रक्षाबंधन पर 'अपना घर' आश्रम में बहनों ने सोनू राणा की कलाई पर बांधा उम्मीद और अपनेपन का धागा
रक्षाबंधन का त्योहार 'अपना घर' आश्रम में बेहद खास और सार्थक तरीके से मनाया गया. सोनू राणा इस भाई-बहन के पर्व को खास बनाने के लिए सुबह से ही तैयारी में जुट रहे. लेकिन यह केवल राखियां बांधने का कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह एक प्रयास था उन दिलों को जोड़ने का, जिनमें अपनेपन की डोर शायद बरसों पहले टूट गई थी.
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रक्षाबंधन का त्योहार, जो भाई-बहन के अटूट बंधन का प्रतीक है, इस साल 'अपना घर' आश्रम में बेहद खास और सार्थक तरीके से मनाया गया. नोएडा का 'अपना घर' आश्रम, यह महज एक इमारत नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए एक परिवार है, जिन्हें अपनों ने ही बेसहारा और अकेला कर दिया. यहां के हर 'प्रभुजी' के चेहरे पर अपनत्व की मुस्कान और सेवादारों के समर्पण की रोशनी देखने को मिलती है. इसी प्रेम और सेवा के माहौल में इस बार रक्षाबंधन का पर्व कुछ खास बन गया, जब आश्रम के मुख्य सेवादार और सेवा-प्रतीक 24 वर्षीय सोनू राणा ने अपने 'प्रभुजियों' के साथ यह त्यौहार मनाया. आपको बता दें कि आश्रण में रहने वाले हर व्यक्ति को 'प्रभुजी' कहकर संबोधित किया जाता है, जो इस आश्रम की संवेदनशीलता और सम्मान को दर्शाता है. फिलहाल आश्रम में करीब 300 बेसहारा महिलाएं रहती हैं.
उम्मीद के धागे और प्रेम के उपहार
रक्षाबंधन के दिन सोनू राणा इस भाई-बहन के पर्व को खास बनाने के लिए सुबह से ही तैयारी में जुट रहे. रंग-बिरंगी राखियों, मिठाइयों और उपहारों से भरी थालियां सजाई गईं. लेकिन यह केवल राखियां बांधने का कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह एक प्रयास था उन दिलों को जोड़ने का, जिनमें अपनेपन की डोर शायद बरसों पहले टूट गई थी.
सोनू ने हर 'प्रभुजी' के पास जाकर अपनी कलाई में राखी बंधवाई, उन्हें मिठाई खिलाई और उपहार दिए. यह उपहार केवल कपड़े या मिठाइयां नहीं थे, बल्कि एक संदेश था कि 'आप अकेले नहीं हैं, हम आपके अपने हैं'.
प्रभुजियों के चेहरे पर उस समय जो सच्ची खुशी थी, वह शब्दों से बयां नहीं की जा सकती. कई आंखें नम थीं, लेकिन उनमें अपनत्व की चमक थी. वहीं, खुशी के चहचहाते अधिकतर चेहरे कह रहे थे कि वो इस पल खुद को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान मान रहे हैं.
मनोकामनाओं में छुपा अपनापन
राखी बंधवाते हुए सोनू ने हर 'प्रभुजी' के लिए एक ही दुआ मांगी- “ठाकुरजी, इन्हें जल्द अपने परिवार से मिलाएं, और अगर वह संभव न हो तो 'अपना घर' हमेशा इनका अपना बना रहे.”
सोनू राणा की यह भावना केवल एक सेवादार की नहीं, बल्कि एक भाई, एक सच्चे इंसान की थी, जो हर रिश्ते को दिल से निभाता है. इस दौरान सोनू राणा ने कहा-
"चाहे जो हो जाए, अपनी आखिरी सांस तक हर 'प्रभुजी' को उनके परिवार से मिलाने और स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए कोशिश जारी रखूंगा. मेरा यही प्रण इनका सबसे बड़ा गिफ्ट है." रक्षा बंधन का त्योहार बना जीवन का उत्सव
आमतौर पर रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच के त्योहार के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन 'अपना घर' में इस दिन का अर्थ बेहद खास और गहरा था. यहां न कोई रिश्तों की फॉर्मलिटी थी, न खून का बंधन, लेकिन फिर भी यह उत्सव प्यार और अपनत्व में डूबा हुआ था. सोनू राणा ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि यहां मौजूद सभी 'प्रभुजी' महसूस करें कि वे अकेली नहीं हैं और कोई है जो उनका अपना है, उनकी परवाह करता है."
ठाकुर जी से सभी बहनों के लिए मंगल कामना की
राखी बंधवाकर सोनू राणा ने आश्रम स्थित मंदिर में सभी बहनों के लिए मंगल कामना की. उन्होंने प्रार्थना की कि आश्रम की सभी बहनें अपनों से जल्दी मिलें और एक सुरक्षित एवं सुखी जीवन जी सकें. इस दौरान उन्होंने कहा- "ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि ये सभी बहनें अपने परिवारों से मिलें और एक नया जीवन शुरू करें."
सोनू राणा ने बता दिया त्योहार मनाने का असली अर्थ
आश्रम में मौजूद 'प्रभुजियों' के लिए यह सिर्फ रक्षाबंधन का त्योहार नहीं, बल्कि जीवन में फिर से उम्मीदों के रंग भरने का दिन था. सोनू राणा की पहल ने दिखा दिया कि कैसे एक छोटी सी कोशिश बड़ा बदलाव ला सकती है. रक्षाबंधन का यह अनूठा समारोह न केवल आश्रम की महिलाओं के लिए यादगार रहा, बल्कि हमें सिखाता है कि त्योहारों को मनाने का असली तरीका है दूसरों की खुशी में अपनी खुशी तलाशना.
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