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हरतालिका तीज के इस मुहूर्त से होगी पति की आयु में वृद्धि, इस तरह करें पूजा-अर्चना

इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, साफ कपड़े पहनें और पूरे मन से व्रत का संकल्प लें. मिट्टी या रेत से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां बनाएं और उन्हें लकड़ी की चौकी पर सजाकर स्थापित करें.

26 Aug, 2025
( Updated: 07 Dec, 2025
10:40 PM )
हरतालिका तीज के इस मुहूर्त से होगी पति की आयु में वृद्धि, इस तरह करें पूजा-अर्चना
AI Image

भारत विविधता में एकता वाला ऐसा देश है जहां हर त्योहार सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होता, बल्कि उसमें हमारी भावनाएं, रिश्ते, परंपराएं और कहानियां भी जुड़ी होती हैं. इन त्योहारों में से एक खास त्योहार है हरतालिका तीज. आमतौर पर इसे सुहागिन महिलाओं का व्रत माना जाता है, जिसमें वे निर्जला रहकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. साथ ही अविवाहित लड़कियां भी यह व्रत करती हैं ताकि उन्हें एक अच्छा और मनचाहा जीवनसाथी मिले. लेकिन क्या आप हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त जानते हैं?

हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार तृतीया तिथि 25 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और 26 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि यानी सूर्योदय की तिथि को मानते हुए व्रत 26 तारीख को रखा जाएगा. पूजा का शुभ समय सुबह 5 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक है. यह पूजा अक्सर प्रदोष काल में यानी शाम के समय की जाती है. कई स्थानों पर महिलाएं रातभर जागकर भजन-कीर्तन भी करती हैं.

किस तरह करें पूजा-अर्चना?

इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, साफ कपड़े पहनें और पूरे मन से व्रत का संकल्प लें. मिट्टी या रेत से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां बनाएं और उन्हें लकड़ी की चौकी पर सजाकर स्थापित करें. फिर देवी-देवताओं की पूजा करें. फूल, बेलपत्र, चंदन, धूप-दीप, मिठाई, फल और सोलह श्रृंगार की चीजों से भगवान को भोग लगाएं. महिलाएं पारंपरिक मंत्रों का जाप करें और हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनें, साथ ही आरती करें.

हरतालिका तीज से जुड़ी पौराणिक कथा?

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हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, जब माता पार्वती विवाह योग्य हुईं तो उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया. लेकिन माता पार्वती का मन भगवान शिव में था. उन्होंने अपनी सखियों के साथ वन में जाकर तपस्या की और रेत से शिवलिंग बनाकर शिवजी की आराधना की. इस कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया. यही वह दिन था, जिसे हर साल तीज के रूप में मनाया जाता है.

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