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बिहार चुनाव में 20 साल बाद ‘जुड़वा भाई’ की भूमिका में JDU और BJP, अब उम्मीदवारों के नाम का होगा ऐलान

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने सीटों का बंटवारा तय कर लिया है. बीजेपी और जेडीयू 101-101 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगी, एलजेपी को 29 सीटें मिली हैं, जबकि मांझी की HAM और कुशवाहा की RLM को 6-6 सीटें दी गई हैं. कुशवाहा को उजियारपुर, मधुबनी, सासाराम, दिनारा, महुआ और बाजपट्टी, मांझी को टेकारी, कुटुंबा, अतरी, इमामगंज, सिकंदरा और बराचट्टी, और चिराग ने हिसुआ, गोविंदगंज और ब्रह्मपुर अपने खाते में रखीं.

Narendra Modi- Nitish Kumar (File Photo)

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर लंबे समय से चल रही सीटों की खींचतान आखिरकार रविवार को खत्म हो गई. कई दौर की बैठकों और गहन बातचीत के बाद एनडीए गठबंधन में सीट बंटवारे का फार्मूला तय हो गया है. सत्ता में काबिज एनडीए ने आखिरकार अपने पत्ते खोल दिए हैं. बीजेपी और जेडीयू दोनों ही 101-101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगी. वहीं, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) को 29 सीटें मिली हैं. इसके अलावा जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को 6-6 सीटें दी गई हैं.

दरअसल, इस तरह एनडीए गठबंधन ने कुल 243 सीटों के लिए तालमेल का ऐलान कर दिया है. सूत्रों के मुताबिक सभी दल इस फार्मूले पर सहमत हो गए हैं और सोमवार को इसका आधिकारिक ऐलान किया जाएगा. ऐसे में अब सीट बंटवारे के ऐलान के बात अब कौन सी पार्टी के खाते में कौन सी सीट जाएगी इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है. 

कौन-सी सीटें किसके खाते में आईं

सूत्रों ने बताया है कि उपेंद्र कुशवाहा को उजियारपुर, मधुबनी, सासाराम, दिनारा, महुआ और बाजपट्टी जैसी अहम सीटें दी गई हैं. वहीं जीतनराम मांझी को टेकारी, कुटुंबा, अतरी, इमामगंज, सिकंदरा और बराचट्टी विधानसभा सीटें मिली हैं. बताया जा रहा है कि चिराग पासवान ने अपनी पसंदीदा तीन सीटें हिसुआ, गोविंदगंज और ब्रह्मपुर अपने खाते में कराने में सफलता पाई. इन सीटों पर सबसे अधिक मतभेद चल रहे थे, लेकिन अंततः बीजेपी ने बीच का रास्ता निकालकर विवाद सुलझा दिया.

धर्मेंद्र प्रधान ने किया सीट फॉर्मूले का ऐलान

बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि सभी सहयोगियों के बीच सीटों का बंटवारा सौहार्दपूर्ण ढंग से पूरा हुआ है. उन्होंने कहा कि बिहार एक बार फिर एनडीए सरकार बनाने के लिए तैयार है. धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, 'एनडीए के सभी नेता और कार्यकर्ता इस समझौते का स्वागत करते हैं. यह गठबंधन विकास, स्थिरता और सुशासन के लिए बना है.'

मांझी को मिलीं सिर्फ 6 सीटें, जताई नाराजगी

जीतनराम मांझी शुरू में 15 सीटों की मांग पर अड़े थे. धर्मेंद्र प्रधान के ऐलान से पहले मांझी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था कि वह आखिरी सांस तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रहेंगे. हालांकि सीटों के ऐलान के बाद उन्होंने कहा कि वह एनडीए नेतृत्व के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन उनकी पार्टी को कम आंका गया है. मांझी ने इशारों में कहा कि यह निर्णय गठबंधन के नतीजों पर असर डाल सकता है.

