भारत को झुकाने के मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहा था US का 'अहंकारी' मंत्री, उसके बयान देते ही ट्रंप ने मार ली पलटी
अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ विवाद पर बयानबाज़ी थमने का नाम नहीं ले रही. अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने एक बार फिर आक्रामक तेवर दिखाते हुए भारत को शर्तों की लंबी सूची थमा दी. हालांकि उनके बड़बोले बयान से इतर, ट्रंप ने पीएम मोदी को महान बताया है और भारत की ओर फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है.
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अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने एक बार फिर भारत को अकड़ दिखाने की कोशिश की है. उन्होंने अमेरिका से रिश्ते सुधारने यानी कि टैरिफ करवाने की एवज में तीन शर्तें थोप दी हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी मार्केट है. उन्होंने यूएस की अर्थव्यवस्था का अहंकार दिखाते हुए कहा कि ये 30 ट्रिलियन डॉलर की अमेरिकी इकोनॉमी है जिसके लिए लोग उसके पास आते हैं. इसलिए दुनिया को उनके पास आना पड़ेगा. हालांकि जब वो ये बयान दे रहे थे तब उनको भी नहीं पता होगा कि उनके राष्ट्रपति भारत के साथ रिश्तों की दुहाई देंगे और दोस्ती जारी रखने की वकालत करेंगे
आपको बता दें कि अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी ने भारत को गीदड़भभकी देते हुए तीन शर्तें रखीं और कहा कि अगर वो अपने रिश्ते सुधारना चाहता है तो उसे रूस से तेल आयात पर रोक लगानी होगी. वहीं दूसरी शर्त ये रखी कि भारत BRICS जैसे संगठन से दूरी बनाए जहां यूएस के कट्टर दुश्मन रूस और चीन की भी मौजूदगी है. वहीं तीसरी शर्त के तौर पर अमेरिका चाहता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर खुले तौर पर उसका समर्थन करे. चाहे बात यूक्रेन युद्ध की हो, चीन की बढ़ती आक्रामकता की या फिर मध्य-पूर्व में अमेरिका की नीतियों की, भारत से अपेक्षा है कि वह वॉशिंगटन के पक्ष में खड़ा दिखाई दे.
एक न्यूज वेब से बातचीत में अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने बेहद आक्रामक लहजा अपनाया और भारत को लेकर बड़ा दावा किया. उन्होंने कहा कि भारत को बहुत जल्द अमेरिका से माफी मांगनी पड़ेगी. लुटनिक ने यहां तक कह डाला कि आने वाले एक-दो महीनों में भारत वार्ता की मेज पर होगा और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ समझौते के लिए कदम बढ़ाएगा.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि मौजूदा हालात में भारत के पास विकल्प सीमित हैं और वह अंततः अमेरिका के आगे झुकने को मजबूर होगा. लुटनिक ने दावा किया कि भारत माफी मांगते हुए व्यापार वार्ता की गुहार लगा सकता है ताकि दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य हो सकें.
लुटनिक के ख्वाब और मुंगेरी लाल के हसीन सपने!
लुटनिक ने सबसे पहले बाजार खोलने की शर्त रखी. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने हमेशा भारत के लिए अपने बाजार खुले रखे, लेकिन भारत ने अमेरिकी सामानों को वैसा मौका नहीं दिया. उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज में कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारत भी अपने बाजार अमेरिकी उत्पादों के लिए खोले. उन्होंने याद दिलाया कि ट्रंप भी कई बार इस मुद्दे पर नाराज़गी जाहिर कर चुके हैं और अब भारत को इस पर ठोस कदम उठाना होगा.
फिर रूस को लेकर भी शर्त रखी. लुटनिक ने कहा कि हाल के दिनों में भारत ने रूस से तेल खरीदना बढ़ा दिया है, जबकि यह तेल सीधे-सीधे यूक्रेन युद्ध में रूस की मदद कर रहा है. उन्होंने साफ कहा कि अगर भारत को अमेरिका का साथ चाहिए तो उसे रूस से तेल खरीद बंद करनी होगी.
और तो और BRICS को लेकर लुटनिक ने कहा कि ब्रिक्स देश डॉलर का विकल्प तलाश रहे हैं और भारत अगर इस गुट का हिस्सा बना रहता है तो यह अमेरिका के खिलाफ खड़ा होने जैसा है. उन्होंने साफ कर दिया कि भारत को ब्रिक्स से बाहर आना होगा और अमेरिका का समर्थन करना होगा.
लुटनिक यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा, “भारत चाहे तो रूस और चीन के बीच पुल बनने की कोशिश करे, लेकिन अंत में उसे अमेरिका का साथ देना ही होगा. भारत और अमेरिका के बीच अभी तनाव है, लेकिन बहुत जल्द भारत माफी मांगते हुए राष्ट्रपति ट्रंप के साथ बातचीत की टेबल पर बैठेगा. सौदा होगा, लेकिन यह पूरी तरह ट्रंप की शर्तों पर होगा और प्रधानमंत्री मोदी को ही इसे अंतिम रूप देना होगा.
भारत रूस से तेल खरीद को लेकर दे चुका है जवाब!
