‘जनसंहार के आरोपी की समर्थक…शांति की प्रतीक कैसे?’ Nobel Peace Prize मिलने के बाद सवालों के घेरे में कमेटी और मचाडो
वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरीना मचाडो को पीस प्राइज से सम्मानित किया गया है. लेकिन अब उनको मिला ये सम्मान सवालों के घेरे में है. आलोचक नॉर्वे की नोबेल कमेटी पर निशाना साध रहे हैं.
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लंबे समय से सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ संघर्ष का चेहरा रही वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरीना मचाडो, अब शांति का प्रतीक बन गई हैं, लेकिन सिर्फ नोबेल कमेटी की नजर में. नॉर्वे की नोबेल कमेटी ने उन्हें विभाजित विपक्ष को एकजुट करने वाली नेता बताते हुए न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन के प्रयासों की सराहना करते हुए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया. लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि सम्मान उस वक्त मिला है जब मचाडो की नीतियों और बयानों पर वेनेज़ुएला और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी बहस छिड़ी हुई है. कई लोग आलोचना कर रहे हैं कि एक विवादित व्यक्ति को पुरस्कार क्यों दिया गया? इसके साथ ही नॉर्वे नोबेल कमेटी भी लोगों के निशाने पर आ गई है.
विवादास्पद सहयोग और अमेरिकी झुकाव
रणनीतिक रूप से मचाडो हमेशा से अमेरिका और मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की समर्थक रही हैं. 2024 में ट्रंप की दोबारा जीत पर उन्होंने कहा था“हम हमेशा आप पर भरोसा करते हैं, अमेरिका का लोकतंत्र हमारे लिए प्रेरणा है.”
नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद उन्होंने अपना अवॉर्ड भी ट्रंप को समर्पित किया. ट्रंप ने भी मचाडो की प्रशंसा करते हुए उन्हें “स्वतंत्रता सेनानी” कहा था. हालांकि आलोचकों का कहना है कि यही अमेरिकी झुकाव वेनेज़ुएला की अस्थिरता को और बढ़ाता है. ट्रंप प्रशासन की वेनेज़ुएला नीति के तहत सैकड़ों प्रवासियों को बिना सुनवाई मध्य अमेरिका की एक कुख्यात जेल में भेजा गया था, साथ ही कैरेबियाई क्षेत्र में सैन्य हमले भी किए गए थे. ऐसे में मचाडो की उस नीति के प्रति सहानुभूति को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.
शांति या अशांति की नेता?
मचाडो ने अपने राजनीतिक करियर में कई चुनावों में हिस्सा लिया है और 2010 में सांसद भी बनीं. हालांकि, उन्होंने कई चुनावों और वार्ता प्रक्रियाओं का बहिष्कार किया. वे अक्सर कहती रही हैं कि विदेशी हस्तक्षेप ही मादुरो को सत्ता से हटाने का एकमात्र रास्ता है. उनके इस रुख ने उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर और टकराव की राजनीति के और करीब ला दिया.
नेतन्याहू की समर्थक होने पर भी उठे सवाल
वहीं, कई लोग यह कहते हुए मचाडो की आलोचना कर रहे हैं कि जनसंहार के आरोपी नेतन्याहू की समर्थक और वेनेज़ुएला में दक्षिणपंथी शासन स्थापित कर देश के संसाधनों को वैश्विक कंपनियों को बेचने की इच्छुक एक नेता को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.
हाल के वर्षों में मचाडो ने दावा किया था कि राष्ट्रपति निकोलस मादुरो आपराधिक गिरोह ‘ट्रेन दे अरागुआ’ के ज़रिए अमेरिका पर आक्रमण करा रहे हैं. यह आरोप न केवल अप्रमाणित है, बल्कि अमेरिका में सैन्य कार्रवाई और निर्वासन नीतियों को उचित ठहराने के लिए इस्तेमाल किया गया.
पुरस्कार पर उठे तीखे सवाल
वेनेज़ुएला और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई आवाज़ें इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बता रही हैं. आलोचकों का कहना है कि एक ऐसी नेता को शांति पुरस्कार देना, जिसकी राजनीति बार-बार अशांति, विभाजन और विदेशी हस्तक्षेप से जुड़ी रही है, नोबेल समिति की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है.
विवादित लोगों को नोबेल मिलने का इतिहास
नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर विवाद उठना कोई नई बात नहीं है. अक्सर यह सम्मान कार्यकर्ताओं के बजाय बड़े नेताओं या राजनेताओं को दिया गया है और कई बार इन नेताओं का अतीत बिल्कुल भी शांतिपूर्ण नहीं रहा. मिसाल के तौर पर, हेनरी किसिंजर को ही ले लीजिए वे अमेरिका के विदेश मंत्री और राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के सुरक्षा सलाहकार थे. उन पर कंबोडिया पर अवैध बमबारी, इंडोनेशिया के ईस्ट तिमोर पर हमले का समर्थन, और लैटिन अमेरिका में तानाशाहों की मदद जैसे गंभीर आरोप लगे थे. फिर भी उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इसी तरह, इज़राइल के पूर्व प्रधानमंत्री मेनाचेम बेगिन को भी 1978 में यह पुरस्कार मिला, जबकि उनका अतीत हिंसक गतिविधियों से जुड़ा रहा है. हालांकि यह भी कहा जाता है कि कई बार नोबेल समिति यह सम्मान किसी की पुरानी उपलब्धियों के बजाय उनके भविष्य में दिशा बदलने की संभावनाओं को ध्यान में रखकर देती है.
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