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बिहार में SIR से 'इंडिया गठबंधन' के डर की असली वजह आई सामने, सियासी जमीन खिसकने का खतरा? कई सीटें होंगी प्रभावित!

चुनाव आयोग बिहार की तरह पूरे देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) करवाने पर काम कर रहा है. विपक्ष आने वाले बिहार चुनाव से पहले इस प्रक्रिया के खिलाफ देश भर में बवाल किए हुए है. विपक्ष को इसकी वजह से अपनी चुनावी जमीन खिसकने का डर सता रहा है.

बिहार में महागठबंधन का SIR के खिलाफ विरोध राजनीतिक है. लेकिन, 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों के परिणाम को देखे तो साफ है कि विपक्ष को इसकी वजह से अपनी चुनावी जमीन खिसकने का डर सता रहा है. विपक्ष को डर है कि एसआईआर की वजह से बहुत कम मार्जिन से हार या जीत वाली सीटों की लिस्ट लंबी हो सकती है, जिससे विपक्ष फिर सत्ता से दूर रह सकती है. 

1 प्रतिशत वोटर कटा तो 35 सीटों के नतीजे प्रभावित 

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले की हिलसा विधानसभा सीट के नतीजों ने राष्ट्रीय स्तर पर खूब सुर्खियां बटोरी थीं. इस सीट पर सत्ताधारी जेडीयू और विपक्षी आरजेडी दोनों के उम्मीदवारों को ही 37.35% वोट मिले थे. लेकिन, इसे अंकों में करने पर जेडीयू प्रत्याशी कृष्णमुरारी शरण उर्फ प्रेम मुखिया ने 12 वोटों से बाजी मार ली. उन्हें 61,848 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी आरजेडी के शक्ति सिंह यादव को 61,836 वोट आए थे.

एडीआर (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रैटिक रिफॉर्म्स ) के आंकड़ों के मुताबिक पिछली बार बिहार में 52 ऐसी सीटें थीं, जिसमें 5,000 से कम वोटों के अंतर से नतीजे तय हुए थे. वहीं 35 सीटें तो ऐसी थीं, जहां 1% से कम या 3,000 से भी कम वोटों के अंतर से हार-जीत का फैसला आया था. एसआईआर का विरोध करते हुए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कुछ दिन पहले यही चिंता जता चुके हैं कि अगर 1% वोटरों का भी नाम कटा तो 35 सीटों के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं. विपक्ष इस सच्चाई से इतना डरा हुआ है कि उसने चुनाव बहिष्कार तक की धमकी दे रखी है.

2020 के नतीजों से डरा विपक्ष 

बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं. एडीआर के अनुसार 3 सीटों पर 200 से कम वोटों के अंतर से फैसला आया था और 4 सीटों पर यह अंतर 500 से कम वोटों का था. 4 सीटें ऐसी थीं, जहां मार्जिन 1,000, 1,500, 2,000, 3,000 वोटों से कम थी. ऐसी ही 5 सीटें और थीं, जहां 2,500 से कम मतों के अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ था. 

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर फैक्टर की वजह से भी एनडीए और महागठबंधन की सांसें अटक सकती हैं. पटना के एक राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ संजय कुमार ने बताया है कि सत्ताधारी और विपक्षी दोनों ही गठबंधनों को जन सुराज पार्टी से सावधान रहना चाहिए. प्रशांत किशोर की रैलियों में खुद से पहुंचने वाले युवाओं की भीड़ को देखते हुए उन्होंने कहा, '...अगर एसआईआर से नहीं तो प्रशांत किशोर तो जरूर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ओर के वोट काटेंगे. अगर पिछले विधानसभा चुनाव में 35 सीटों पर जीत का मार्जिन 3,000 वोट से कम था...तो सभी दलों को पीके (प्रशांत किशोर) से सावधान रहना होगा, जिन्हें प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों में कम से कम 1,000 से 3,000 वोट जरूर मिलेंगे.

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