क्या है देवी स्वाहा का रहस्य? आखिर क्यों इनके बिना अधूरा माना जाता है हर हवन
जिस प्रकार मां लक्ष्मी, मां पार्वती और मां काली के बिना पूजा को अधूरा माना जाता है, जिस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बिना सृष्टि अधूरी है, उसी प्रकार देवी अग्नि यानि देवी स्वाहा के बिना भी पूजा को अधूरा माना जाता है.
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सनातन धर्म में प्रत्येक देवी-देवता का बहुत महत्व है. इनके बिना कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं होता है, जिस प्रकार देवी के बिना देवता को अधूरा माना जाता है, उसी तरह देवी स्वाहा के बिना हवन को भी पूरा नहीं माना जाता है. लेकिन अब ऐसे में ये सवाल उठता है कि आखिर देवी स्वाहा कौन है? और इनके बिना किसी भी शुभ कार्य को अधूरा क्यों माना जाता है?
जिस प्रकार मां लक्ष्मी, मां पार्वती और मां काली के बिना पूजा को अधूरा माना जाता है, जिस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बिना सृष्टि अधूरी है, उसी प्रकार देवी अग्नि यानि देवी स्वाहा के बिना भी पूजा को अधूरा माना जाता है.
देवी स्वाहा से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी अग्नि का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों जैसे कि स्कंद पुराण में भी देखने को मिलता है. प्राचीन काल में जब देवता और ऋषि यज्ञ किया करते थे, तब अग्निदेव आहुतियों को ग्रहण कर सभी देवताओं को भेजते थे. लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब अग्निदेव अग्नि की आहुतियों को ग्रहण करने में असमर्थ हो गए. इस वजह से अग्निदेव को ऐसी शक्ति चाहिए थी जो उनकी ऊर्जा को संतुलित कर सके और सभी देवी-देवताओं तक पहुंचाने में सहायता कर सके. उस दौरान अग्निदेव की सहायता के लिए देवी स्वाहा नाम की एक ऐसी शक्ति प्रकट हुई जिन्होंने अग्निदेव से विवाह कर उनकी शक्ति को बढ़ाया.
स्वाहा का उच्चारण इतना महत्वपूर्ण क्यों?
स्वाहा को यह वरदान प्राप्त था कि जब तक कोई यज्ञ या फिर हवन में स्वाहा का उच्चारण नहीं करेगा, तब तक वह हवन पूरा नहीं होगा. इसलिए हर हवन में स्वाहा का उच्चारण ज़रूर किया जाता है.
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इसके अलावा वैदिक काल में यज्ञ को देवी-देवताओं को भोजन अर्पित करने का एक माध्यम माना जाता था. इसलिए भी जब भी किसी देवी-देवता को हवन के माध्यम से भोग लगाया जाता है तो सबसे पहले स्वाहा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.
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