Keshto Mukherjee: रोल पाने के लिए पहले बने ‘कुत्ता’, फिर शराबी के किरदार ने बना दिया फ़ेमस
1975 में बनी फ़िल्म शोले, जेल में सुरंग और सुरंग की ख़बर देने वाला अंग्रेजों के ज़माने के जेलर का मुखबिर हरि राम नाई आपको अच्छी तरह से याद होगा । एक छोटे से किरदार में हरि राम नाई ने किस तरह से अपनी छाप छोड़ी ये बताने की ज़रूरत नहीं । हिंदी सिनेमा का ये कलाकार जब भी हमें टीवी और पर्दे पर दिखता है ।
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1975 में बनी फ़िल्म शोले, जेल में सुरंग और सुरंग की ख़बर देने वाला अंग्रेजों के ज़माने के जेलर का मुखबिर हरि राम नाई आपको अच्छी तरह से याद होगा । एक छोटे से किरदार में हरि राम नाई ने किस तरह से अपनी छाप छोड़ी ये बताने की ज़रूरत नहीं ।हिंदी सिनेमा का ये कलाकार जब भी हमें टीवी और पर्दे पर दिखता है, हमारी हंसी छूट जाती है. इस कलाकार के शराबी के रोल को खूब पसंद किया गया। एक ज़माने में तो ऐसा हुआ कि शराबी के रोल के लिए ख़ासकर इसी कलाकार को फ़िल्मों में कास्ट किया जाता था । क्योंकि इनसे बेहतर कोई शराबी नहीं बन पाता था ।
तो चलिए अब एक-एक करके हम आपको इस कलाकार की ज़िंदगी से जुड़ी रोचक तथ्यों को तफ़सील से बता देते हैं । सबसे पहले तो आपको बता दें कि इस हास्य कलाकार का नाम है केष्टो मुर्खजी । जो शराबी के किरदार में अपने लड़खड़ाते शब्दों और मूर्खतापूर्ण हरकतों से दर्शकों को हंसने पर मजबूर कर देते थे । जिन्होंने दशकों तक एक हास्य कलाकार के रूप में लोगों के दिलों पर राज किया । हालाँकि ये सबकुछ इतना आसान नहीं था । यहाँ तक पहुँचने के लिए केष्टो मुर्खजी ने अपनी ज़िंदगी में खूब पापड़ बेली थी । तब जाकर ये मुक़ाम हासिल हुआ था । एक दौर था जब इनके पास खाने के लिए पैसे नहीं होते थे, रहने के लिए कोई छत नहीं था, पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं थे, गंदी मैली-कुचैली जगह पर रहना पड़ता था, केष्टो मुखर्जी ने साल 1981 में ‘स्टारडस्ट’ मैगजीन को दिए इंटरव्यू में कहा था, “मैं बहुत पीता हूं. मैंने तब शराब पीनी शुरू की थी, जब मैं घर छोड़कर बॉम्बे हीरो बनने आया था । मैं रेलवे क्वार्टर में बने एक गंदे और मैले-कुचैले कमरे में रहता था । वहां खाने के लिए कुछ नहीं था । बस पीने के लिए था । इसलिए मैं पीता था, क्योंकि मैं फ्रस्ट्रैटेड रहता था । मेरे पास कोई काम नहीं था । ” केष्टो मुखर्जी ने आगे कहा था, “मैं पीता था ताकि थोड़ा सो सकूं. इसलिए पीता था ताकि मेरे आस-पास जो चूहे दौड़ रहे होते थे, उन्हें भूल सकूं. मेरे बराबर में ही कुत्ता सोता था । मैं टेंशन भुलाने के लिए पीता था। सिर्फ दारू ही थी, जो मेरी सच्ची दोस्त थी और ये दारू ही थी, जिसकी वजह से मुझे लोकप्रियता मिली । आजकल अगर कोई मेरा नाम लेता है तो दिमाग में 'बेवड़े' की छवि उभरती है । मैं अब अपने दोस्त को धोखा नहीं दे सकता । मैं अभी भी पीता हूं । बस एक ही दिन था, जब मैंने दारू की एक बूंद को हाथ नहीं लगाया था और वह था मेरी शादी वाला दिन । ”
केष्टों मुर्खजी की ये बात सुनकर इसका जवाब तो मिल गया कि वे अपने रोल के अलावा नीजी ज़िंदगी में भी शराब पीते थे । लेकिन कहा जाता है कि केष्टों मुर्खजी एक्टिंग से पहले फ़िल्मी सेट पर कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया । मतलब वे बिना शराब पीए ही शराबी की एक्टिंग करते थे । उन्होंने तक़रीबन 90 फ़िल्मों में काम किया और अधिकतर में शराबी का रोल ही प्ले किया । और वे उस रोल को कैसे खेलते थे ये बताने और समझाने की ज़रूरत नहीं है । इसके अलावा उनकी ज़िंदगी से जुड़ी एक प्रचलित कहानी है, जिसे हर कोई जानना चाहता है । क्योंकि यहीं से केष्टो मुर्खजी की ज़िंदगी में क़िस्मत ने दस्तक दी थी । वो कहानी है कुत्ता बनकर दिखाने की । हालाँकि, ये सुनने में थोड़ा आपको अजीब लग सकता है । लेकिन यही सच है । चलिए अब आपको बताते हैं कि केष्टो मुखर्जी को ऐसा क्यों करना पड़ा था ।
