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ढाई साल की बच्ची को बनाया देवी: खून में नाचते लोग और कटे हुए सिर के साथ रही, जानें क्या है ये डरावनी प्रथा

नेपाल की ढाई साल की बच्ची आर्यतारा शाक्य को अकेले एक रात कटे हुए पशुओं और खून में नाचते हुए लोगों के बीच गुजारनी पड़ी. फिर एक गुप्त तांत्रिक प्रक्रिया हुई और बच्ची देवी बन गई. बच्ची पीरियड्स आने तक परिवार और समाज से दूर अकेले मंदिर में कुमारी भवन में रहेगी. क्या है नेपाल की ये सदियों पुरानी प्रथा और कैसे होता है देवी का चयन. जानिए

एक छोटी सी बच्ची, जिसे अभी ठीक से बात करना भी नहीं आता. उस बच्ची से अचानक उसके खिलौने छीन लिए जाते हैं, उसे माता-पिता से दूर कर दिया जाता है और तब तक एक चारदीवारी में कैद कर दिया जाता है जब तक उसके पीरियड्स नहीं आते. उसे देवी का दर्जा देकर सम्मान दिया जाता है, लेकिन उसकी पढ़ाई, उसका बचपन और उसकी आजादी छीन ली जाती है. 

हम बात कर रहे हैं नेपाल की ढाई साल की बच्ची आर्यतारा शाक्य की. जो नेपाल की नई कुमारी देवी बनाई गई हैं. इसके लिए मासूम आर्यतारा को बेहद कठिन और खतरनाक प्रोसेस से गुजरना पड़ा है. कौन है नेपाल की नई कुमारी देवी, क्या है सदियों पुरानी देवी बनाने की प्रथा और देवी के लिए कैसे चुनी जाती है बच्ची. जानते हैं सब कुछ. 

क्या है नेपाल में देवी प्रथा की कहानी? 

कहानी शुरू होती है 17वीं सदी से जब नेपाल में मल्ला राजवंश था. यहां के राजा जय प्रकाश मल्ला थे. राजा हर रात अपने कैमरे से उठकर महल के एक गुप्त कैमरे में चले जाते थे. वहां देवी तालेजू से मुलाकात करते और काफी देर तक दोनों के बीच बातें चलती रहती थी. देवी के आदेश पर राजा इस मुलाकात की खबर किसी को भी नहीं होने देते. यहां तक की अपनी पत्नी को भी नहीं, लेकिन राजा का यूं हर रात अकेले कहीं जाना रानी को खटकता था. एक दिन रानी ने राजा का पीछा किया और देवी को देख हैरान रह गईं. 

रानी को देख देवी तालेजू तुरंत वहां से गायब हो गईं और राजा से मिलने नहीं आईं. देवी का नियम टूट गया था रानी ने उनको देख लिया था. इसके बाद वह राजा से नाराज हो गईं और उन्हें दर्शन देने नहीं आई. परेशान राजा ने देवी को मनाने के लिए कई जप तप और पूजा पाठ किए. आखिरकार राजा के कई साल तक पूजा करने के बाद देवी तालेजू ने उन्हें एक बार फिर दर्शन दिए. लेकिन आखिरी बार के लिए. देवी ने राजा से कहा, मैंने तुम्हें माफ कर दिया है फिर भी मैं अब तुम्हें दर्शन नहीं देने नहीं आऊंगी. लेकिन हां, नेवारी समाज की किसी एक बच्ची में मेरा वास होगा. वही बच्ची देवी कहलाएगी. मान्यता है कि मल्ला राज से ही नेपाल में नेवारी समुदाय की किसी बच्ची में देवी का वास मानकर उसे मंदिर में पूजा के लिए बैठा दिया जाता है. वो भी तब तक जब वह किशोरावस्था में प्रवेश नहीं करती या उसके पीरियड्स नहीं आ जाते. 

कौन हैं नेपाली की नई कुमारी देवी आर्यतारा? 

नेपाल में 2 साल 8 महीने की बच्ची आर्यतारा शाक्य नई कुमारी देवी चुनी गई हैं. पिता की गोद में आर्यतारा को धूमधाम से घर से तालेजू भवानी मंदिर लाया गया. इस दौरान लोग आर्यतारा को देखने भारी संख्या में लोग जमा हुए. कोई उनके चरण छू रहा था तो कोई फूल बरसा रहा था. आर्यतारा को लाल कपड़े पहनाए गए, माथे पर तीसरी आंख वाला तिलक लगाया गया और परिवार से दूर कुमारी आवास यानी मंदिर ले जाया गया. आर्यतारा किशोरावस्था तक यहीं पर रहेंगी. वह केवल धार्मिक आयोजनों पर ही बाहर निकलेंगी और तभी वह अपने माता-पिता को भी देख पाएंगी. 

आर्यतारा शाक्य से पहले तृष्णा शाक्य कुमारी देवी थीं. तृष्णा शाक्य को साल 2017 में ‘देवी’ का दर्जा दिया गया था. अब 11 साल की उम्र में पीरियड्स आने के बाद उनको सामान्य जिंदगी मिल गई है. क्योंकि माना जाता है किशोरावस्था के बाद देवी उनके शरीर से नश्वर हो जाती हैं. 

