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ग्लोबल हो गया बिहार का पितृपक्ष मेला! गयाजी में रूस-यूक्रेन की महिलाओं ने भी किया पितरों का पिंडदान, VIDEO वायरल

Pitru Paksha Mela 2025: विश्व प्रसिद्ध बिहार का पितृपक्ष मेले में दुनियाभर से श्रद्धालु आए. यहां रूस-यूक्रेन के साथ-साथ कई देशों से आए लोगों ने अपने पितरों की शांति के लिए पूरी श्रद्धा के साथ पिंडदान किया. इस दौरान रूसी महिलाओं ने भारतीय वेशभूषा में अपने पूर्वजों के लिए दान-प्रदान और गयाश्राद्ध किया जिसका वीडियो अब वायरल हो रहा है.

तस्वीर: गया जी में रूसी महिलाओं ने किया पितरों को पिंडदान

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस अवधि में पितरों की आत्माएं धरती पर आती हैं. उनकी तृप्ति और शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. इस विधि में तिल का प्रयोग आवश्यक माना गया है, लेकिन खास बात यह है कि इसमें केवल काले तिल का ही प्रयोग किया जाता है. ये सनातन धर्म की एक ऐसी क्रिया और खूबसूरती है जहां न सिर्फ जीवित व्यक्ति के कल्याण की कामना होती है बल्कि इस दुनिया को छोड़ चुके लोगों की भी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान की जाती हैं. ऐसा लगता है ये भारत के साथ-साथ रूस के भी लोग समझने लगे हैं. इसी कारण आप देख रहे हैं कि बिहार के गया जी में इस बार भारी संख्या में रूस की महिलाओं ने अपने पितरों, पूर्वजों का पिंडदान पूरी श्रद्धा के साथ किया.

गया जी में दिखा अद्भुत दृश्य

​दुनियाभर में विश्व प्रसिद्ध बिहार के गयाजी में पितृपक्ष मेले में काफी अद्भुत दृश्य दिखा. यहां रूस और यूक्रेन से भी श्रद्धालु आए और  अपने पूर्वजों की आत्मशांति के लिए पिंडदान करते दिखे. अब इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वैसे तो ये वीडियो एक दिन पहले का बताया जा रहा है, लेकिन पितृपक्ष के अंतिम दिन 21 सितंबर को इसे तेजी से शेयर किया जा रहा है.

गया जी में रूसी महिलाओं ने किया पितरों का पिंडदान

आपको यहां बताना जरूरी हो जाता है कि ये दोनों देश ऐसे हैं जहां करीब 3 सालों से भीषण युद्ध चल रहा है. इसमें सैनिक के साथ-साथ सैकड़ों आम लोग भी मारे गए हैं. सोवियत संघ के समय से ही भारत के रूस के साथ काफी अच्छे संबंध रहे हैं और यहां पर सनातन के प्रति श्रद्धा और प्रेम तेजी से फैल रहा है. ऐसे में इनका गयाजी में आकर पिंडदान करना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. ऐसे समय में जब सनातनी ही अपने धर्म पर सवाल करने लगे हैं, क्वेश्चन करने लगे हैं, वहां पर विदेशी लोगों का इसमें अपनी श्रद्धा दिखाना शांति और धर्म के प्रति आस्था का एक मजबूत संदेश देता है.

पारंपरिक वस्त्र, चेहरे पर खुशी, मन मे श्रद्धा

​मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फल्गु नदी के किनारे स्थित देवघाट पर रूस, यूक्रेन, अमेरिका और स्पेन सहित विभिन्न देशों से आए करीब 17 विदेशी श्रद्धालुओं ने पूरी श्रद्धा के साथ अनुष्ठान किया. इस दौरान वे लोग पारंपरिक तरीके पूजा करते-मंत्रोच्चार करते दिख. यहां उनका भारतीय वेशभूषा धारण करना लोगों को अपनी तरफ खींच गया.
स्थानीय पंडों के नेतृत्व में हुए इस धार्मिक कर्मकांड के दौरान सभी ने मिलकर अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान-प्रदान, पूजा-पाठ में भाग लिया. यह बताने के लिए काफी है कि सनातन धर्म किसी प्रेशर, बाउंड्री, लोभ-प्रलोभन का मोहताज नहीं है.

रूसी श्रद्धालु ने शेयर किया भावुक अनुभव

​मीडिया से बात करते हुए एक रूसी श्रद्धालु सियाना ने कहा कि उवके लिए ये ‘अविस्मरणीय अनुभव’ है. उन्होंने आगे कहा कि गयाजी की आध्यात्मिक भूमि और यहां की संस्कृति से वो बहुत प्रभावित हैं. सियाना यह भी कहा कि पिंडदान पितरों के प्रति प्रेम, श्रद्धा और आस्था दर्शाता है, जो कि सबसे बड़ी चीज है.

क्या है पिंडदान का महत्व?

गरुड़ पुराण के अनुसार, काले तिल और कुशा दोनों की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को अपने अत्याचारों से पीड़ित किया तो भगवान विष्णु अत्यंत क्रोधित हुए. उस समय उनके शरीर से पसीने की बूंदें निकलीं, जो पृथ्वी पर गिरकर काले तिल में परिवर्तित हो गईं. यही कारण है कि काले तिल को दिव्य और पवित्र माना जाता है. चूंकि भगवान विष्णु पितरों के आराध्य माने जाते हैं, इसलिए पितृ तर्पण में काले तिल का विशेष महत्व है.

कैसे होते हैं पितरे प्रसन्न?

मान्यता है कि काले तिल में पितरों को आकर्षित करने और तर्पण स्वीकार करवाने की शक्ति होती है. जब जल के साथ काले तिल अर्पित किए जाते हैं, तो पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था से ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.

क्या है काले तिल का महत्व?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पितृ दोष से जुड़े ग्रह शनि, राहु और केतु को शांत करने के लिए काले तिल का उपयोग किया जाता है. श्राद्ध के दौरान काले तिल अर्पित करने से इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और परिवार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. माना जाता है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.

यहां यह समझना आवश्यक है कि श्राद्ध और तर्पण में केवल काले तिल का उपयोग होता है, सफेद तिल का नहीं. ज्योतिष में सफेद तिल का संबंध चंद्रमा और शुक्र से माना जाता है. इसका उपयोग शुभ कार्यों, प्रसाद और सुख-समृद्धि से जुड़े कर्मकांडों में होता है. जबकि पितृ कर्म गंभीर और आत्मा की शांति से जुड़ा अनुष्ठान है, इसलिए उसमें काले तिल को ही प्रधानता दी जाती है.

श्राद्ध विधि में काले तिल के साथ-साथ कुशा का प्रयोग भी आवश्यक है. कुशा को पवित्र माना गया है क्योंकि इसकी जड़ में भगवान ब्रह्मा, मध्य में भगवान विष्णु और शीर्ष पर भगवान शिव का वास माना जाता है. इस कारण पितृ कर्म में कुशा का प्रयोग अनिवार्य है. हालांकि, पूजा-पाठ जैसे शुभ कार्यों में भी इसका उपयोग किया जाता है.

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