संसद में सांस्कृतिक विरासत की गूंज, सरकार के इस कदम से दिखेगी जगन्नाथ रथयात्रा की झलक!
पुरी मंदिर समिति ने बताया कि, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला हाल ही में पुरी दौरे पर गए थे. मंदिर समिति की तरफ से उनको यह प्रस्ताव दिया गया. जिसे स्वीकार भी कर लिया गया. संसद में लगने वाले तीन पहिए भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथों से निकाले जाएंगे.
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देश की संसद लोकतंत्र के साथ-साथ संस्कृति का प्रतीक भी बनती जा रही है. सेंगोल के बाद संसद में भारतीय संस्कृति की एक और धरोहर को सजाया जाएगा. संसद परिसर में पुरी रथ यात्रा के तीन पहिए लगाए जाएंगे. पुरी जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने इसकी पुष्टि की है. ये फैसला लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के पुरी दौरे के बाद लिया गया है
पुरी मंदिर समिति ने बताया कि, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला हाल ही में पुरी दौरे पर गए थे. मंदिर समिति की तरफ से उनको यह प्रस्ताव दिया गया. ओम बिरला ने ये प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया. संसद में लगने वाले तीन पहिए भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथों से निकाले जाएंगे. पहला रथ भगवान जगन्नाथ का है इस रथ को नंदीघोष कहा जाता है. वहीं, देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन और भगवान बलभद्र के रथ तालध्वज कहा जाता है. इन तीनों रथों का एक एक पहिया संसद में रखने के लिए दिल्ली भेजा जाएगा. जो संसद में ओडिशा की संस्कृति और विरासत के स्थायी प्रतीक के तौर पर रखे जाएंगे.
सेंगोल के बाद विरासत की दूसरी निशानी
इससे पहले साल 2023 में संसद में सेंगोल लगाया गया था. लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के बग़ल में इसे रखा गया था. सेंगोल को राजदंड भी कहा जाता है. अंग्रेजों ने 14 अगस्त 1947 की रात पंडित जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल सौंपी थी. सेंगोल के बाद भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के पहिए संसद में सजने वाली दूसरी सांस्कृतिक विरासत है.
रथयात्रा के बाद अलग हो जाते हैं पहिए
ओडिशा के पुरी में हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है. भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के रथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं. रथ यात्रा के बाद, तीनों रथों के पहियों को अलग कर दिया जाता है. कुछ ख़ास पार्ट्स को छोड़कर हर साल रथों में नई लकड़ी लगाई जाती है. पहिए समेत रथों के कई पुर्ज़ों को निकालकर गोदाम में रख दिया जाता है.
200 से ज्यादा कारीगर तैयार करते हैं रथ
- 45 फीट ऊंचे तीनों रथ 58 दिनों में तैयार होते हैं
- 200 कारीगर इन रथों को तैयार करते हैं
- 5 तरह की खास लकड़ियों से तैयार होते हैं रथ
- लकड़ी काटने से पहले पेड़ की पूजा की जाती है
- इन रथों का वजन 200 टन से ज्यादा होता है
संसद में लगे ये पहिए सिर्फ लकड़ी के पहिए नहीं होंगे, बल्कि भारत की आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक होंगे. रथयात्रा को दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में गिना जाता है. यह यात्रा समानता, आस्था और एकता का संदेश देती है. जगन्नाथ की रथयात्रा में राजा और आमजन एक ही रस्सी खींचते हैं.
9 दिन तक चलती है जगन्नाथ रथयात्रा
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 9 दिन तक चलती है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं जहां उनकी मौसी का घर है. वहां कुछ दिन आराम के बाद वापस श्रीराम मंदिर लौट आते हैं. वापसी की यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है. इस यात्रा में देश विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं
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