'तेरा तुझको अर्पण…' महज कार्यक्रम नहीं उत्सव बना आचार्य आशीष सेमवाल का जन्मदिवस…प्रकृति, संस्कृति और आध्यात्म के बने ध्वजवाहक
विश्व जन जागृति मिशन के संस्थापक और उत्तराखंड सहित समूचे उत्तर भारत के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित वेलनेस केंद्रों में से एक 'पुनर्नवा रिज़ॉर्ट एंड वेलनेस सेंटर', देहरादून के प्रबंध निदेशक आचार्य आशीष सेमवाल ने जन्मदिन को उन्होंने सिर्फ एक दिन का आयोजन नहीं रहने दिया, बल्कि यह कई दिनों तक चलने वाला एक संपूर्ण 'उत्सव' बन गया – एक ऐसा उत्सव जिसमें प्रकृति, अध्यात्म, संस्कृति, सेवा और समाज के उत्थान का अद्भुत समागम देखने को मिला. और मैं स्वयं इसका साक्षी बना. रुद्राभिषेक, वृक्षारोपण, पदयात्रा, प्रकृति आरती, सुंदरकांड... सच में प्रकृति, संस्कृति और आध्यात्म के ध्वजवाहक के सच्चे ध्वजवाहक के रूप में दिखे आचार्य सेमवाल.
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"दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय.
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय."
– संत कबीर दास
संत कबीरदास जी का यह अमर दोहा आज की 21वीं सदी में एक दर्पण की तरह है, जो हमें यह दिखाता है कि हमने अपने जीवन में क्या खोया और क्या पाया है. जिस दौर में दुनिया आधुनिकता की ओर तेजी से भाग रही है, ऐसे समय में कुछ विरले लोग ही हैं जो इस सोच को अपने जीवन में उतारते हैं. ऐसे ही एक जीते जागते उदाहरण हैं विश्व जन जागृति मिशन के संस्थापक और उत्तराखंड सहित समूचे उत्तर भारत के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित वेलनेस केंद्रों में से एक 'पुनर्नवा रिज़ॉर्ट एंड वेलनेस सेंटर', देहरादून के प्रबंध निदेशक आचार्य आशीष सेमवाल.
विज्ञान, तकनीक, सुख-सुविधाओं के विस्तार ने भले जीवन को आसान बना दिया हो, लेकिन मानसिक अशांति, चिंता, अवसाद, स्वास्थ्य समस्याएं और आत्मिक खालीपन कहीं अधिक बढ़ गया है. ऐसे समय में कबीरदास जी की यह उक्ति सच्चे आत्म-चिंतन की ओर बुलाती है. शायद आचार्य सेमवाल ने इसे अपने जीवन में चरितार्थ कर लिया है. इसलिए तो उनका हर एक कदम, हर एक कार्य वैसा होता है जो समाज के लिए प्रेरणा बने और प्रकृति, संस्कृति और आध्यात्म की कसौटी पर खरा उतरे.
कबीरदास कहते हैं कि जब व्यक्ति दुख में होता है, तकलीफ में होता है, तो वह भगवान को याद करता है, प्रार्थना करता है, लेकिन जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो, सुख-शांति हो, तब ईश्वर का स्मरण भूल जाता है. लेकिन यदि हम सुख में भी उतनी ही भक्ति, श्रद्धा और सुमिरन बनाए रखें, तो जीवन में दुख का आना ही क्यों हो?
आचार्य डॉ. आशीष सेमवाल ने अपने जीवन को केवल भौतिक सफलताओं तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने अध्यात्म, प्रकृति, संस्कृति और समाज सेवा को अपनी जीवन यात्रा का अभिन्न अंग बना लिया है. उनकी यही जीवनदृष्टि उनके कार्यों, निर्णयों और समारोहों में साफ दिखाई देती है.
विशेषकर इस बार उनके जन्मदिन पर जो कुछ हुआ, वह इस बात का प्रमाण है कि जब एक व्यक्ति आत्म-जागरूकता, विनम्रता और समर्पण के साथ जीवन जीता है, तो वह न केवल खुद के लिए बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणा बन जाता है. बाबा कबीर दास के यही विचार आज के समय में और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि हम बाहरी उपलब्धियों की ओर तो भाग रहे हैं, लेकिन भीतरी शांति को खोते जा रहे हैं. कहीं न कहीं आचार्य सेमवाल भी इसी विचारों के साथ समाज और संस्कृति की दिशा में काम भी कर रहे हैं.
