरक्षाबलों ने उसे उसके ही तरीके से घेरकर मार गिराया.
माडवी हिड़मा देखने में भले ही दुबला-पतला लगता था लेकिन बिजली की गति जितना फुर्तीला था. जो पलक झपकते ही मंसूबे पूरे कर फरार हो जाता था. जो जंगल के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था. पहाड़ी रास्ते भी उसे सुगम लगते थे, गुरिल्ला टैक्टिस और करीब से हमला उसकी खासियत थी. हिड़मा को घोस्ट कमांडर भी कहा जाता था. छोटे बड़े नक्सली हमलों का वह सबसे क्रूर चेहरा था. जिसने सुरक्षाबलों से लेकर, खुफिया तंत्र और राजतंत्र सबको अपनी उंगली पर नचा रखा था. आखिरकार सुरक्षा तंत्र ने हिड़मा के अभेद किले को भेद ही दिया. छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश बॉर्डर पर मरेडमिल्ली जंगल में हुए एनकाउंटर में देश का सबसे खतरनाक नक्सल कमांडर हिड़मा मारा गया. उसके साथ-साथ राजे उर्फ रजक्का और 4 बड़े नक्सलियों को भी ढेर कर दिया गया है.
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