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धमाकेदार शुरुआत से निराशाजनक अंत तक... आखिर कहां चूक गई तेजस्वी की रणनीति? जानें महागठबंधन की हार की असली वजह

Bihar Election Result 2025: बिहार चुनाव नतीजों में एनडीए को जनता का प्रचंड समर्थन मिला और नीतीश कुमार पर भरोसा बरकरार रहा. वहीं राघोपुर से जीतने के बावजूद तेजस्वी यादव मतगणना के दौरान कई बार पीछे रहे, जिससे साफ हुआ कि जनता का भरोसा कमज़ोर पड़ा. महागठबंधन में तेजस्वी को सीएम फेस बनाने पर भी पूरी एकमतता नहीं थी, और उनकी आक्रामक प्रचार शैली जनता को नेतृत्व के भरोसे की कसौटी पर संतुष्ट नहीं कर सकी.

Tejashwi Yadav (File Photo)

Bihar Chunav Result: बिहार विधानसभा चुनाव का नतीजा आते ही सूबे की राजनीति में नई हलचल शुरू हो गई है. जनता ने एक बार फिर अपने भरोसे की मुहर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर लगाई है. मतदाताओं ने जिस तरह एनडीए को प्रचंड बहुमत दिया, उसने साफ कर दिया कि जनता ने विकास, सुशासन और स्थिर सरकार को तरजीह दी. दूसरी तरफ विपक्ष को यह समझना होगा कि लोकतंत्र में हार जितनी बड़ी सीख देती है, उतना कोई और अनुभव नहीं देता. ऐसे में चुनाव आयोग, निर्वाचन अधिकारी या सत्ता पक्ष पर सवाल उठाने से बेहतर है कि विपक्ष अपने अंदर झांककर देखे कि रणनीति में आज की राजनीतिक ज़रूरतों के हिसाब से कहां कमी रह गई.

सबसे दिलचस्प बात यह रही कि लालू यादव के छोटे बेटे और महागठबंधन के सीएम फेस राघोपुर से तेजस्वी यादव भले ही अंत में जीत दर्ज कर गए, लेकिन मतगणना के दौरान कई बार वह बीजेपी के प्रतिद्वंदी सतीश कुमार से पीछे होते दिखाई दिए. ये उतार-चढ़ाव इस बात का संकेत थे कि जनादेश में भरोसा पहले जैसा नहीं रहा. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि आखिर तेजस्वी से चूक कहाँ हुई. क्यों जनता ने उन्हें व्यापक समर्थन नहीं दिया, जबकि शुरुआती प्रचार में वह सबसे ज्यादा चर्चित चेहरा थे.

महागठबंधन में नहीं था एकमत 

तेजस्वी यादव को महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार जिस अंदाज में घोषित किया गया था, उसने शुरुआत में ही माहौल बना दिया था. खुद गठबंधन के अंदर कई दल इस फैसले से पूरी तरह सहमत नहीं थे, लेकिन तेजस्वी ने अपने युवा उत्साह और आक्रामक प्रचार शैली से चुनाव में हलचल जरूर पैदा की. हालांकि, राजनीति सिर्फ शोर और भीड़ का खेल नहीं है. यह समझना जरूरी था कि जनता सिर्फ भाषणों से प्रभावित नहीं होती, बल्कि भरोसे की कसौटी पर खरा उतरने वाले नेतृत्व की तलाश करती है.