दरअसल, 7 अगस्त 1925 को कोलकत्ता में एक साधारण परिवार में जन्मे केष्टो मुखर्जी शुरू से ही एक कलाकार बनाना चाहते थे, कहते हैं न जितना बड़ा सपना हम देखते हैं, उतनी ही बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ती है । और सबसे बड़ी बात कि हमें उसके लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार भी रहना होता है । यहाँ, नसीरूद्दीन शाह का एक जुमला याद आ रहा है, एक बार उन्होंने कहा था । कि अगर आप अभिनेता हैं तो आपको काम ज़रूर मिलेगा, लेकिन जब तक आपको काम मिलेगा, तब तक आप अभिनेता बने रह सकेंगे क्या? ये सवाल है । हर रोज़ हज़ारों की संख्या में लोग अभिनय की दुनिया में किस्मत आज़माने के लिए घर से निकलते हैं । तो उतनी ही संख्या में हर रोज़ लोगों के सपने भी टूटते हैं । खैर, केष्टो मुर्खजी भी इसी तरह सीने में सपने संजोए बंबई नगरी में कदम रखे थे । काम माँगने के लिए हर रोज़ डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के दफ़्तरों के चक्कर काट रहे थे । लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दे रहा था । एक दिन की बात है काम मांगने के लिए वे बिमल रॉय के पास गए, उनसे काम माँगा, लेकिन बिमल राय ने कहते हुए काम देने से इनकार कर दिया कि उनके पास कोई काम नहीं है । वह वहाँ से चले जाएँ. लेकिन मुर्खजी वहाँ से टस से मस नहीं हुए । केष्टो की ढिटई को देखकर बिमल राय को ग़ुस्सा आ गया । और उन्होंने ग़ुस्से में कह दिया कि एक रोल है कुत्ते का, क्या वह करना चाहोगे? मुर्खजी ने बिना कुछ सोचे समझे कह दिया कि हाँ करूँगा । यहाँ तक कि केष्टो मुर्खजी कुत्ता बन गए और भौंकने लगे । ये सब देखकर बिमल दा काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने मुखर्जी को उसी वक़्त फ़िल्म के लिए उन्हें साइन कर लिया। और इस तरह से उनकी शुरूआत हो गई । हालाँकि, केष्टो ने साल 1952 में फ़िल्म नागरिक से अपने करियर की शुरूआत की थी, साल 1957 में आई फ़िल्म मुसाफ़िर से केष्टो मुखर्जी ने बॉलीवुड में कदम रखा । और साल 1970 में रिलीज़ हुई ‘माँ और ममता’ में डारेक्टर असित सेन ने उन्हें शराबी का किरदार दिया था । और किरदार ने मुखर्जी की क़िस्मत ही बदल दी । शराबी के किरदार से केष्टों मुखर्जी इतने मशहूर हो गए कि उनका यह सिग्नेचर स्टाइल बन गया और लोगों ने इन्हें खूब पसंद किया । इसके बाद यूँ कहें कि केष्टो की चल पड़ी, और उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । केष्टो के शराबी के किरदार को खूब सराहा तो गया लेकिन क्या आपको पता है उन्होंने इस किरदार को निभाने के लिए एक पापड़ वाले से प्रेरणा ली थी? केष्टो की ज़िंदगी का ये भी एक दिलचस्प वाक्या था । दरअसल, केष्टो अपने परिवार के साथ जुहू के घर में रहते थे, जहां एक पापड़ वाला हर रोज़ शराब पीकर पापड़ बेचता था । वो शराबी पापड़ वाला शराब के नशे में अपने ही अंदाज में लोगों को पापड़ खरीदने के लिए आवाज लगाता था । जिससे एक अभिनेता के तौर पर केष्टो बाबू काफ़ी प्रभावित हुए थे, जब उन्हें ‘मां और ममता’ फिल्म में शराबी का रोल ऑफर हुआ तो उन्होंने उसी पापड़ वाले के स्टाइल को अपनाया और फिर देखते ही देखते वो किरदार कितना चहेता बन गया ये बताने की ज़रूरत नहीं । उस दौर में केष्टों मुखर्जी और अमिताभ बच्चन की जोड़ी खूब पसंद किया गया । उन्होंने फ़िल्म ज़ंजीर और गोलमाल जैसी ब्लॉकबस्टर फ़िल्मों में एक साथ काम किया । साल 1981 में फ़िल्म खूबसूरत के लिए मुखर्जी को सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार के रूप में फ़िल्मफ़ेयर जैसे पुरस्कार से नवाज़ा गया । इसके अलावा भी कई फिल्मी अवार्ड्स उन्होंने अपने नाम किए । और ये सिलसिला 90 के दशक तक यूँ ही चलता रहा । साल 1996 में आई फ़िल्म आतंक उनकी आख़िरी फ़िल्म थी। और 2 मार्च 1982 को उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया । हास्य की दुनिया के धनी और दिग्गज कलाकार केष्टो मुखर्जी आज भले ही हमारे बीच उपस्थित नहीं है, लेकिन उनका शानदार और बेमिसाल काम हमेशा हमें हंसा-हंसाकर पेट फूला देता है । और उनकी अदाकारी आज भी हमारे बीच ज़िंदा है । एक कलाकार के तौर पर आप केष्टो मुखर्जी के बारे में क्या कहेंगे, और आपको हमारी ये स्टोरी कैसी लगी। कमेंट करके ज़रूर बताएं ।
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