नीतीश कुमार की रणनीति, मुफ्त योजनाओं की बहार… बिहार विधानसभा चुनाव में निर्णायक साबित होंगे ये 4 बड़े फैक्टर
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में सियासी तैयारियां तेज हो गई हैं. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार का यह आखिरी बड़ा मुकाबला है, जहां उनके महिलाओं और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में लोकप्रियता का असर एनडीए के लिए निर्णायक होगा, जबकि सत्ता विरोधी रुझान, भ्रष्टाचार के आरोप और विपक्षी चुनौतियां उनके सामने हैं.
Follow Us:
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद सियासी दलों की तैयारियों ने और जोर पकड़ लिया है. इस चुनाव के लिए सत्ता पक्ष की एनडीए और विपक्ष की इंडिया महागठबंधन दोनों में अब सीट शेयरिंग को अंतिम रूप दिया जा रहा है. बीते सोमवार को देश की राजधानी दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने चुनाव की तारीख का ऐलान करते हुए बिहार विधानसभा चुनाव को 'सभी चुनावों की मां' करार दिया और इसे कई मायनों में खास बताया. यह चुनाव न सिर्फ बिहार के भविष्य के लिए बल्कि राज्य की राजनीति के लिए भी निर्णायक साबित होने वाला है. यह चुनाव कई बड़े नेताओं की साख और प्रतिष्ठा का इम्तिहान भी है. आज हम अपनी इस रिपोर्ट में उन कारकों पर नजर डालते हैं, जो इस चुनाव की दशा और दिशा दोनों तय करेंगे.
नीतीश कुमार का निर्णायक चुनाव
पिछले लगभग दो दशकों से बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक अहम चेहरे के रूप में सामने रहे हैं. माना जा रहा है कि यह चुनाव उनके लिए अब तक का सबसे बड़ा और संभवतः आखिरी महत्वपूर्ण मुकाबला होगा. इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि महिलाओं और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के बीच उनकी लोकप्रियता एनडीए के लिए कितना प्रभाव डालती है. बार-बार हुए गठबंधन परिवर्तनों के बावजूद नीतीश हमेशा राजनीतिक समीकरण के केंद्र में रहे हैं. लेकिन इस चुनाव में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. जैसे, अपने विधायकों के बीच सत्ता विरोधी रुझान, मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, तेजस्वी यादव की चुनौती और कांग्रेस की फिर से सक्रिय होती राजनीतिक मौजूदगी.
चिराग और मुकेश सहनी की भूमिका डालेगी कैसा प्रभाव?
साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में लोजपा नेता चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ा थे, जिससे जेडीयू को काफी नुकसान हुआ और नीतीश कुमार की तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी पार्टी केवल 43 सीट पर सिमट गई थीं. हालाँकि इस बार एनडीए के लिए राहत की बात है कि चिराग की पार्टी लोजपा (राम विलास) गठबंधन में शामिल हो गई है और वे अब संयुक्त रूप से चुनावी मैदान में ताल ठोकेंगे. एनडीए विशेष रूप से चिराग के लगभग 5% वोट बैंक पर भरोसा कर रहा है, जो इस बार निर्णायक साबित हो सकता है. वहीं, वीआईपी नेता मुकेश सहनी का रुख भी इस चुनाव में अहम है. 2020 में एनडीए के साथ रहे सहनी ने चार सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी, लेकिन अब वे इंडिया महागठबंधन के साथ हैं. सीट बंटवारे की बातचीत अभी जारी है, और इंडिया गठबंधन खासकर मिथिलांचल, सीमांचल और चंपारण में सहनी के निषाद समुदाय के प्रभाव का राजनीतिक लाभ उठाने की योजना बना रहा है.
चुनावी माहौल में मुफ्त योजनाओं का हल्लाबोल
बिहार के इस चुनाव में नीतीश कुमार की एनडीए सरकार ने पहली बार मुफ्त योजनाओं और नकद हस्तांतरण पर खास जोर दिया है. यह उनकी पारंपरिक रणनीति से अलग है, जिसमें पहले चुनाव बाद वादों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित रहता था. आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले सोमवार को, मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 21 लाख महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये सीधे ट्रांसफर किए गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने महिलाओं को 10,000 रुपये प्रति लाभार्थी के हिसाब से कुल 12,100 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए जा चुके हैं. इसके अलावा, 29 लाख अन्य लाभार्थियों के लिए शेड्यूल तैयार किया गया है, लेकिन आगे के भुगतान के लिए चुनाव आयोग की मंजूरी आवश्यक है. इस योजना के अलावा, पेंशन राशि को 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है, और कई सरकारी कर्मचारियों के मानदेय में वृद्धि की गई है. लगभग 16 लाख श्रम कार्ड धारकों को वर्दी के लिए 5,000 रुपये दिए गए और 2 लाख स्नातकों को पहली किस्त के रूप में 1,000 रुपये की राशि दी गई है. ये कदम एनडीए की चुनावी रणनीति को मजबूत करने और जनता के बीच समर्थन बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं.
प्रशांत किशोर का चुनावी दांव
चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने अपनी नई पार्टी 'जन सुराज' की शुरूआत की है और पिछले तीन साल से राज्यभर में सक्रिय प्रचार कर रहे हैं. उनके द्वारा सरकार के तमाम मंत्रियों पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप पूरे राज्य में चर्चा का विषय बने हुए है. जिससे न केवल सत्ताधारी बल्कि विपक्षी गठबंधन भी सतर्क हो गए हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या किशोर इस चर्चा को वोटों में बदलने में कामयाब होंगे.
बताते चलें कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव कई लिहाज से ऐतिहासिक साबित होने जा रहा है. नीतीश कुमार की राजनीतिक पकड़, चिराग पासवान और मुकेश सहनी जैसे नेताओं की भूमिका, मुफ्त योजनाओं का असर और प्रशांत किशोर जैसे नए खिलाड़ी की एंट्री इस चुनाव को बेहद रोमांचक बना रही है. अब फैसला पूरी तरह जनता के हाथ में है कि वह किसे सत्ता की कमान सौंपती है.
Advertisement
यह भी पढ़ें
Advertisement