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संकष्टी चतुर्थी: अविवाहित कन्याओं के लिए बेहद खास होता है ये व्रत, जानें सही मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

संकष्टी चतुर्थी का व्रत सनातन धर्म में बहुत महत्व रखता है. ये व्रत सबसे पहले पूजनीय देवता भगवान गणेश को समर्पित होता है. मान्यता है कि ये दिन उन अविवाहित कन्याओं के लिए भी खास होता है जो एक अच्छे वर की तलाश में है. साथ ही धन संबंधी परेशानियों से निजात दिलाने के लिए ये व्रत कारगर साबित हो सकता है. ऐसे में पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में जान लीजिए.

07 Nov, 2025
( Updated: 07 Dec, 2025
02:29 AM )
संकष्टी चतुर्थी: अविवाहित कन्याओं के लिए बेहद खास होता है ये व्रत, जानें सही मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

मार्गशीर्ष के कृष्ण पक्ष की तृतीया 8 नवंबर सुबह 7 बजकर 32 मिनट तक रहेगी. इसके बाद चतुर्थी शुरू हो जाएगी. इस दिन गणाधिप संकष्टी चतुर्थी है, जो कि भगवान गणेश को समर्पित है. द्रिक पंचांग के अनुसार, शनिवार को सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा रात 11 बजकर 14 मिनट तक वृषभ राशि में रहेंगे. इसके बाद मिथुन राशि में गोचर करेंगे. अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय सुबह 9 बजकर 21 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 43 मिनट तक रहेगा.

क्या होती है संकष्टी चतुर्थी?

संकष्टी चतुर्थी का अर्थ होता है, संकटों का नाश करने वाली. इसका उल्लेख स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है, जिसमें बताया गया है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा और व्रत रखने से जीवन में सुख-शांति का वास होता है. साथ ही मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर पति की लंबी आयु, सौभाग्य और पारिवारिक खुशहाली के लिए नवविवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं.

अविवाहित कन्याओं के लिए क्यों खास होता है संकष्टी चतुर्थी का व्रत?

साथ ही अविवाहित कन्याएं भी योग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को कर सकती हैं. पुराणों में उल्लेख है कि इस व्रत से न केवल भौतिक कष्ट दूर होते हैं, बल्कि मानसिक तनाव और आर्थिक संकट भी समाप्त हो जाते हैं.

संकष्टी चतुर्थी पर कैसे करें पूजा-अर्चना?

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इस तिथि पर विधि-विधान से व्रत रखने के लिए ब्रह्म-मुहूर्त में उठें. नित्य कर्म-स्नान आदि करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करें. फिर एक चौकी पर गणेशजी की प्रतिमा रखें और उन पर गंगाजल से छिड़काव करें. इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करने के बाद वह श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं. इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रखकर बाकी प्रसाद के रूप में वितरित करें. पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. "ऊं गं गणपतये नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें. शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है.

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