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रूस से तेल खरीद को लेकर जवाब दे दिया है. उन्होंने बीते दिन कहा कि भारत सरकार अपने राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर किसी भी तरह का फैसला लेगी. भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और अमेरिकी टैरिफ दर की वजह से हुए नुकसान को जीएसटी रिफॉर्म्स से काफी हद तक कम किया जा सकता है.
'बात चाहे रूस के तेल की हो या कोई दूसरी हो, हम इस आधार पर फैसले लेंगे की हमारे हित में क्या बेहतर है. इसलिए हम रूस से तेल खरीदना जारी रखेंगे.'
ट्रंप ने वैसे भारत के साथ रिश्तों पर पलटी मार ली है!
आपको बता दें कि शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ एक तस्वीर पोस्ट की और कहा कि ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया. ट्रंप ने 'ट्रुथ' सोशल पर लिखा, "लगता है हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है. ईश्वर करे कि उनका भविष्य समृद्ध हो!"
हालांकि उन्होंने अपने इस बयान से पलटी पारी और पीएम मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े. “मैं हमेशा पीएम मोदी का दोस्त रहूंगा. वह एक महान प्रधानमंत्री हैं. लेकिन मुझे इस समय उनकी कुछ नीतियां पसंद नहीं हैं. हालांकि भारत और अमेरिका का रिश्ता बहुत खास है और इसमें चिंता की कोई बात नहीं है. कभी-कभी ऐसे पल आते हैं.” उनके इस बयान को उनके पड़ते नरम तेवर के तौर पर देखा गया. उनके इस बयान पर पीएम मोदी ने भी प्रतिक्रिया दी और कहा कि मैं राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और दोनों देशों के संबंधों के प्रति उनके सकारात्मक आकलन की सराहना करता हूं. भारत और अमेरिका के बीच बहुत ही सकारात्मक, दूरदर्शी एवं वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है.
'भारत की अमेरिका को भी बहुत जरूरत'
जर्मन मार्शल फंड नाम के थिंक-टैंक में इंडो-पैसिफिक प्रोग्राम की मैनेजिंग डायरेक्टर बोनी ग्लेजर ने चेतावनी दी है कि अमेरिका की मौजूदा रणनीति, जिसमें वह भारत को उसकी विदेश नीति के फैसलों के बारे में "खुले तौर पर निर्देश दे रहा है", हालांकि इससे उसके मनमाफिक नतीजे मिलने की संभावना नहीं है. ग्लेसर ने साफ कहा कि ट्रंप प्रशासन यह मानता है कि भारत को अमेरिका की ज्यादा जरूरत है, जबकि सच्चाई तो ये है कि अमेरिका को भी भारत की उतनी ही जरूरत है. ग्लेसर ने आगे कहा कि ट्रंप सोशल मीडिया का इस्तेमाल विदेशी नेताओं और अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने के लिए करते हैं, लेकिन इस मामले में यह रणनीति शायद असरदार नहीं होगी.
भारत के साथ संबंधों को लेकर दुखी हैं ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी
ग्लेसर ने अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक के ब्रिक्स और रूस से तेल की खरीद बंद करने वाले बयानों और शर्तों पर भी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ट्रंप प्रशासन के कुछ अधिकारी रणनीतिक रूप से सोचते हैं, मुझे लगता है कि लुटनिक उनमें से एक हैं. पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले कई वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी कुछ ही महीनों में द्विपक्षीय संबंधों में आई गिरावट से हैरान और दुखी हैं."
जर्मन मार्शल फंड नाम के थिंक-टैंक में इंडो-पैसिफिक प्रोग्राम की मैनेजिंग डायरेक्टर बोनी ग्लेजर ने आगे कहा कि "अपनी हालिया पोस्ट में ट्रंप को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ कितने करीबी संबंध हैं. ट्रंप को यह भी लगता है कि इस बात को हाइलाइट करके वह इन नेताओं को असहज महसूस कराएंगे और वे अपनी नीतियों में बदलाव करेंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह बहुत प्रभावी होगा."
ग्लेजर ने यह भी कहा कि अमेरिका के साथ संबंध खराब होने के कारण, भारत "शायद यूरोप, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका के अन्य सहयोगी देशों के साथ कुछ क्षेत्रों में अपने संबंध मजबूत करना जारी रखेगा." अमेरिका के बारे में उनका मानना था कि अगर वाशिंगटन अकेले चीन का सामना करने की कोशिश करेगा तो वह असफल रहेगा.
उन्होंने कहा, "ट्रंप कोई रणनीतिकार नहीं हैं. उनका ध्यान अमेरिका को फिर से महान बनाने पर केंद्रित है. उनके नजरिए में इसके लिए चीन और अन्य मुद्दों पर साझेदारों व सहयोगियों के साथ तालमेल और सहयोग मजबूत करना जरूरी नहीं है. मेरे विचार से, अगर अमेरिका अकेले चीन से आने वाली चुनौतियों का सामना करने की कोशिश करेगा, तो वह असफल रहेगा."
भविष्य के हालात को देखते हुए, ग्लेसर ने आगाह किया है कि प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के बीच होने वाली एक फोन पर बातचीत जोखिम भरी हो सकती है. दोनों पक्षों को इसके बजाय 'कूलिंग-ऑफ पीरियड' तलाशना चाहिए.
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