सियासत की अच्छी बात या नए समीकरण, क्या कहती है सिंधिया-दिग्विजय की ये मुलाकात?
Jyotiraditya Scindia और Digvijay Singh की इस मुलाक़ात पर सबकी निगाहें टिक गईं…मीडिया के कैमरे दोनों की ओर घूम गए…दिग्विजय सिंह के लिए केंद्रीय मंत्री सिंधिया का ये सम्मान देख लोग उनकी तारीफ़ कर रहे हैं इस तस्वीर को राजनीति का सबसे सुखद पहलू माना जा रहा है…लेकिन Madhya Pradesh की सियासत में नई अटकलों का बाज़ार भी गर्म हो गया
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जिंदगी के लुत्फ़ के लिए इश्क़ ही सब कुछ नहीं होता…कभी कभी थोड़ी मुखालफत भी ज़रूरी है…कैफ़ भोपाली का ये शेर राजनेताओं पर भी सटीक बैठता है…यहां दोस्त कब बैरी हो जाएं…और बैरी कब दोस्त बन जाएं…कुछ नहीं कहा जा सकता…मध्य प्रदेश के सियासी गलियारों से भी ऐसी ही तस्वीरें आईं…जिसने न केवल नई अटकलों को जन्म दे दिया बल्कि पांच साल पुराने घटनाक्रम को भी ज़िंदा कर दिया…बात हो रही हैं मध्य प्रदेश के दो बड़े सियासी चेहरे दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की…
स्टेज से उतरे…हाथ जोड़े…फिर अपने साथ खींचकर ले गए...कुछ इस तरह मिले दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया…एक साथ…एक मंच पर आए दो ऐसे नेता जिनकी सियासी राहें पांच साल पहले जुदा हो गई थीं…ये नजारा देख हर कोई हैरान रह गया…इस तस्वीर के पीछे की कहानी क्या है और क्यों सुर्खियों में छाई है दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया की ये ख़ास मुलाक़ात…चलिए जानते हैं…
दरअसल, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राजधानी भोपाल में एक निजी कार्यक्रम में शामिल हुए थे…कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के पूर्व CM और कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह अपनी पत्नी के साथ पहले से मौजूद थे…सिंधिया कार्यक्रम के चीफ़ गेस्ट थे इसलिए वह सीधे मंच पर जाकर बैठ गए…तभी उनकी नजर सामने की ओर कुर्सी पर बैठे दिग्विजय सिंह पर पड़ीं…सिंधिया तुरंत मंच से उतरे और सीधे दिग्विजय सिंह के पास पहुंच गए…सिंधिया उनसे हाथ मिलाते हैं फिर उनकी पत्नी के सामने हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं…इस दौरान सिंधिया…दिग्विजय सिंह से ये कहते हुए भी सुनाई देते हैं कि सॉरी मैं आपको देख नहीं पाया…और फिर उन्हें ज़बरदस्ती खींचकर अपने साथ स्टेज पर ले जाते हैं
सिंधिया और दिग्विजय सिंह की इस मुलाक़ात पर सबकी निगाहें टिक गईं…मीडिया के कैमरे दोनों की ओर घूम गए…दिग्विजय सिंह के लिए केंद्रीय मंत्री सिंधिया का ये सम्मान देख लोग उनकी तारीफ़ कर रहे हैं इस तस्वीर को राजनीति का सबसे सुखद पहलू माना जा रहा है…लेकिन मध्य प्रदेश की सियासत में नई अटकलों का बाज़ार भी गर्म हो गया…नए समीकरणों की सुगबुगाहट तेज़ हो गई…नए क़यास तेज़ होने लगे…क्योंकि मध्य प्रदेश की राजनीति में पांच साल बाद ऐसा नजारा दिखा है…जब ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह एक मंच पर एक साथ दिखें हैं…वो भी इतनी मोहब्बत के साथ…
साल 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह की राहें जुदा हो गई थीं…जब सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था, सिंधिया अपने साथ कांग्रेस के 22 विधायक भी ले गए और कमलनाथ सरकार गिर गई…सत्ता में फिर से BJP की वापसी हुई और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने…उस समय दिग्विजय सिंह खुलकर सिंधिया पर हमलावर थे…जवाब में सिंधिया भी उन पर वार करते रहे…
लेकिन पांच साल बाद आईं इन तस्वीरों ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया…वो ये कि क्या सिंधिया और दिग्विजय की ये करीबी नए समीकरण बनाएगी ? क्या ये सिंधिया का सॉफ़्ट दांव है ?
हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने बिना नाम लिए सिंधिया पर टिप्पणी की थी..तोमर ने कहा था कि, कुछ नेता क्रेडिट लेने में लगे हैं कि हमनें काम करवाया है..इस बीच गुटबाजी की भी ख़बरें आईं…ऐसे में माना जा रहा है ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में इस समय सिंधिया के लिए माहौल पूरी तरह सहज नहीं है…दिग्विजय सिंह का गढ़ राघौगढ़ कभी ग्वालियर राजघराने के ही अधीन था…दिग्विजय ‘राजा साहब’ कहलाते हैं, जबकि सिंधिया को ग्वालियर का ‘महाराज’ कहा जाता है…राजनीतिक तौर पर ये दोनों घराने ही एक दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं…लेकिन इस बार जो तस्वीर सामने आई है वो अदावतों की दीवार को तोड़ नई नींव डाल रही है…चर्चा होने लगी कि क्या यह किसी नई सियासी बिसात की शुरुआत है ? या सिर्फ एक शिष्टाचार भेंट ?
यहां गौर करने वाली बात एक और है…कुछ महीने पहले ही दिग्विजय सिंह ने क़सम खाई थी कि वह मंच पर नहीं बैठेंगे…उनका कहना था कि मंच की राजनीति खत्म होनी चाहिए और वे केवल अपनी बारी आने पर ही मंच पर जाएंगे, अन्यथा आमजनों के बीच बैठेंगे…लेकिन सिंधिया के आग्रह पर वह मंच पर दिग्गजों के साथ बैठे दिखे…
इसके बाद चर्चा होने लगी कि क्या दिग्विजय की क़सम टूट गई ? क्या सिंधिया ने दिग्विजय का दिल जीत लिया…?
वैसे राजनीति में नए समीकरण बनना बिगड़ना कोई नई बात नहीं है…मंच पर जो साथ दिखते हैं जरूरी नहीं वो साथ चलें…राजनीति में तस्वीरें अक्सर वो कह जाती हैं, जो बयान नहीं कह पाते..तो क्या ये तस्वीर 2028 के सियासी गठजोड़ की बुनियाद है ? या सिर्फ इत्तेफाक ? क्या ये दोस्ती वाकई महज़ सम्मान है ? या राजनीतिक ज़रूरत ? बहरहाल सवालों का जवाब तो समय के साथ ही मिलेगा ? वजह जो भी हो सत्ता के शोर के बीच ऐसे मोमेंट हमेशा सुकून देते रहे हैं.
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