श्री-श्री उग्रतारा मंदिर: गुवाहाटी में बसा ऐसा शक्तिपीठ जहां प्रतिमा नहीं बल्कि पानी से भरे मटके की होती है पूजा!
सनातन धर्म में भगवान शिव और माता सती का खास स्थान है. भक्त वैवाहिक जीवन में खुशी, संतान संबंधी परेशानियों से निजात और सुख-समृद्धि पाने के लिए इनकी पूजा करते हैं. क्योंकि आज भी मान्यता है कि मां सती अपने शक्तिपीठों में भगवान शिव के किसी न किसी रूप के साथ विराजमान हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं. ऐसा ही एक शक्तिपीठ स्थित है असम के गुवाहाटी में, जहां मां सती पानी से भरे मटके के रूप में विराजमान हैं.
Follow Us:
भगवान शिव और मां पार्वती को संसार में सबसे पूजनीय माना गया है. अच्छे दांपत्य जीवन के लिए और संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है. माना जाता है कि अग्नि में भस्म होने के बाद जहां-जहां मां सती के अंग गिरे थे, वहां शक्तिपीठ मंदिरों का निर्माण हुआ. श्री-श्री उग्रतारा मंदिर असम के गुवाहाटी में शक्तिपीठ मंदिर है, जहां मां पानी से भरे मटके के रूप में विराजमान हैं.
श्री-श्री उग्रतारा मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा!
श्री-श्री उग्रतारा मंदिर गुवाहाटी के पूर्वी भाग में उजान बाजार के पास बना है. यह मंदिर अपनी पौराणिक कथा की वजह से बहुत प्रसिद्ध है. माना जाता है कि अग्नि में भस्म होने के बाद माता सती की नाभि इसी मंदिर में गिरी थी. इस मंदिर की खासियत है कि यहां कोई प्रतिमा नहीं, बल्कि पानी से भरे मटके की पूजा होती है. यहां माता सती की सुरक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं. मां के मंदिर के पास पीछे की तरफ भगवान शिव का मंदिर स्थित है. भक्तों के बीच मान्यता है कि मां उग्रतारा के दर्शन तभी पूरे माने जाते हैं जब भगवान शिव के दर्शन कर लिए जाएं.
बौद्ध धर्म से जुड़ा है श्री-श्री उग्रतारा मंदिर!
किंवदंतियों में मंदिर को बौद्ध धर्म से भी जोड़ा गया है. माना जाता है बौद्ध धर्म में पूजे जाने वाले देवी-देवता 'एका जटा' और 'तीक्ष्ण-कांता' मां उग्रतारा का ही रूप हैं. 'एका जटा' और 'तीक्ष्ण-कांता' देवियों को बौद्ध धर्म में तंत्र की देवी कहा गया है. इसी वजह से इस मंदिर में तांत्रिक पूजा भी की जाती है. बौद्ध धर्म से जुड़े लोग भी मां उग्रतारा की पूजा करते हैं और अपनी तांत्रिक सिद्धियों को सफल करने के लिए आते हैं.
कब और किसने कराया था श्री-श्री उग्रतारा मंदिर का निर्माण?
यह भी पढ़ें
नवरात्रि के मौके पर भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति पर जंगली जानवरों की बलि देते हैं और मां को तंत्र क्रिया से प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं. इस शक्तिपीठ मंदिर का निर्माण साल 1725 में अहोम साम्राज्य के राजा शिवसिंह ने कराया था. राजा शिवसिंह ने अपने काल में बहुत सारे हिंदू मंदिरों का निर्माण कराया था. भूकंप की वजह से मंदिर टूट भी गया था, लेकिन बाद में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया.
टिप्पणियाँ 0
कृपया Google से लॉग इन करें टिप्पणी पोस्ट करने के लिए
Google से लॉग इन करें