बिहार में तेजी से बदल रहा जमीनी मिजाज, नीतीश की सक्रियता के आगे फीकी पड़ रही तेजस्वी की उर्जा, सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले नतीजे!
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले वोट वाइब ने सर्वे किया, जिसमें 5635 लोगों की राय ली गई. सर्वे में सामने आया कि 48% मतदाता नीतीश सरकार के खिलाफ हैं, जबकि 27% समर्थन में हैं और 20% तटस्थ हैं. शहरी और ग्रामीण, पुरुष और महिलाएं सभी वर्गों में एंटी-इनकंबेंसी समान दिखी. सर्वे राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की हालिया वोटर यात्रा के बाद हुआ और बदलाव की झलक दिखाता है.
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बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा अभी बाकी है, लेकिन राज्य का सियासी तापमान तेजी से बढ़ने लगा है. राजनीतिक दल अपनी रणनीतियां बनाने में जुट गए हैं और जनता के बीच माहौल भी धीरे-धीरे साफ होता नजर आ रहा है. इसी बीच वोट वाइब (Vote Vibe) नाम की एजेंसी ने हाल ही में एक सर्वे किया है, जिसके नतीजों ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है.
दरअसल, यह सर्वे 3 सितंबर से 10 सितंबर के बीच कराया गया और इसमें कुल 5635 लोगों की राय ली गई. खास बात यह है कि यह सर्वे ठीक उसी समय हुआ जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा बिहार में समाप्त हुई थी. ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि बिहार की जनता किन मुद्दों पर सोच रही है और उनका झुकाव किस ओर है.
सर्वे में किनकी राय शामिल हुई?
सर्वे में भाग लेने वालों की संख्या 5635 रही, जिनमें 52% पुरुष और 48% महिलाएं थीं. जातिगत आधार पर देखें तो अनुसूचित जाति से 20% लोगों ने भाग लिया, अनुसूचित जनजाति से 2% लोग शामिल हुए. पिछड़े वर्ग यानी OBC की भागीदारी सबसे अधिक 44% रही, जबकि सवर्ण हिंदुओं की हिस्सेदारी 16% रही. मुस्लिम समुदाय से 18% लोगों की राय ली गई. इसके अलावा अन्य वर्गों से लगभग 1% लोगों ने हिस्सा लिया. अगर क्षेत्र की बात करें तो 30% शहरी और 70% ग्रामीण लोगों की राय शामिल की गई. यानी सर्वे में बिहार के हर तबके की आवाज को जगह देने की कोशिश की गई है.
नीतीश सरकार पर जनता की राय
सर्वे का सबसे अहम सवाल यही था कि जनता नीतीश कुमार की सरकार के बारे में क्या सोचती है. नतीजे चौंकाने वाले रहे.
- 48% लोगों ने कहा कि वे मौजूदा सरकार के खिलाफ हैं और राज्य में एंटी-इनकंबेंसी की लहर है.
- 27.1% लोगों ने साफ कहा कि वे नीतीश सरकार के समर्थन में हैं.
- 20.6% लोगों ने खुद को तटस्थ बताया.
- जबकि 4.3% लोग ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि वे कुछ नहीं कह सकते.
ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में सत्ताधारी गठबंधन और ख़ासतौर से नीतीश कुमार के लिए चुनाव में विपक्ष की एकजुटता और प्रचार अभियान का तरीका बड़ी चुनौती भी बन सकता है. हालांकि समर्थन और तटस्थ मतदाताओं की संख्या भी कम नहीं है, लेकिन विरोध का ग्राफ अधिक दिख रहा है.
शहरी और ग्रामीण इलाकों के लोगों की क्या है राय?
शहरी और ग्रामीण दोनों ही इलाकों में विरोध की लहर लगभग बराबर है.
- शहरी क्षेत्रों में 48% लोगों ने सरकार के खिलाफ राय दी, जबकि 31% ने समर्थन किया और 17% लोग तटस्थ रहे.
- ग्रामीण इलाकों में भी 48% ने एंटी-इनकंबेंसी की बात कही, 25% ने समर्थन किया और 22% तटस्थ रहे.
- यहां साफ दिखता है कि चाहे शहर हो या गांव, दोनों ही जगह लोगों की नाराजगी का स्तर लगभग समान है.
महिलाओं और पुरुषों की राय
आमतौर पर माना जाता है कि महिलाएं सत्ता के पक्ष में थोड़ा नरम रुख अपनाती हैं, लेकिन इस सर्वे ने यह मिथक तोड़ दिया.
- पुरुष और महिलाएं, दोनों ही 48% तक सरकार से नाराज दिखे.
- समर्थन में 29% पुरुष और 25% महिलाएं रहीं.
- तटस्थ रहने वालों में 20% पुरुष और 22% महिलाएं शामिल थीं.
इससे साफ है कि एंटी-इनकंबेंसी की भावना समाज के हर वर्ग और लिंग में समान रूप से मौजूद है. लेकिन चुनाव में अभी दो से तीन महीने का समय बचा है. और अंतिम समय में जनता का मूड बदलता भी है.
क्या नीतीश फैक्टर अब कमजोर हो रहा है?
नीतीश कुमार लंबे समय से बिहार की राजनीति का केंद्र रहे हैं. उन्हें विकास पुरुष और सुशासन बाबू कहा जाता रहा है. लेकिन यह सर्वे दिखाता है कि अब जनता बदलाव चाहती है. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की हाल की यात्राओं ने विपक्ष को मजबूती दी है. भले ही यह सर्वे यह नहीं बताता कि इसका सीधा फायदा कांग्रेस या राजद को मिलेगा, लेकिन यह जरूर साबित करता है कि नीतीश सरकार के खिलाफ नाराजगी गहराती जा रही है. खासकर युवा, महिलाएं और ग्रामीण मतदाता अब नए विकल्पों की तलाश में हैं. यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि चुनाव में इसका नतीजा क्या होगा, लेकिन इतना तय है कि नीतीश कुमार और एनडीए के लिए यह चुनाव आसान नहीं रहने वाला है.
बता दें कि बिहार की राजनीति हमेशा जाति समीकरण और नेतृत्व पर आधारित रही है. इस सर्वे से जो तस्वीर सामने आई है, वह बताती है कि जनता अब नए विकल्पों की तलाश कर रही है. नीतीश कुमार के खिलाफ बढ़ती नाराजगी विपक्ष के लिए मौका हो सकती है, लेकिन उसे जनता के बीच भरोसा जीतने के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी. दूसरी ओर, एनडीए भी यह जानता है कि एंटी-इनकंबेंसी एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में बीजेपी और जेडीयू दोनों को जनता को साधने के लिए नए मुद्दे और वादे सामने रखने होंगे.
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