चिराग 40 सीटों से घटकर 29 पर हुए तैयार

चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) की ओर से शुरुआत में 40 से अधिक सीटों की मांग की गई थी. कई दिनों तक चली बातचीत और खींचतान के बाद अंततः वे 29 सीटों पर मान गए. माना जा रहा है कि बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें यह समझाकर तैयार किया कि अधिक सीटों की जिद से गठबंधन की एकता पर असर पड़ सकता है. दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा विधानसभा में चिराग की पार्टी का एक भी विधायक नहीं है, लेकिन केंद्र में मंत्री पद मिलने के बाद उनकी भूमिका काफी अहम हो गई है.

महागठबंधन में भी सीटों पर माथापच्ची जारी

वही, दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन में अभी भी सीट बंटवारे को लेकर बातचीत जारी है. आरजेडी और कांग्रेस के बीच दिल्ली में बैठक होने की संभावना है. शीर्ष सूत्रों के अनुसार, आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद और उनके बेटे तेजस्वी यादव नई दिल्ली में हैं और वहीं से अंतिम रणनीति तय की जा रही है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बताया कि उन्हें महागठबंधन में कुछ नए सहयोगियों को समायोजित करना है. उन्होंने कहा, 'दो-तीन दिनों में हमें उम्मीद है कि सीट बंटवारे पर अंतिम निर्णय हो जाएगा.' पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 19 सीटें जीती थीं, जबकि आरजेडी ने 144 सीटों पर लड़कर 75 सीटें हासिल की थीं. इस बार कांग्रेस लगभग 50 से 60 सीटों पर समझौते की उम्मीद कर रही है.

2020 के मुकाबले अलग समीकरण

अगर 2020 के चुनाव से तुलना करें तो इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं. तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि बीजेपी 110 सीटों पर उतरी थी. उस चुनाव में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) ने 7 और मुकेश सहनी की वीआईपी ने 11 सीटों पर मुकाबला किया था. सहनी उस समय एनडीए का हिस्सा थे. चिराग पासवान ने नीतीश कुमार से मतभेदों के कारण अलग चुनाव लड़ा था, जिससे एनडीए के भीतर काफी तनाव पैदा हुआ था. नतीजे बेहद करीबी रहे थे. एनडीए ने 125 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया था, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं. इस बार भी मुकाबला कांटे का रहने की संभावना है.

20 साल बाद बीजेपी-जेडीयू बराबरी पर

यह पहला मौका है जब करीब 20 साल बाद जेडीयू और बीजेपी बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही हैं. 2005 में जब नीतीश कुमार ने आरजेडी के 15 साल के शासन को खत्म किया था, तब से हर चुनाव में जेडीयू को बीजेपी से ज्यादा सीटें मिलती रही हैं. लेकिन इस बार दोनों दल 101-101 सीटों पर उतरेंगे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बराबरी नीतीश कुमार की कमजोर होती पकड़ और बीजेपी के बढ़ते प्रभाव का संकेत है. वहीं, बीजेपी इसे गठबंधन की समानता और आपसी सम्मान का प्रतीक बता रही है.

बताते चलें कि 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के लिए दो चरणों में मतदान होगा. पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को और दूसरे चरण का 11 नवंबर को होगा. वोटों की गिनती 14 नवंबर को की जाएगी. आयोग के मुताबिक इस बार सुरक्षा व्यवस्था और ईवीएम की निगरानी पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. वही, एनडीए में सीटों का बंटवारा तय होने के बाद अब सभी की निगाहें महागठबंधन पर हैं. एनडीए का यह फॉर्मूला भले ही फिलहाल संतुलित दिख रहा हो, लेकिन अंदरखाने असंतोष की हल्की आवाजें सुनाई दे रही हैं. आने वाले दिनों में देखना दिलचस्प होगा कि मांझी, कुशवाहा और चिराग पासवान जैसे नेता क्या इस तालमेल से खुश रहेंगे या फिर नए समीकरण बनेंगे.

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