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सड़कों पर लाखों की भीड़… एफिल टॉवर बंद… 200 शहरों में स्ट्राइक, अमेरिका के बाद फ्रांस में शटडाउन!

अमेरिका के बाद अब फ्रांस में शटडाउन हो गया है. फ्रांस में सरकार की खर्च कटौती नीतियों के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा है. गुरुवार से शुरू हुए विरोध-प्रदर्शन इतने व्यापक हो गए कि पेरिस के प्रतीक माने जाने वाले एफिल टॉवर तक को बंद करना पड़ा.

France Protest(Social Media-X)

फ्रांस में सरकार की खर्च कटौती नीतियों के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा है. गुरुवार से शुरू हुए विरोध-प्रदर्शन इतने व्यापक हो गए कि पेरिस के प्रतीक माने जाने वाले एफिल टॉवर तक को बंद करना पड़ा. हजारों लोग सार्वजनिक सेवाओं पर खर्च में कटौती का विरोध करते हुए सड़कों पर उतरे और जमकर प्रदर्शन किया. फ्रांस के 200 शहरों में विरोध प्रदर्शन का नजारा देखने को मिला. 

इन प्रदर्शनकारियों में मजदूर, सेवानिवृत्त लोग और छात्र शामिल थे. उन्होंने मंगलवार दोपहर राजधानी पेरिस के प्लास द’इटाली (Place d’Italie) से मार्च निकाला और सरकार से मांग करते हुए कहा कि आम जनता पर बोझ डालने के बजाय अमीरों पर अधिक कर लगाया जाए. इस बीच एफिल टॉवर प्रबंधन ने एक बयान जारी कर पर्यटकों को सूचित किया कि हड़ताल के कारण टॉवर बंद रहेगा. 

सड़कों पर उतरे लाखों लोगों ने किया प्रोटेस्ट

ये हड़तालें फ्रांस में पिछले महीने शुरू हुए व्यापक विरोध-प्रदर्शनों का ही हिस्सा हैं. फ्रांस के आंतरिक मंत्रालय के अनुसार, देशभर में करीब 1 लाख 95 हजार लोग सड़कों पर उतरे, जिनमें से लगभग 24 हजार केवल पेरिस में शामिल थे. इन प्रदर्शनों का असर क्षेत्रीय रेल सेवाओं और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा. 

पेरिस में मेट्रो सेवाएं लगभग सामान्य रहीं, लेकिन ट्रेनें सीमित क्षमता में संचालित की गईं. हजारों शिक्षकों और स्वास्थ्यकर्मियों ने भी हड़ताल में भाग लिया. प्रदर्शनकारियों ने सरकार द्वारा अगले वर्ष के बजट में प्रस्तावित बड़े पैमाने की सार्वजनिक खर्च कटौतियों के खिलाफ देशभर में मार्च निकाला.

क्या है आम लोगों की मांग?

ट्रेड यूनियनें राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और उनके नए प्रधानमंत्री सेबास्टियन लेकोर्नू पर लगातार दबाव बनाए रखने की कोशिश कर रही हैं. लेकोर्नू, जिन्हें पिछले महीने ही नियुक्त किया गया था, अब तक न तो अपने बजट की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत कर पाए हैं और न ही मंत्रिमंडल की पूरी नियुक्ति की है.

यूनियन नेताओं की प्रमुख मांग है कि सरकार सार्वजनिक सेवाओं पर खर्च बढ़ाए, रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का निर्णय वापस ले और अमीरों पर अधिक कर लगाए. बीते महीने देशभर के छोटे-बड़े शहरों में पाँच लाख से अधिक लोगों ने सड़कों पर उतरकर विरोध मार्च किया था. यूनियनों का दावा है कि इस आंदोलन में 10 लाख से अधिक हड़ताली कर्मचारी और प्रदर्शनकारी शामिल हुए.

क्यों हो रहा है विरोध प्रदर्शन?

दरअसल फ्रांस की सरकार ने अगले वर्ष के बजट में सार्वजनिक सेवाओं पर खर्च कम करने की योजना बनाई है. इसके विरोध में यूनियनों और नागरिकों की मांग है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सामाजिक सेवाओं पर कोई कटौती न की जाए. लोगों का कहना है कि आम जनता पर बोझ डालने के बजाय अमीरों पर अधिक कर लगाया जाना चाहिए. प्रदर्शनकारियों की यह भी प्रमुख मांग है कि सरकार रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का फैसला वापस ले. कुल मिलाकर, जनता यह संदेश दे रही है कि वे सरकारी खर्चों में कटौती नहीं, बल्कि सामाजिक सेवाओं पर अधिक निवेश चाहते हैं.

फ्रांस से पहले अमेरिका में शटडाउन

आपको बता दें कि फ्रांस से पहले अमेरिका में शटडाउन हुआ था. दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी को सीनेट में अस्थायी फंडिंग बिल पास कराने के लिए कम से कम 60 वोटों की जरूरत थी, लेकिन सिर्फ 55 वोट ही जुट पाए. इसके बाद यह प्रस्ताव गिर गया. जिससे जब तक बजट या अस्थायी फंडिंग बिल पास नहीं होता, तब तक 'गैर-जरूरी' सरकारी विभागों और सेवाओं को बंद करना पड़ा. अमेरिका ने 2018 में ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान भी ऐसी ही स्थिति झेली थी. पिछली बार ये 34 दिनों तक चला था. 

क्या होता है सरकारी शटडाउन?

सरकारी शटडाउन तब होता है, जब कांग्रेस संघीय एजेंसियों को चलाने के लिए वार्षिक व्यय विधेयकों पर सहमत नहीं हो पाती. एंटीडेफिशिएंसी एक्ट एजेंसियों को बिना अनुमति के पैसा खर्च करने से रोकता है, इसलिए जब पैसा खत्म हो जाता है, तो सरकार का ज्यादातर काम भी बंद हो जाता है. अमेरिकी सरकार के अलग-अलग विभागों को चलाने के लिए भारी मात्रा में फंड की जरूरत होती है. इसके लिए संसद (कांग्रेस) से बजट या फंडिंग बिल पारित कराना जरूरी होता है. लेकिन जब राजनीतिक मतभेद या गतिरोध की वजह से तय समयसीमा में फंडिंग बिल पारित नहीं हो पाता, तो सरकार के पास कानूनी रूप से खर्च करने के लिए फंड नहीं बचता. ऐसी स्थिति में अमेरिकी सरकार को अपनी गैर-जरूरी सेवाएं बंद करनी पड़ती हैं, जिसे सरकारी शटडाउन कहा जाता है. 

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