5 अगस्त को आचार्य डॉ. आशीष सेमवाल ने अपने जीवन के 42वें वसंत में प्रवेश किया. इस अवसर पर उन्होंने यह सिखाया कि जीवन में स्थायी शांति, स्थायी सुख और संतुलन कैसे पाया जा सकता है. और उससे भी ज़्यादा, कैसे उसे स्थिर बनाए रखा जा सकता है. एक ओर जहां अधिकांश लोग अपने जन्मदिन को केवल निजी खुशी और सामाजिक दिखावे के रूप में मनाते हैं, वहीं आचार्य सेमवाल ने इस दिन को जनसेवा, प्रकृति आराधना, आध्यात्मिक साधना और सांस्कृतिक उत्थान के एक पवित्र उत्सव में बदल दिया.
उनकी यह सोच और कार्यप्रणाली इस बात का उदाहरण है कि जब व्यक्ति के पास सब कुछ होता है – नाम, प्रसिद्धि, सम्मान, संसाधन – तब भी वह ईश्वर, प्रकृति और समाज से जुड़कर, अत्यंत विनम्रता से अपने जीवन का सार्थक उपयोग कर सकता है. जब लोगों के पास सब कुछ होता है, तब वे अक्सर ईश्वर को भूल जाते हैं और स्वयं को ही सबसे बड़ा मान बैठते हैं. लेकिन आचार्य सेमवाल का मार्ग इसके विपरीत है- सादगी में महानता, ‘विनम्रता से प्रभाव और सेवा में संतोष’
अपने जन्मदिन को उन्होंने सिर्फ एक दिन का आयोजन नहीं रहने दिया, बल्कि यह कई दिनों तक चलने वाला एक संपूर्ण 'उत्सव' बन गया – एक ऐसा उत्सव जिसमें प्रकृति, अध्यात्म, संस्कृति, सेवा और समाज के उत्थान का अद्भुत समागम देखने को मिला. और मैं स्वयं इसका साक्षी बना.
सावन का अंतिम सोमवार और महादेव का रुद्राभिषेक
मौका था, मौसम था और दस्तूर भी…भगवान भोलेनाथ के सबसे पवित्र माह, सावन के आखिरी सोमवार को आचार्य सेमवाल ने प्रकृति की गोद में बसे पुनर्नवा रिज़ॉर्ट में ही स्थापित शिवलिंग पर दिव्य और पूरे विधि विधान से रुद्राभिषेक का आयोजन किया. इस दौरान इंद्र देवता भी मानों खुद बाबा का स्वयं अभिषेक कर रहे हों. भारी बारिश के बीच मनोरम वातावरण में करीब पांच धर्माचार्यों के नेतृत्व में आचार्य सेमवाल ने रुद्राभिषेक किया और जनकल्याण, विश्व बंधुत्व की कामना के साथ-साथ सुख-शांति की प्रार्थना की.
कहते हैं, आचार्य वही होता है जो अपने कर्मों से लोगों को प्रेरणा दे और अपने पुण्य में सबको सहभागी बनाए. यही हुआ-पुनर्नवा के कर्मचारियों से लेकर उपस्थित अतिथियों तक, हर किसी को पूजा में शामिल कर उन्होंने न केवल एक आध्यात्मिक अनुभव दिया बल्कि अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण दिन को सबके साथ साझा किया.
‘एक पेड़ मां के नाम’ – वृक्षारोपण के साथ प्रकृति को अर्पण
आचार्य सेमवाल ने अपने जन्मदिन की शुरुआत पहाड़ और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हुए वृक्षारोपण से की. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मुहिम 'एक पेड़ माँ के नाम' को न सिर्फ समर्थन दिया, बल्कि इसे एक वास्तविक अभियान का रूप दे दिया.
देहरादून स्थित पुनर्नवा रिज़ॉर्ट परिसर में आचार्य सेमवाल के नेतृत्व में सैकड़ों पौधे लगाए गए. इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद, युवा वॉलंटियर्स और प्रकृति प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे. यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम थी, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों और धरती माँ से जोड़ने का एक जीवंत प्रयास भी था.
