पटना में अब रैली नहीं पदयात्रा होगी... वोटर अधिकार यात्रा के समापन के लिए महागठबंधन ने बदली रणनीति, जानिए इसके पीछे की वजह
बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का समापन अब रैली नहीं बल्कि 1 सितंबर को पटना मार्च से होगा. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक पदयात्रा से जनता की भागीदारी और उत्साह ज्यादा दिखेगा, इसलिए रणनीति बदली गई है.
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बिहार विधानसभा चुनाव में अब महज दो से तीन महीने का समय बचा है. ऐसे में सत्ताधारी एनडीए से लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन के दल चुनावी तैयारियों में पूरी ताकत झोंक रहे हैं. इसी कड़ी में विपक्ष की ओर से निकाली जा रही ‘वोटर अधिकार यात्रा’ अब राज्य की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन चुकी है. खास बात यह है कि इस यात्रा के समापन को लेकर महागठबंधन ने अपनी रणनीति बदली है. पहले जहां इसे एक बड़ी रैली के साथ खत्म करने का ऐलान किया गया था, अब नेताओं ने फैसला किया है कि 1 सितंबर को राजधानी पटना में इस यात्रा का समापन एक मार्च के रूप में किया जाएगा.
रणनीति में बदलाव क्यों हुआ?
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन नेताओं का मानना है कि पदयात्रा और मार्च से जनता की भागीदारी और उत्साह ज्यादा देखने को मिलेगा. कई बड़े नेता पहले ही यात्रा के अलग-अलग चरणों में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में सभी को दोबारा पटना में रैली के लिए जुटाना व्यावहारिक तौर पर उतना असरदार नहीं होता. यही कारण है कि अब इस यात्रा का समापन एक बड़े मार्च के जरिए करने का निर्णय लिया गया है.
पहले रैली करने का था प्लान
कांग्रेस महासचिव के. सी. वेणुगोपाल ने पहले घोषणा की थी कि 1 सितंबर को पटना में विशाल वोटर अधिकार रैली होगी. उन्होंने कहा था कि इस रैली के जरिए बिहार की जनता "वोट चोरों" को कड़ा संदेश देगी. लेकिन अब बदली हुई रणनीति के तहत पटना में रैली की जगह पदयात्रा निकाली जाएगी. विपक्षी दलों को विश्वास है कि यह कदम जनता से सीधा जुड़ाव बनाने में ज्यादा कारगर साबित होगा.
बाइक राइड ने बढ़ाया जोश
यात्रा के दौरान कई रोचक पल भी देखने को मिले. बुधवार को राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने मुजफ्फरपुर में बाइक राइड कर कार्यकर्ताओं में उत्साह भर दिया. इस दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा भी राहुल गांधी की बाइक पर पीछे बैठी नजर आईं. रास्ते भर जगह-जगह लोग खड़े होकर नेताओं का स्वागत करते रहे और यात्रा का माहौल बेहद जोशीला रहा. यह नजारा विपक्ष के लिए ऊर्जा और जनता से जुड़ाव दोनों का प्रतीक माना गया.
यात्रा क्यों निकाली जा रही है
‘वोटर अधिकार यात्रा’ दरअसल चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के खिलाफ चलाई जा रही है. विपक्ष का आरोप है कि आयोग मतदाता सूची में धांधली कर रहा है और लाखों मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं. कांग्रेस और महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों का कहना है कि यह सीधे तौर पर लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है. इसलिए इस यात्रा का उद्देश्य मतदाता सूची से जुड़े मुद्दों को जनता के बीच ले जाना और उनके अधिकार की लड़ाई को सड़क से सदन तक उठाना है.
यात्रा का सफर और दूरी
यह यात्रा 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई थी. कुल 16 दिनों तक चलने वाली यह पदयात्रा 1,300 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. यात्रा का अंतिम पड़ाव पटना होगा, जहां 1 सितंबर को इसका समापन मार्च के रूप में होगा. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हो रही यह यात्रा विपक्ष के लिए एक बड़े राजनीतिक संदेश के तौर पर देखी जा रही है. पिछले दिनों यह यात्रा गया जी, नवादा, शेखपुरा, लखीसराय, मुंगेर, कटिहार, पूर्णिया, मधुबनी और दरभंगा जिलों से होकर गुजर चुकी है. आगे के कार्यक्रम के तहत यह सीतामढ़ी, पश्चिम चंपारण, सारण, भोजपुर और अंत में पटना जिले में प्रवेश करेगी. हर जिले में कार्यकर्ताओं और आम जनता का उत्साह देखते ही बन रहा है.
यात्रा के राजनीतिक मायने क्या है?
बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने और समझने वालों की मानें तो ‘वोटर अधिकार यात्रा’ विपक्ष के लिए दोहरे फायदे वाली रणनीति है. पहला, मतदाता सूची में गड़बड़ी के मुद्दे को जनता के बीच जोरदार ढंग से उठाया जा रहा है. दूसरा, इस यात्रा के बहाने राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की संयुक्त मौजूदगी से गठबंधन की एकजुटता का संदेश दिया जा रहा है. वहीं, एनडीए इस यात्रा को विपक्ष की हताशा बताकर सवाल उठा रहा है. सत्ता पक्ष का कहना है कि यह यात्रा सिर्फ राजनीतिक नाटक है और इसका कोई असर नहीं होगा. हालांकि विपक्षी नेताओं को भरोसा है कि इस अभियान से जनता का जुड़ाव बढ़ेगा और चुनाव में माहौल बदलने में मदद मिलेगी.
बताते चलें कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने राजनीतिक हलचल को और तेज कर दिया है. रैली की जगह पटना मार्च का फैसला विपक्ष की बदलती रणनीति को दर्शाता है. जनता से सीधे जुड़ाव और उत्साह दिखाने का यह प्रयास चुनावी समीकरणों पर कितना असर डालेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन इतना तय है कि इस यात्रा ने बिहार की सियासत को नई बहस और नए जोश से भर दिया है.
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