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कारों का धुआं बन रहा दिमाग़ का दुश्मन! बढ़ सकता है डिमेंशिया का खतरा, जानिए इसका समाधान

वायु प्रदूषण सिर्फ सांसों को नहीं, दिमाग को भी नुकसान पहुंचा रहा है. नई रिसर्च में सामने आया कि कारों के धुएं और शहरों की जहरीली हवा से डिमेंशिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है. क्या आप भी इस खतरे से अंजान हैं? अब जानिए सच्चाई.

25 Jul, 2025
( Updated: 25 Jul, 2025
08:54 PM )
कारों का धुआं बन रहा दिमाग़ का दुश्मन! बढ़ सकता है डिमेंशिया का खतरा, जानिए इसका समाधान

दुनिया भर में बढ़ता वायु प्रदूषण केवल सांस की बीमारियों या हृदय रोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि अब इसका संबंध मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य से भी जोड़ा जा रहा है. हाल ही में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, लंबे समय तक वायु प्रदूषण और खासकर वाहनों से निकलने वाले धुएं (जैसे PM2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड) के संपर्क में रहने से डिमेंशिया जैसी खतरनाक मानसिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ सकता है.

क्या है डिमेंशिया? 

डिमेंशिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता, याददाश्त और निर्णय लेने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. यह स्थिति स्थायी होती है और समय के साथ बदतर होती जाती है. भारत में भी हर साल लाखों बुज़ुर्ग इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, और विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संख्या आने वाले वर्षों में और भी तेजी से बढ़ सकती है.

कारों का धुआं कैसे पहुंचाता है दिमाग तक?

जब हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, तो उसमें मौजूद सूक्ष्म कण (PM2.5) फेफड़ों से होते हुए रक्त प्रवाह (bloodstream) में मिल जाते हैं और वहां से यह कण मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं. यह प्रक्रिया शरीर में न्यूरो-इंफ्लेमेशन (Neuroinflammation) को जन्म देती है – यानी दिमाग की नसों और कोशिकाओं में सूजन. यही सूजन धीरे-धीरे मस्तिष्क की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है और डिमेंशिया का खतरा पैदा करती है.

शोध का निष्कर्ष

शोधकर्ताओं ने अमेरिका और यूरोप के हजारों लोगों पर वर्षों तक अध्ययन किया और पाया कि जो लोग प्रदूषित इलाकों में रहते हैं, विशेषकर जहां ट्रैफिक अधिक होता है, वहां डिमेंशिया के मामले अधिक पाए गए. इनमें विशेष रूप से उन लोगों को ज्यादा खतरा था जो लगातार कारों से निकलने वाले PM2.5 (Particulate Matter) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) जैसे प्रदूषकों के संपर्क में रहते हैं.

बुजुर्ग और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग ज्यादा खतरे में

इस शोध में यह भी पाया गया कि वायु प्रदूषण का असर हर उम्र के लोगों पर हो सकता है, लेकिन बुजुर्गों, बच्चों और पहले से बीमार लोगों पर इसका खतरा अधिक गंभीर होता है. कमजोर इम्यून सिस्टम, पहले से मौजूद मानसिक रोग या न्यूरोलॉजिकल संवेदनशीलता, वायु प्रदूषण के प्रभाव को कई गुना बढ़ा सकती है.

शहरी जीवनशैली और मानसिक स्वास्थ्य पर असर

आज के समय में महानगरों में रहना अपने आप में चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. ट्रैफिक का शोर, धुएं भरी हवा और हरे-भरे वातावरण की कमी ने शहरी जीवन को मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ बना दिया है. मानसिक रोगों में बढ़ोतरी, नींद की समस्याएं, चिड़चिड़ापन और डिप्रेशन – यह सब अब शहरों में आम हो गया है, और डिमेंशिया इसका सबसे गंभीर रूप बनकर उभर रहा है.

समाधान क्या है?

हालांकि वायु प्रदूषण से पूरी तरह बचना मुश्किल है, लेकिन कुछ उपायों को अपनाकर हम इसके प्रभाव को कम कर सकते हैं:

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  • AQI (Air Quality Index) पर नज़र रखें और अत्यधिक प्रदूषित दिनों में घर के अंदर रहें.
  • एन95 मास्क का प्रयोग करें.
  • घर में एयर प्यूरीफायर और इनडोर पौधों का इस्तेमाल करें.
  • योग, मेडिटेशन और ब्रेन एक्सरसाइज़ को दिनचर्या में शामिल करें.
  • सरकारों को चाहिए कि ग्रीन ट्रांसपोर्ट, सार्वजनिक परिवहन और हरियाली को बढ़ावा दें. 

वायु प्रदूषण अब सिर्फ सांस लेने की परेशानी या हृदय रोगों तक सीमित नहीं रहा. यह हमारे मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है, जिससे हमारी सोचने की शक्ति, याददाश्त और मानसिक संतुलन खतरे में है. आने वाले समय में अगर इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो मानसिक बीमारियाँ हमारे समाज के लिए एक नई महामारी बन सकती हैं. यह समय है चेतने का, सोचने का और वायु को स्वच्छ रखने की दिशा में ठोस कदम उठाने का.

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