अवध की ऐतिहासिक धरोहर को योगी सरकार ने दी नई पहचान, अफीम कोठी से साकेत सदन तक…कहानी दिलकुशा महल की
दिलकुशा महल को अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने सन 1752 में सरयू किनारे बनवाया था. योगी सरकार नवाबों की इस कोठी की खोई हुई पहचान को वापस लाने में जुट गई है. सरकार इसकी जगह अब 'साकेत सदन' बनवा रही है और इस पर आधे से ज़्यादा काम हो चुका है. इतिहास ने जिस इमारत के साथ न्याय नहीं किया उसका जीर्णोध्दार कर यूपी सरकार नया इतिहास बना रही है.
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कभी भूतिया घर तो कभी अफ़ीम कोठी. एक ऐतिहासिक धरोहर जो समय के साथ अपनी पहचान खोती गई. जो कभी नवाबों की शान थी वो बाद में अंग्रेजों के काले कारनामों का अड्डा बन गई. इसके बाद उपेक्षा और त्रासदी की भेंट चढ़ गई. अयोध्या में नवाबों के ज़मानें में बनी दिलकुशा कोठी एक बार फिर चर्चा में है. अब योगी सरकार इस महल को नया रूप देकर हिंदू श्रद्धालुओं के लिए संग्रहालय में तब्दील करने जा रही है. नए कलेवर के साथ सरकार इसे डेवलप कर रही है. आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक इमारत का इतिहास और योगी सरकार कैसे दे रही है इसे नई सांस्कृतिक पहचान.
दिलकुशा महल को अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने सन 1752 में सरयू किनारे बनवाया था. शुजाउद्दौला अवध के तीसरे नवाब थे. योगी सरकार नवाबों की इस कोठी की खोई हुई पहचान को वापस लाने में जुट गई है. दरअसल, योगी सरकार इसकी जगह अब 'साकेत सदन' बनवा रही है और इस पर आधे से ज़्यादा काम हो चुका है. इसकी जगह अयोध्या में हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए संग्रहालय बन रहा है. इस संग्रहालय में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी होंगी यानी ये प्राचीन धरोहर अब आस्था का नया केंद्र बनेगी. इतिहास ने जिस इमारत के साथ न्याय नहीं किया उसका जीर्णोध्दार कर यूपी सरकार नया इतिहास बना रही है.
नवाबी शासन का गवाह रहा दिलकुशा महल
नवाबों ने अयोध्या में कई ऐतिहासिक इमारतों बनवाईं. कहा ये भी जाता है कि उस वक़्त आधुनिक फ़ैज़ाबाद की नींव भी नवाबों ने ही रखी थी. 1752 में अवध के दूसरे नवाब सफ़दरजंग की मौत के बाद उनके बेटे शुजाउद्दौला अवध के तीसरे नवाब बने. उन्हीं के शासन में एक कच्ची और अर्धनिर्मित इमारत पर नए सिरे से निर्माण कार्य हुआ, सजाया संवारा और वो इमारत कहलाई दिलकुशा महल.
- इस दो मंज़िला महल की हर मंजिल पर 10-10 कमरे थे
- निचली मंज़िल पर नवाब शुजाउद्दौला का दरबार लगता था
- पहली मंज़िल पर नवाब अपने परिवार के साथ रहते थे
- महल के परिसर में नवाब शुजाउद्दौला के सैनिक रहते थे
- दिलकुशा कोठी के बाहरी इलाक़े में दुकानें लगाई गई थीं
दिलकुशा कोठी के बाहरी इलाक़े और उसके आस-पास के क्षेत्र को शुजाउद्दौला ने रिहायशी इलाक़े में डेवलप किया गया था. यहां सब्जी मंडी, टकसाल, दिल्ली दरवाज़ा, रकाबगंज जैसे इलाक़े डेवलप किए गए थे.
नवाब शुजाउद्दौला फ़ैज़ाबाद को आरामदायक, सुंदर और फ़ायदेमंद शहर बनाना चाहते थे. कहा जाता है शुजाउद्दौला ने ही फ़ैज़ाबाद नाम दिया गया था. फ़ैज़ का मतलब फ़ायदा होता है. नवाब चाहते थे कि ये शहर सभी के लिए फ़ायदेमंद और आरामदायक हो. इसलिए इसे फ़ैज़ाबाद नाम दिया गया. हालांकि इसको लेकर इतिहासकारों के अलग अलग तर्क हैं.
दिलकुशा महल को अंग्रेजों ने बनाया अफीम का अड्डा
दिलकुशा महल नवाबों के समय अवध की शान थी, लेकिन समय का पहिया घूमा और ये कोठी नशे की कोठी में तब्दील हो गई. 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने इस कोठी को अफीम की खरीद-बिक्री का केंद्र बना दिया और उस वक़्त से ही इस कोठी की पहचान अफ़ीम कोठी के रूप में होने लगी.
1947 में देश अंग्रेजों से मुक्त हुआ लेकिन दिलकुशा महल पतन की ओर बढ़ता गया. जबकि इस कोठी ने आज़ादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों को छुपने के लिए आसरा दिया था. आज़ादी के बाद भारत सरकार के सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ नारकोटिक्स ने कोठी को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया. अफ़ीम का कारोबार रोकने के लिए परिसर में ऑफिस खोला गया. हालांकि साल 2008 के आस-पास नारकोटिक्स ब्यूरो ने यहां अपना ऑफिस बंद कर दिया, लेकिन इसके बाद कोठी की देखभाल किसी ने नहीं की. ये इमारत जर्जर होती गई. हालत ऐसी हो गई कि ये टूटने की कगार पर पहुंच गई. उत्तर प्रदेश में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन इस महल को उसकी पहचान किसी ने भी वापस दिलाने की ज़हमत नहीं उठाई.
योगी सरकार ने लिया रिडेवलप का जिम्मा
साल 2017 में UP में BJP की योगी सरकार आने के बाद अयोध्या में विकास कार्यों की नई बयार बही. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के इतिहास और संस्कृति को संवारने का जिम्मा लिया. इसी कड़ी में बदहाल दिलकुशा महल के रिडेवलप और सौंदर्यीकरण के
लिए बजट जारी किया गया. सरकार ने क़रीब 16.82 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की. साकेत सदन के रूप में डेवलप हो रही इस इमारत में देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं.
सरकार की कोशिश है कि श्रद्धालुओं के लिए इसे टूरिज़्म का केंद्र बनाया जाए. अब ये ऐतिहासिक इमारत इतिहास के साथ आस्था का केंद्र बनने जा रही है. नए नाम साकेत सदन और नई सांस्कृतिक पहचान के साथ.
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