क्रिकेट से सियासत का सफर 

तेजस्वी ने पिछले कुछ वर्षों में राजनीति में अपनी पहचान जरूर बनाई है. क्रिकेटर के तौर पर असफल होने के बाद उनका राजनीति में आना और तेजी से आगे बढ़ना एक दिलचस्प सफर रहा है. 25 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बनना भी कम उपलब्धि नहीं थी. लालू प्रसाद यादव ने बहुत पहले ही साफ कर दिया था कि तेजस्वी ही उनके असली उत्तराधिकारी होंगे. लेकिन उत्तराधिकारी बनने भर से ही राजनीतिक परिपक्वता नहीं आती. यह लगातार सीखने, समझने और जमीन से जुड़ने का खेल है. नीतीश कुमार के साथ सरकार में रहते हुए तेजस्वी की राजनीतिक छवि मजबूत होने लगी थी, लेकिन कथित अवैध जमीन सौदे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस ने उनकी छवि पर बड़ा दाग छोड़ा. उस समय यह कहना गलत नहीं होगा कि विरोधियों को एक बड़ा हमला करने का मौका मिल गया. इसी विवाद को आधार बनाकर नीतीश कुमार ने आरजेडी से नाता तोड़ लिया और एनडीए में वापसी कर ली. तेजस्वी की राजनीतिक यात्रा यहीं से मुश्किल मोड़ लेती दिखाई दी.

क्या रही हार की मुख्य वजह?

अब बात करते हैं इस चुनाव में आरजेडी को मिली हार की वजहों की. साल 2020 में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली आरजेडी का इस बार 25 सीटों पर सिमट जाना बताता है कि जनता के मन में कई सवाल थे. एनडीए ने लगातार ‘जंगलराज’ के मुद्दे को हवा दी और जनता को याद दिलाया कि आरजेडी की जीत का अर्थ पुराने दिनों में लौटना हो सकता है. चुनाव प्रचार के दौरान कुछ आरजेडी समर्थकों और उम्मीदवारों के बयानों ने भी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया. मंच पर अनुचित टिप्पणियों और नाबालिगों द्वारा हथियारों की भाषा बोलने जैसी घटनाओं पर पार्टी नेतृत्व की चुप्पी ने इस नैरेटिव को और मजबूत किया. इसके अलावा, तेजस्वी की रैलियों में महिलाओं की भागीदारी ना के बराबर दिखी. कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई कि महिला मतदाताओं के लिए अलग से कोई रणनीति नहीं बनाई गई. यह एक बड़ी चूक थी क्योंकि बिहार में पिछले कुछ चुनावों में महिलाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई है. दूसरी तरफ एनडीए ने ‘महिला सुरक्षा’ और ‘सशक्तिकरण’ जैसे मुद्दों को अच्छी तरह उठाया और राजनीतिक लाभ भी लिया.

RJD के वादों में खोखलापन 

तेजस्वी का सबसे चर्चित वादा था कि हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का कानून बनाया जाएगा. लेकिन इस वादे को जन सुराज और कुछ अन्य गैर-राजग दलों ने कठघरे में खड़ा किया. उन्होंने सवाल उठाए कि आखिर ऐसा वादा व्यावहारिक कैसे हो सकता है. जनता भी इस पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पाई. कुल मिलाकर, तेजस्वी यादव की हार सिर्फ राजनीतिक रणनीति की कमी नहीं बल्कि जनभावनाओं को समझने में आई कमी का परिणाम भी है. जनता हर चुनाव में नए नेतृत्व को मौका देने के लिए तैयार रहती है, लेकिन भरोसे और स्थिरता की तलाश उससे भी बड़ी प्राथमिकता होती है. तेजस्वी ने भले ही उत्साह और ऊर्जा से चुनाव लड़ा, लेकिन बड़े फैसलों, जमीन से जुड़ाव और टीम मैनेजमेंट जैसे पहलुओं पर काम की जरूरत अभी बाकी है.

बताते चलें कि बिहार चुनाव का यह नतीजा यह संदेश देता है कि राजनीति सिर्फ लोकप्रियता का खेल नहीं है. यह समझ, विश्वास और लंबे समय तक जनता के बीच बने रहने का नाम है. बिहार के इस परिणाम ने महागठबंधन को मौका दिया है कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार करे और आने वाले समय के लिए नई रणनीति तैयार करे. जनता सब जानती है और सही समय पर सही फैसला करना भी जानती है.

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