जब एक अंग्रेज ने मुगलों की चाटुकारिता कर भारत में रख दी थी ब्रिटिश राज की नींव!
क्या आप जानते हैं कि भारत की गुलामी की असली कहानी 1608 में ही शुरू हो गई थी? जब ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला जहाज ‘हेक्टर’ भारत पहुंचा और उसके साथ आया विलियम हॉकिंस – एक ऐसा अंग्रेज जिसने मुगलों की चाटुकारिता करके उनकी नजरों में खास जगह बना ली।

"अगर भारत को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ने का असली गुनहगार ढूंढना हो, तो उसकी शुरुआत 1608 में हुई एक मुलाकात से होती है। एक ऐसा अंग्रेज, जिसने पांच साल तक मुगलों की चाटुकारिता की, उनकी सेवा में रहा और वहीं से ब्रिटिश हुकूमत की पहली ईंट रखी।"
आज हम इतिहास के उन पन्नों को पलटते हैं, जिसने भारत के भविष्य को सदियों तक गुलामी की अंधेरी रात में ढकेल दिया। यह कहानी है विलियम हॉकिंस की, ये एक ऐसा नाम रहे जिसे भारतीय इतिहास में बहुत कम लोग जानते हैं, लेकिन विलियम हॉकिंस ही थे जिसने भारत को अंग्रेजों का गुलाम बनाने की नींव रखी थी।
415 साल पहले भारत में अंग्रेजों की पहली दस्तक
24 अगस्त 1608 का दिन भारतीय इतिहास में एक बेहद महत्वपूर्ण दिन था। यह वह दिन था जब ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला जहाज 'हेक्टर' भारत के सूरत बंदरगाह पर पहुंचा। इस जहाज का कप्तान था विलियम हॉकिंस, जो अंग्रेज़ी राजा जेम्स प्रथम (King James I) का पत्र लेकर आया था।
उस समय, भारत में मुगल साम्राज्य का स्वर्णकाल चल रहा था और तख्त पर सम्राट जहांगीर बैठा था। हॉकिंस की असली मंशा थी मुगलों से व्यापार की अनुमति लेना, लेकिन उसने इसे इतना सरल नहीं रहने दिया। उसने खुद को मुगलों का वफादार बनाकर उनके दिल में जगह बनाई और अंदर ही अंदर अंग्रेजों के लिए भारत की जड़ें खोदता चला गया।
जहांगीर के दरबार में विलियम हॉकिंस की चतुराई
1609 में, विलियम हॉकिंस दिल्ली पहुंचा और सम्राट जहांगीर से मिलने की कोशिश करने लगा। शुरुआत में, उसे दरबार में ज्यादा तवज्जो नहीं मिली, लेकिन उसकी फारसी और तुर्की भाषा पर पकड़ ने उसे खास बना दिया। जब उसने जहांगीर से फर्राटेदार फारसी में बात की, तो मुगल बादशाह चौंक गया।
हॉकिंस ने खुद को एक सम्मानित अंग्रेज़ व्यापारी और राजा जेम्स प्रथम का प्रतिनिधि बताया। उसने यूरोप के बेहतरीन हथियार और उपहार जहांगीर को भेंट किए और धीरे-धीरे उससे नज़दीकी बढ़ाता गया। जहांगीर को हॉकिंस की बातें इतनी पसंद आईं कि उसने उसे अपने दरबार में ही रख लिया और 400 घुड़सवारों का मनसबदार (सरकारी पदाधिकारी) बना दिया। इसके बाद, हॉकिंस ने जहांगीर से कंपनी के लिए व्यापार की अनुमति मांगी। जहांगीर कुछ समय तक टालमटोल करता रहा, लेकिन हॉकिंस अपनी चालाकी से धीरे-धीरे उसे मनाने में सफल हो गया।
कैसे मुगलों की चाटुकारिता करते हुए साजिशें रची गईं?
