संघर्ष, सादगी और सियासत... बिहार चुनाव में तेज प्रताप की बढ़ रही जमीनी पकड़, जानें किसके लिए खतरे की घंटी
Bihar Election 2025: बिहार चुनाव में तेज प्रताप यादव अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल के साथ सक्रिय हैं. परिवार से अलग होकर वे सादगी भरे अंदाज में जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं. छोटी-छोटी रैलियों में बढ़ती भीड़ उनके बढ़ते प्रभाव का संकेत दे रही है. महाभारत और भगवान कृष्ण के उदाहरणों के जरिए वे जातिवाद से दूर रहने और सभी वर्गों को जोड़ने की बात कर रहे हैं.
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Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान के लिए अब लगभग एक हफ्ते का समय बचा है. इस चुनाव में भले ही सीधी लड़ाई सत्तारूढ़ एनडीए या विपक्ष की इंडिया गठबंधन के बीच हो लेकिन कुछ नई पार्टियां इस चुनाव में बड़े दलों का खेल बिगाड़ सकती हैं. उन्ही में से एक है लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की जनशक्ति जनता दल. तेज प्रताप यादव विधानसभा चुनाव में जनता के बीच अपनी पार्टी के प्रत्याशी के लिए जमकर प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं.
अलग पहचान बना रहे तेज प्रताप यादव
विधानसभा चुनाव में पहली बार परिवार से अलग होकर चुनावी रण में खुद के दम पर कूदें तेज प्रताप यादव चेहरे पर फीकी मुस्कान और आंखों में उम्मीद लिए सफेद कुर्ता-पैजामा बेहद सादगी भरे अंदाज में जनता के बीच पहुंच रहे है. इस दौरान उनकी सभाओं में काफी भीड़ भी देखने को मिल रही है. तेज प्रताप की रैलियों में ना तो जनसभा के लिए बड़े मंच तैयार हो रहे हैं ना तो अन्य दलों की तरह गाड़ियों का काफिला लेकिन उनकी छोटी-छोटी रैलियां और उसमें उमर रही भीड़ उनके हौसलें को लगातार बुलंद कर रही है. तेज प्रताप जिस अंदाज में लोगों से मिल रहे हैं वो स्थानीय जनता को काफी प्रभावित कर रहा है. वो कभी अपनी कार के छत पर सवार होकर तो कभी किसी गांव के मोहल्ले में घूमते हुए किसी के किसी नुक्कड़ पर रुककर लोगों के सामने अपनी बात रख रहे हैं. लेकिन उनको सुनने के लिए खुद स्थानीय लोग पहुंच रहे हैं. जो इस बात का संकेत है कि तेज प्रताप को हल्के लेना कई पार्टियों के लिए भारी पड़ सकता है. खासतौर पर वो जिन विधानसभा सीटों पर प्रचार के लिए पहुंच रहे हैं उन जगहों पर अन्य दलों के लिए खतरा बन सकते हैं चाहे वो आरजेडी हो या फिर जेडीयू, कांग्रेस या फिर बीजेपी. उनका सादगी भरा अंदाज कई कई नेताओं पर भारी पड़ सकता है.
छोटी और सुनियोजित रैली कर रहे तेज प्रताप
तेज प्रताप यादव की रैलियों में जो नज़ारा देखने को मिलता है, वह किसी अव्यवस्था या अफरातफरी का नहीं, बल्कि उनके अपनापन भरे अंदाज का परिणाम है. मंच पर लोग चढ़ रहे हैं क्योंकि तेज प्रताप हर किसी से खुलकर, दिल से बात करते हैं. वो अपने भाषणों में हल्के-फुल्के अंदाज़ में अपनी बात रखते हैं, जिससे भीड़ को लगता है कि वे उनसे जुड़ सकते हैं. इस दौरान तेज प्रताप खुलकर बताते हैं कि कैसे उन्हें परिवार और पार्टी से अलग कर दिया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. अब वे अकेले ही संघर्ष के मैदान में उतर पड़े हैं. रैलियों में वे महाभारत का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जैसे अगर कौरवों ने पांडवों को पांच गांव दे दिए होते, तो युद्ध टल सकता था. वैसे ही अगर उन्हें भी पांच गांव मिल जाते, तो हालात कुछ और होते. कई जगहों पर तेज प्रताप यादव भगवान कृष्ण का “यदा-यदा हि धर्मस्य...” श्लोक बोलते हुए कह रहे है कि वे खुद को जातिवाद से दूर रखे हैं. इस तरह वे समाज से जुड़ाव भी दिखाते हैं और साथ ही सभी जातियों तक अपनी बात पहुँचाने की कोशिश करते हैं.
लालू जैसा हुबहू अंदाज
तेज प्रताप यादव अपने भाषणों में यह जताने से कभी पीछे नहीं हटते कि वे किसी हवाई नेता नहीं, बल्कि धरातल से जुड़े जननेता हैं. वो अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के समर्थन में जब रैलियां करते हैं तो किसी बड़े काफिले या सुरक्षा घेरे का दिखावा नहीं करते. उनकी गाड़ियों का दल सीमित होता है, ताकि जनता को कोई असुविधा न हो और लोग सहज महसूस करें. रैलियों में वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि उन्हें परिवार या पार्टी से लालू यादव ने नहीं निकाला, बल्कि उनके उभरते प्रभाव से डरकर कुछ लोगों ने साजिश रची. वे खुलकर कहते हैं कि सबको लगा जैसे 'दूसरे लालू यादव' का जन्म हो गया है, इसलिए उन्हें रोकना जरूरी समझा गया. ऐसे लोगों को तेज प्रताप व्यंग्य में “जयचंद” कहकर संबोधित करते हैं, बिना किसी का नाम लिए. नतीजतन, लोग खुद अंदाजा लगाने लगते हैं कि ये 'जयचंद' कौन हैं. इसके साथ ही वो महुआ में मेडिकल कॉलेज की कहानी भी सुनाते हैं, बताते हैं कि जब उन्होंने वहाँ कॉलेज खोलने का प्रस्ताव रखा तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इनकार कर दिया. लेकिन वे डटे रहे, और जब तेजस्वी ने समझाया कि गठबंधन की सरकार में टकराव ठीक नहीं, तब भी उन्होंने अपनी बात पर अडिग रहकर कहा, 'अभी सीखो हमसे, काम कैसे कराया जाता है.' अंत में वे यह कहते हैं कि देखिए, उसी दृढ़ता का नतीजा है कि महुआ में मेडिकल कॉलेज बनकर तैयार हुआ.
बताते चलें कि तेज प्रताप यादव इस चुनाव में भले ही अकेले मैदान में उतरे हों, लेकिन उनका अंदाज, आत्मविश्वास और जनता से जुड़ाव उन्हें अलग पहचान दिला रहा है. भीड़ का बढ़ता रुझान और लोगों की दिलचस्पी यह संकेत दे रही है कि बिहार की राजनीति में तेज प्रताप अब सिर्फ लालू यादव के बेटे नहीं, बल्कि अपने दम पर उभरते हुए नेता के रूप में जगह बना रहे हैं.
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