पदयात्रा: सांसों की रक्षा के लिए हर कदम
आचार्य सेमवाल ने पर्यावरण संरक्षण का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक पदयात्रा का आयोजन भी किया. इस पदयात्रा में उन्होंने नारा दिया – "सांसें हो रही हैं कम, आओ पेड़ लगाएं हम."
इस अभियान में 'ग्रीनमैन ऑफ इंडिया' विजयपाल बघेल की भागीदारी ने इसे और भी विशेष बना दिया. आचार्य सेमवाल ने अपने संदेश में कहा कि जैसे एक मां अपने बच्चे को Nurtures करती है, वैसे ही धरती माँ का संरक्षण हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है. उनका लक्ष्य है कि यह संदेश हर जिले, तहसील और गांव तक पहुंचे.
भक्तिभाव से रहा ओतप्रोत सुंदरकांड पाठ
जन्मदिन की शाम पुनर्नवा परिसर में भक्तिभाव से ओतप्रोत सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया गया. बड़ी संख्या में आम लोग, श्रद्धालु, हनुमान भक्त कार्यक्रम में शामिल हुए. आयोजन के दौरान सबने मिलकर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ किया. हर किसी को सुंदरकांड की किताब, आरती और प्रसाद की व्यवस्था दी गई.
पूरे आयोजन में विशेष स्वागत भगवा पट्टे, तुलसी की माला और तिलक के साथ किया गया. यह आयोजन सिर्फ स्थल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पुनर्नवा के यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज के माध्यम से इसे लाइव प्रसारित किया गया.
प्रकृति आरती – एक नई आध्यात्मिक शुरुआत
इस बार आचार्य सेमवाल ने एक अनूठी पहल की शुरुआत की – ‘प्रकृति आरती’. गंगा आरती की तर्ज पर आयोजित इस आरती में पेड़, जल, वायु, पक्षी और पूरी प्रकृति की महिमा का गुणगान किया गया. यह आरती पहाड़ी गायक सौरभ मैठानी द्वारा लिखी गई और स्वरबद्ध की गई.
इस ऐतिहासिक आरती में समाज के विभिन्न वर्गों से आए गणमान्य लोग, पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए. देहरादून के मेयर सौरभ थपलियाल भी इस आरती के साक्षी बने. पूरा वातावरण अत्यंत भावविभोर और भक्तिमय हो गया.
संस्कृति का उत्सव-उत्तराखंड की कला और संगीत की छटा
उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और संगीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जन्मोत्सव में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. खास बात यह रही कि मंच पर उत्तराखंड के ही स्कूली बच्चों और कलाकारों को प्रस्तुति का अवसर मिला. सौरभ मैठानी द्वारा संचालित 'मैठानी क्लासेस' के प्रतिभाशाली बच्चों ने समां बांध दिया. स्कूली छात्रों ने गायन-वादन और नृत्य प्रस्तुत कर समां बांध दिया. इस पहल ने बच्चों का उत्साह बढ़ाया, उन्हें अपनी कला दिखाने का मंच दिया और संस्कृति को संजोने का संदेश भी दिया.
आचार्य सेमवाल का जन्मदिन सिर्फ एक जन्मोत्सव नहीं बल्कि जीवन कैसा हो, उसका है दर्शन!
आचार्य डॉ. आशीष सेमवाल का 42वां जन्मदिन केवल व्यक्तिगत उत्सव नहीं था, बल्कि एक जन-जागरण अभियान, एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण और एक आध्यात्मिक महोत्सव बन गया. यह दिन इस बात का प्रतीक बन गया कि जब व्यक्ति सुख में भी सुमिरन करे, प्रकृति की सेवा करे, समाज के लिए जिए और अपनी जड़ों से जुड़े, तब जीवन वास्तव में सफल कहलाता है. इस आयोजन ने यह सिद्ध किया कि जीवन का सबसे बड़ा उत्सव वह नहीं जो केवल 'मैं' के इर्द-गिर्द घूमे, बल्कि वह है जो 'हम' को केंद्र में रखे और सेमवाल जी शायद यही सोच को लेकर आगे बढ़ रहे हैं और सफलता उनके कदम चूम रही है, लोगों का कांरवां जुड़ता चला जा रहा है.
जय प्रकृति माता!
जय हो बाबा केदार!
जय हो बाबा बदरी विशाल!
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