हॉकिंस को जहांगीर ने न केवल मनसबदार बनाया, बल्कि उसे "खान" की उपाधि भी दे दी। इतना ही नहीं, उसने अपने दरबार की एक अर्मेनियाई ईसाई महिला से हॉकिंस की शादी करवा दी, जिससे हॉकिंस को और भी ज्यादा सम्मान मिलने लगा। लेकिन हॉकिंस के इरादे कुछ और थे। वह दिखावे में मुगलों का वफादार था, लेकिन असल में वह भारत को गुलामी की तरफ धकेलने के लिए जाल बिछा रहा था।
पांच साल तक वह जहांगीर के दरबार में रहा, अंग्रेजों के लिए व्यापार के अधिकार जुटाए, कंपनी की पकड़ मजबूत की और फिर 1613 में भारत में पहला ब्रिटिश कारखाना खुलवा दिया। जी हां हॉकिंस की वर्षों की मेहनत आखिर रंग लाई और 11 जनवरी 1613 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने सूरत में अपना पहला कारखाना खोलने की अनुमति प्राप्त कर ली।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कारखाने में क्या बनता था? रजाई और गद्दे! जी हां, मुगलों को यकीन दिलाने के लिए कंपनी ने दिखावे के तौर पर रजाई और गद्दे बनाने का कारखाना शुरू किया। लेकिन असल में, यही कारखाना ब्रिटिश व्यापार का पहला ठिकाना बना, जहां से उनकी ताकत धीरे-धीरे बढ़ने लगी। इसके बाद, हॉकिंस अपना काम पूरा कर इंग्लैंड लौट गया और वहां जाकर ब्रिटिश साम्राज्य को विस्तार करने की योजनाएं बनाने लगा।
भारत में ब्रिटिश सेना की पहली दस्तक
हॉकिंस के जाने के बाद, 1616 में सर टॉमस रो नाम का एक और अंग्रेजी राजदूत भारत आया। टॉमस रो एक और भी शातिर रणनीतिकार था। उसने जहांगीर की पत्नी नूरजहां और शाहजादा खुर्रम (बाद में शाहजहां) को महंगे तोहफे देकर अपने पक्ष में कर लिया।
इसके बाद, उसने जहांगीर को समझाया कि "पुर्तगालियों और डच व्यापारियों से निपटने के लिए अंग्रेजों को अपनी सेना भारत में लाने की अनुमति दी जाए!" जहांगीर, जो पहले ही अंग्रेजों की चाटुकारिता से प्रभावित था, उसने इस मांग को मान लिया और ब्रिटिश सेना को भारत में दाखिल होने की अनुमति दे दी। यहीं से अंग्रेजों की असली घुसपैठ शुरू हुई।
धीरे धीरे अंग्रेजों ने भारत पर अपना नियंत्रण जमाया। पहले 1668 में अंग्रेजों ने मुंबई पर अपना अधिकार जमाया। फिर 1690 में कोलकाता में फोर्ट विलियम की स्थापना की। और फिर 1757 में प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला को हराकर अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्जा कर लिया। फिर 1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया।
क्या हॉकिंस के बिना भारत गुलाम नहीं होता?
यह सवाल हमेशा बना रहेगा कि अगर विलियम हॉकिंस और उसके जैसे अन्य अंग्रेज भारत न आते, तो क्या देश गुलाम होता? हॉकिंस पहला अंग्रेज था जिसने मुगलों के दरबार में घुसकर उनकी मानसिकता को समझा, उनके बीच जगह बनाई और उनकी कमजोरियों का फायदा उठाया। अगर हॉकिंस नहीं होता, तो शायद ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में घुसने में और कई दशक लग जाते। लेकिन इतिहास को बदला नहीं जा सकता। हॉकिंस का भारत आना ही वह पहला कदम था, जिसने भारत की स्वतंत्रता को 300 साल पीछे धकेल दिया।
विलियम हॉकिंस सिर्फ एक व्यापारी नहीं था, बल्कि वह एक ब्रिटिश एजेंट था, जिसने भारत की स्वतंत्रता पर पहला वार किया। उसने मुगलों को झांसा देकर व्यापार की अनुमति ली। उसने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला कारखाना खुलवाया। उसकी योजनाओं की वजह से भारत में ब्रिटिश सेना की एंट्री हुई।