रूस से व्यापार, ड्रैगन को दुलार...चीन को फंडिंग दे रहा अमेरिका, रिपोर्ट में खुलासा, अब भी भारत को देगा ज्ञान?
अमेरिकी संसद की एक ताज़ा रिपोर्ट ने बड़ा खुलासा किया है कि रक्षा विभाग (DoD) का पैसा ऐसे शोध संस्थानों तक जा रहा है जिनका सीधा संबंध चीन की सेना से है. चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से कई संस्थान खुद अमेरिका की ब्लैकलिस्ट में शामिल हैं. अब भारत को रूस के मामले में ज्ञान देने वाला अमेरिका बताएगा कि वो रूस से व्यापार करता है, चीन को खुद फंडिंग देता है तो भारत को कैसे रोक सकता है.
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चीन और अमेरिका एक दूसरे के प्रतिद्वंदी माने जाते है. बीजिंग को वाशिंगटन का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया जाता है. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि यूएस को हर दशक में एक राइवल की जरूरत होती है. 1960 के दौर में उसने USSR के रूप में अपना दुश्मन खोजा, अब चीन. हालांकि यहां मामला अलग है. अमेरिका चाहकर भी इनसे संबंध नहीं तोड़ सकता. उसने भारत को धमकी दी कि रूस से तेल मत खरीदो लेकिन खुद उसके साथ व्यापार जारी रखे हुए था. कैमिकल्स के साथ-साथ अंडे तो वो मॉस्को से ही मंगवा रहा है. अब उसका दोगलापन फिर सामने आया है. जी हां, जो चीन, अमेरिका को फूटी आंख नहीं सुहाता है वो उसे फंडिंग दे रहा है.
चीन को फंडिंग दे रहा अमेरिका
आपको बताएं कि एक हैरान कर देने वाला खुलासा हुआ है. अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ और ट्रेड के मुद्दे पर जारी तनातनी के बीच एक रिपोर्ट आई है कि अमेरिका खुद चीन की मिलिट्री से जुड़े संस्थानों की फंडिंग कर रहा है. ये खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि अमेरिकी संसद की हाउस सिलेक्ट कमेटी ऑन द CCP की एक रिपोर्ट से हुआ है. रिपोर्ट की मानें तो अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) का पैसा ऐसे थिंक टैंक्स, रिसर्च संस्थानों तक पहुंच रहा है, जिसके संबंध चीन और CCP यानी चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी से बताए जाते हैं.
ब्लैकलिस्ट में होने के बावजूद मिलती रही मदद
रिपोर्ट की मानें तो 2023 से 2025 के बीच 700 से ज़्यादा रिसर्च पेपर्स को अमेरिकी फंड मिली. हारानी की बात ये है कि उनमें चीन के डिफेंस से जुड़े वैज्ञानिक शोधार्थी भी शामिल थे. और तो और इनमे तो कई संस्थान अमेरिका की तरफ ब्लैकलिस्टेड भी हैं. इसका मतलब है कि इनकी भूमिका संदिग्ध थी और इनके साथ पैसे और आधिकारिक तौर पर सहयोग जुर्म की श्रेणी में आता है.
चीनी रक्षा वैज्ञानिकों के साथ मिलकर शोध कर रहे अमेरिकी
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में चीनी प्रभुत्व को लेकर कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन जेंसियों में आपसी तालमेल की कमी के कारण इसे लागू तक नहीं किया जा पा रहा है. यानी कि अमेरिका में चीनी सेना PLA की घुसपैठ को रोकने के लिए नियम मौजूद हैं, उन्हें फंडिंग देने की मनाही है, लेकिन उनका ठीक से अनुपालन नहीं किया गया. दलील दी जाती है अगर चीनी वैज्ञानिक और CCP वाले शोध पढ़ सकते हैं तो उनके साथ शोध प्रकाशित करने में क्या दिक्कत है. हालांकि यहां ये बताना जरूरी है कि दिक्कत शोध पढ़ने से नहीं बल्कि उसके तरीके, सैंपलिंग, डेटा और एक्सपेरिमेंट की बारीकियों के साथ डेटा से छेड़छाड़ यानी कि अपने हिसाब से जानकारी की काट-छांट हो सकती है. यही जानकारी चीन फौज के लिए बहुत कीमती साबित होती हैं, जिन्हें PLA अपने लिए इस्तेमाल करती है.
चीन को हो रहा फायदा
आपको बता दें कि 2025 में अमेरिकी नेवी ने एक प्रोजेक्ट को फंड किया जो ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर रिसर्च के लिए था. ये रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और चीन की एक यूनिवर्सिटी ने मिलकर की, जबकि वह चीनी यूनिवर्सिटी 2001 से अमेरिकी ब्लैकलिस्ट में थी.
इस साझेदारी से चीन को न सिर्फ रिसर्च के नतीजे, बल्कि पूरा प्रोसेस और तकनीकी जानकारी भी मिल गई. ये जानकारी अब ड्रोन तकनीक, साइबर डिफेंस और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर में उसके काम आ सकती है. यानी सीधी बात यह है कि अमेरिका के टैक्सपेयर्स का पैसा अब अनजाने में चीन की फौज की ताकत बढ़ा रहा है.
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