कैसे होता है नेपाल में कुमारी देवी का चयन? 

नेपाल में देवी की परंपरा काठमांडू के शहरों पाटन, ललितपुर और भक्तपुर जैसे शहरों में प्रचलित है. इनमें रहने वाले नेवारी समाज से देवी को चुना जाता है. इसके लिए बच्ची के साहस की कड़ी परीक्षा ली जाती है. उसके हाव-भाव, हंसना रोना, चेहरा, चेहरे का रंग, यहां तक कि दांत भी देखे जाते हैं. इसी पर शुभ-अशुभ के विचार आधारित होते हैं. कुल 32 लक्षण देखें जाते हैं. 

बच्ची की इन निशानियों को माना जाता है कुमारी देवी?

  • देवी के लिए चुने जानी वाली बच्ची नेवार समुदाय से होनी चाहिए 
  • बच्ची को कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए वह पूरी तरह स्वस्थ हो 
  • बच्ची का कभी खून न बहा हो, शरीर पर कोई दाग-धब्बा न हो 
  • बच्ची के 32 दांत होने चाहिए, हाथ पैर छोटे और सुंदर हों  
  • बच्ची की गर्दन शंख जैसी और जांघ हिरण जैसी हो
  • शरीर बरगद के पेड़ जैसा हो और छाती शेरणी जैसी हो

इसके अलावा बच्ची का रंग गोरा और साफ होना चाहिए हल्का सांवला भी हो लेकिन काला नहीं होना चाहिए. बच्ची को देवी बनने से पहले अपने साहस की भी कड़ी परीक्षा देनी पड़ती है. 

डरावने मंजर के बीच गुजारनी पड़ती है रात

मान्यता है कि अगर बच्ची में देवी तालेजू का वास होगा तो वह किसी ने नही डरेगी. इसकी परीक्षा के लिए बच्ची को पशुओं के कटे हुए सिर और खून में नाचते काले नकाबपोश लोगों के बीच एक रात गुजारनी पड़ती है. इस जगह पर मध्यम रोशनी होती है. बच्ची अगर जरा भी डरे या रोए तो उसे देवी परीक्षा से बाहर कर दिया जाएगा. फिर दूसरी बच्ची के साथ ये ही पूरा प्रोसेस दोहराया जाएगा. 

कुमारी देवी की चीजों को पहचानने की प्रक्रिया 

साहस की परीक्षा देने के बाद बच्ची के बाद बच्ची को पहले वाली कुमारी देवी की कुछ चीजों को पहचानना पड़ता है. अगर इसमें बच्ची पास हो गई तो वह देवी बनाने के लिए योग्य है. 

गुप्त तांत्रिक रस्में और शुद्धिकरण

बच्ची के शुद्धिकरण के लिए उसे कई गुप्त तांत्रिक रस्मों से गुजरना पड़ता है. बच्ची की आत्मा को साफ करने के लिए ये रस्में की जाती हैं. माना जाता है कि आत्मा के शुद्धिकरण के बाद देवी तालेजू उसमें प्रवेश करती हैं. इसके बाद उसे देवी तालेजू के रूप में सजाया जाता है. 

पहले से ही की जाती है बच्चियों को देवी बनाने की तैयारी 

शाक्य वंश में बच्चियों को देवी बनाने की पुरानी मान्यता है. माना जाता है जिस परिवार की बच्ची देवी बनेगी उस परिवार का नाम और कुल ऊंचा होगा. इसलिए बच्चियों को देवी बनने के लिए पहले से ही ट्रेनिंग दी जाती है. वहीं, जब बच्ची देवी का दर्जा खत्म होने के बाद सामान्य जीवन में लौटती है तो उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि जो बच्ची कई सालों तक अकेले, बिना परिवार, बिना दोस्तों, बिना समाज, देवी बनकर रही हो उसके लिए वापस समाज से जुड़ना आसान नहीं होता. 

यहां बड़ा सवाल ये भी है कि बच्ची किशोरावस्था में वापस लौटती है. तब तक वह स्कूल में जरूरी पढ़ाई से वंचित रह जाती है और उसे पढ़ाई नए सिरे से शुरू करनी पड़ती है. नेपाल की ये कुआंरी देवी की परंपरा बच्चों के अधिकारों के संतुलन पर सवाल उठाती है.

यहां सोचने वाली बात है कि महज 2 साल की उम्र में नन्हीं बच्ची कैसे श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक बन सकती है? क्या यह परंपरा के नाम पर एक बच्ची को उसके अधिकारों से वंचित करना नहीं है. क्या यह देश को अंधविश्वास की ओर नहीं धकेलती? एक बच्ची का मंदिर जैसे कुमारी आवास में रहना, उसका कठिन परीक्षा देना क्या आज के समय में सुरक्षित है? आप नेपाल की कुमारी देवी प्रथा को कैसे देखते हैं. अपनी राय जरूर दें. 

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