प्रेम कपूर की क्लासिक फिल्म ‘बदनाम बस्ती’ फिर बनी चर्चा का केंद्र, IFFM में बजा डंका
50 साल बाद लौटी ‘बदनाम बस्ती’, IFFM की प्राइड नाइट में फिर गूंजा प्रेम कपूर का नाम! भारतीय LGBTQ+ सिनेमा की इस क्लासिक फिल्म ने मेलबर्न में मचाया धमाल, दर्शकों ने दिया स्टैंडिंग ओवेशन — जानिए क्यों आज भी 'बदनाम बस्ती' है इतनी खास.
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इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ मेलबर्न (IFFM) 2025 की ‘Pride Night’ में एक ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जब प्रेम कपूर की 1971 में बनी फिल्म ‘बदनाम बस्ती’ को विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया. LGBTQ+ थीम पर आधारित इस क्लासिक फिल्म ने न सिर्फ स्क्रीन पर वापसी की, बल्कि दर्शकों और समीक्षकों के दिलों में भी फिर से जगह बना ली. इस साल आईएफएफएम में लगभग 75 फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी, जो जेंडर, नस्ल, विकलांगता और महिला प्रतिनिधित्व जैसे विषयों पर बनी हैं. यह महोत्सव 22 अगस्त को होगा. एलजीबीटीक्यू+ प्राइड नाइट है, जो ऑस्ट्रेलिया में समलैंगिक सिनेमा और समलैंगिक दक्षिण एशियाई पहचान को समर्पित होगी.
क्यों खास है ‘बदनाम बस्ती’?
'बदनाम बस्ती' भारतीय सिनेमा की उन गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है, जिसने समलैंगिक रिश्तों को बिना डर या शर्म के परदे पर दिखाया. उस दौर में इस तरह की कहानी कहना अपने आप में एक क्रांतिकारी कदम था. फिल्म की प्रस्तुति, संगीत और संवेदनशील निर्देशन आज भी दर्शकों को झकझोर देता है.
प्रेम कपूर को मिला सम्मान
प्राइड नाइट के मंच पर प्रेम कपूर को समकालीन LGBTQ+ सिनेमा में योगदान देने वाले पहले फिल्मकारों में से एक के रूप में विशेष सम्मान से नवाजा गया. आयोजकों ने कहा, “प्रेम कपूर की 'बदनाम बस्ती' समय से आगे की सोच थी. यह फिल्म LGBTQ+ समुदाय के संघर्ष और संवेदनाओं को बेहद खूबसूरती से पेश करती है.”
थिएटर में खचाखच भीड़, खड़े होकर किया गया स्वागत
IFFM की स्क्रीनिंग में ‘बदनाम बस्ती’ को देखने के लिए थिएटर में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे. फिल्म खत्म होते ही दर्शकों ने standing ovation देकर फिल्म और प्रेम कपूर के काम को सराहा. कई युवा दर्शकों ने इसे "आंखें खोल देने वाली" फिल्म बताया.
आईएफएफएम के निर्देशक मीतू भौमिक ने इसको लेकर अपनी प्रतिक्रिया भी दी है. उन्होंने कहा, "हमारा मानना है कि आईएफएफएम के माध्यम से सिनेमा में लोगों को जोड़ने और संवाद स्थापित करने की शक्ति है. यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम जिस दुनिया में रहते हैं, उसकी सभी खूबसूरत विविधताओं को प्रतिबिंबित करें."भौमिक ने आगे कहा, "यह प्राइड नाइट न केवल समलैंगिक पहचान का जश्न मनाने के बारे में है, बल्कि उस चीज को फिर से पाने के लिए भी है, जिससे भारतीय सिनेमा को एलजीबीटीक्यू+ की कहानियों से लंबे समय से वंचित रखा गया है. फिल्म 'बदनाम बस्ती' और 'वी आर फहीम एंड करुण' कहानियों के माध्यम से हम अतीत का सम्मान करते हैं."
बदनाम बस्ती की विरासत
‘बदनाम बस्ती’ अब सिर्फ एक फिल्म नहीं रही, यह एक संस्कृतिक प्रतीक बन चुकी है — जो आज भी प्रासंगिक है. इस फिल्म ने LGBTQ+ समुदाय की भावनाओं, संघर्षों और संबंधों को उस दौर में सामने रखा, जब ऐसे विषयों पर बात करना भी वर्जित माना जाता था.
'बदनाम बस्ती' हिन्दी उपन्यासकार कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना के उपन्यास 'एक सड़क सत्तावन गलियां' पर आधारित है.फिल्म में नितिन सेठी, अमर कक्कड़ और नंदिता ठाकुर ने अभिनय किया है. ऐसा माना जाता था कि ये गायब हो गई है, लेकिन 2019 में इसका एक प्रिंट मिला और 40 साल का सूखा समाप्त हुआ!
भारतीय सिनेमा के लिए गर्व का क्षण
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IFFM जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘बदनाम बस्ती’ की वापसी से यह साबित होता है कि अच्छी कहानी और प्रगतिशील सोच कभी पुरानी नहीं होती. यह भारतीय सिनेमा के लिए भी गर्व का क्षण है, जिसने इतने साल पहले एक साहसिक कदम उठाया था. इस महोत्सव में अभिनेत्री तिलोत्तमा शोम की बंगाली फिल्म 'बक्शो बोंडी - शैडोबॉक्स' भी दिखाई जाएगी. मेलबर्न के भारतीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफएम) की शुरुआत इसी फिल्म के प्रदर्शन से होगी. तनुश्री दास और सौम्यानंद साही की सह-निर्देशित फिल्म का प्रीमियर बर्लिन फिल्म महोत्सव 2025 में हुआ था.
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