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दोहा में जुट रहे 50 मुस्लिम देश, इजरायल के खिलाफ पाक भी है ऐक्टिव; क्या तैयारी

कतर पर इजरायल के हालिया हमले के बाद इस्लामिक देशों में उबाल है. दोहा में 50 मुस्लिम देशों के नेता जुट रहे हैं. हमले को रेड लाइन पार करना माना गया है और आशंका है कि यह मुद्दा अमेरिका पर दबाव बनाने तक जाएगा. वहीं तुर्की को भी खतरा महसूस हो रहा है क्योंकि वहां भी हमास नेताओं को शरण मिलती रही है.

दुनिया की राजनीति इन दिनों पश्चिम एशिया पर टिकी हुई है. कतर की राजधानी दोहा में आज एक अहम बैठक होने जा रही है, जिसमें करीब 50 मुस्लिम देशों के नेता एकजुट होंगे. यह बैठक ऐसे समय में हो रही है जब इजरायल ने बीते सप्ताह दोहा पर हमला किया था और दावा किया था कि उसने हमास के कई वरिष्ठ कमांडरों को मार गिराया है. इस घटना ने न सिर्फ इस्लामिक देशों को झकझोर दिया बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी हलचल पैदा कर दी.

दोहा पर हमला और उसका असर

दोहा पर इजरायल के हमले को इस्लामिक देशों ने 'रेड लाइन पार' करने जैसा बताया है. वजह साफ है, दोहा सिर्फ कतर की राजधानी नहीं बल्कि वह जगह भी है जहां लंबे समय से इजरायल और हमास के बीच मध्यस्थता की कोशिशें होती रही हैं, जब इजरायल ने वहां हमला किया तो संदेश यही गया कि अब वह किसी भी सीमा को पार करने से पीछे नहीं हटेगा, यही कारण है कि मुस्लिम देशों ने तुरंत आपात बैठक बुलाने का फैसला किया,

तुर्की की बढ़ती चिंता

इस हमले का असर तुर्की पर भी गहरा पड़ा है, इजरायल के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ एयाल जामिर ने हाल ही में बयान दिया था कि गाजा से बाहर मौजूद हमास नेतृत्व को भी निशाना बनाया जाएगा, तुर्की लंबे समय से हमास नेताओं को शरण और समर्थन देता रहा है, यही कारण है कि अंकारा को डर है कि कहीं अगला निशाना वही न बन जाए, तुर्की नाटो का अहम सदस्य है और अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी भी, लेकिन कतर पर हमला बताता है कि इजरायल ऐसे सहयोगियों की परवाह नहीं करता. यही कारण है कि तुर्की अब खुलकर इस समिट में सक्रिय भूमिका निभाने की तैयारी में है.

पाकिस्तान भी हो रहा एक्टिव

इस्लामिक देशों की इस बैठक में पाकिस्तान भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है. पाकिस्तान लंबे समय से फिलिस्तीन के मुद्दे पर मुखर रहा है. वहां की राजनीति में भी यह मुद्दा बड़ा प्रभाव डालता है. इस बैठक के ज़रिए पाकिस्तान एक बार फिर अपनी भूमिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करना चाहता है. माना जा रहा है कि पाकिस्तान इजरायल के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने और अमेरिका पर दबाव बनाने की वकालत करेगा.

अमेरिका पर बढ़ेगा दबाव

इस बैठक का सबसे बड़ा मकसद अमेरिका को संदेश देना है. कतर पर हमला उस देश पर हुआ है जहां अमेरिका का बड़ा सैन्य बेस है. फिर भी इजरायल ने वहां कार्रवाई करने से गुरेज नहीं किया. यह स्थिति वॉशिंगटन के लिए भी चुनौती है क्योंकि वह खुद कतर और तुर्की दोनों का सहयोगी है. मुस्लिम देशों का यह जुटान अमेरिका पर दबाव बढ़ा सकता है कि वह इजरायल पर लगाम लगाए. अगर ऐसा नहीं होता तो हालात और बिगड़ सकते हैं.

इजरायल की आक्रामक रणनीति

पिछले दो वर्षों में इजरायल ने यमन, लेबनान, ईरान, सीरिया, फिलिस्तीन और अब कतर में हमले किए हैं. यानी उसने छह देशों को सीधा निशाना बनाया है. यह सिलसिला बताता है कि इजरायल सिर्फ गाजा तक सीमित नहीं रहना चाहता. उसका मकसद हमास और उसके सहयोगियों को कहीं भी जाकर खत्म करना है. इस नीति ने इस्लामिक देशों की सुरक्षा चिंताओं को और गहरा दिया है.

कतर क्यों है खास

कतर पर हमला अपने आप में खास मायने रखता है. यहां अमेरिका का एयरबेस है और यह देश लंबे समय से पश्चिम एशिया की कूटनीति का अहम हिस्सा रहा है. अगर इजरायल ने इतनी मजबूत सुरक्षा वाले देश में हमला किया तो यह संदेश बाकी इस्लामिक देशों को भी गया कि कोई भी सुरक्षित नहीं है. यही वजह है कि अब तुर्की, सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे देश खुद को लेकर सतर्क हो गए हैं.

दोहा सम्मेलन का कैसा होगा प्रभाव 

अब सवाल यही है कि दोहा में हो रही इस बैठक से आखिर निकलने वाला क्या है. विशेषज्ञों का मानना है कि मुस्लिम देश इजरायल के खिलाफ एक संयुक्त बयान जारी करेंगे. इसके अलावा वे अमेरिका और यूरोपीय देशों पर दबाव बनाने की कोशिश करेंगे कि इजरायल की कार्रवाइयों पर अंकुश लगाया जाए. हालांकि यह भी सच है कि इन 50 देशों के बीच भी आपसी मतभेद हैं. सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते, तुर्की और मिस्र की खींचतान, पाकिस्तान और खाड़ी देशों की प्राथमिकताएं ये सभी फैक्टर तय करेंगे कि यह एकता कितनी मजबूत साबित होगी.

बता दें कि दोहा का यह सम्मेलन सिर्फ कतर या फिलिस्तीन का मुद्दा नहीं है. यह इस्लामिक देशों की एकजुटता की बड़ी परीक्षा है. इजरायल की आक्रामक नीति ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर आज कतर निशाना बन सकता है तो कल तुर्की, सऊदी या कोई और देश भी हो सकता है. यही कारण है कि इस बैठक पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं. आने वाले दिनों में यह तय होगा कि क्या मुस्लिम देश सचमुच इजरायल के खिलाफ एकजुट होकर दबाव बना पाएंगे या यह बैठक भी महज राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित रह जाएगी.

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