एक के पास Capacity नहीं तो दूसरे के पास Capability, सऊदी-PAK गठजोड़ कितना कारगर? कैसी है दोनों की सैन्य ताकत?
पाकिस्तान और सऊदी अरब ने स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) पर साइन किए हैं. इसके तहत अगर अब 'एक पर हमला दोनों पर हमला' माना जाएगा. ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर कल को रियाद पर हूती विद्रोही मिसाइल हमले करते हैं तो क्या पाकिस्तान अपने सैनिक यमन में भेजेगा? जो पहले से ही मना करता रहा है. वहीं अगर भारत के साथ पाकिस्तान की सीधी जंग हो जाए या सैन्य तनाव हो तो इसमें सऊदी अरब क्या करेगा, क्या वो अपनी सेना भेजेगा? इन सब बहसों से इतर, यहां ये जान लेना जरूरी है कि सऊदी अरब और पाकिस्तान की सैन्य ताकत, मिलिट्री रैंकिंग और सहयोग कैसा है? वहीं इसमें अगर एक और इस्लामी बिरादर मुल्क तुर्की भी मिल जाए तो क्या समीकरण बनेंगे?
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सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ है कि अगर दोनों में से किसी भी एक देश पर हमला होता है तो ये अटैक दोनों पर कंसीडर किया जाएगा. ये एक NATO जैसा पैक्ट है जिसकी चर्चा खूब हो रही है. हालांकि पहले से ही टेक्नोलॉजी, इंटेलिजेंस और हथियार मुहैया कराकर अमेरिका सुरक्षा के लेवल पर सऊदी की मदद करता रहा है. वहीं कहा जाता है कि पाकिस्तान सेना आधिकारिक और आनाधिकारिक रूप से मोनार्क और रॉयल फैमिली की सेफ्टी देखती है.
इसके वह अलावा सऊदी आर्मी को भी ट्रेन करने का काम करती है. इसी कारण है कि पूर्व पाक आर्मी चीफ राहिल शरीफ को सऊदी लेड मिलिट्री एलांयस की कमान दी गई थी. चुकि दोनों देशों में ये MoU हो गया है ऐसे में सऊदी और पाक की आर्मी की शक्ति और बैटलफील्ड रेडिनेस के बारे में जानना जरूरी हो जाता है.
आपको बताएं कि सऊदी अरब खाड़ी का आर्थिक और सैन्य रूप से शक्तिशाली देश है. उसने अपनी पेट्रो डॉलर की इनोनॉमी की बदौलत अपने पास आधुनिक हथियारों का जखीरा बना रखा है. ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स (GFP) 2025 के अनुसार, सऊदी अरब की सैन्य ताकत दुनिया में 24वें स्थान पर है. वहीं GFP Index की टॉप 15 ग्लोबल मिलिट्री पॉवर देशों की लिस्ट में पाकिस्तान 12वें नंबर पर है. इस रैंकिंग को तैयार करने के लिए करीब 145 देशों की समीक्षा की गई. 2025 के लिए, वार्षिक जीएफपी समीक्षा के लिए विचार किए गए 145 देशों में से पाकिस्तान को 12वां स्थान दिया गया है. पाकिस्तान का PwrIndx* स्कोर 0.2513 है (0.0000 का स्कोर 'परफेक्ट' माना जाता है).
कैसी है सऊदी अरब की सैन्य ताकत?
सऊदी अरब की सैन्य ताकत ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स (GFP) 2025 में 145 देशों की सैन्य ताकत का मूल्यांकन 60 से ज्यादा कारकों से किया गया है, जैसे सैनिक संख्या, हथियार, वित्तीय स्थिति, भूगोल और लॉजिस्टिक्स. सऊदी अरब का पावर इंडेक्स (PwrIndx) स्कोर 0.4201 है (जितना कम, उतनी ज्यादा ताकत). सऊदी का सक्रिय सैन्य बजट दुनिया में टॉप 5 में है, जो GDP का लगभग 9% है.
कुल सैनिक: 3.50 लाख (सक्रिय 2.25L, रिजर्व 1.25L) | आबादी: 3.53 करोड़
सेना (लैंड फोर्स): 2 लाख सक्रिय
टैंक: 1055 (315 M1A2 अब्राम्स, 450 M60A3, 290 AMX-30)
बख्तरबंद वाहन: 8200+ (400 M2 ब्रैडली IFV, 3000+ M113 APC, 570+ AMX-10P)
तोपखाना: 1100+ (110 सेल्फ-प्रोपेल्ड, 200+ टोन्ड, 60 MRL)
एंटी-टैंक मिसाइल: 2000+ | मोर्टार: 400
वायुसेना (RSAF): कुल 1106 विमान | 349 फाइटर/इंटरसेप्टर | 300+ फाइटर जेट (81 F-15SA, 72 टाइफून, 81 टॉरनेडो IDS) | 12 अपाचे AH-64 | 50+ ट्रांसपोर्ट हेलीकॉप्टर | एयर डिफेंस: 1000+ SAM (पैट्रियट, THAAD)
नौसेना (RSN): 34,000 सैनिक | 90+ एसेट्स | 7 फ्रिगेट | 4 कोरवेट | 59 पैट्रोल वेसल | 3 माइन वारफेयर
रणनीतिक मिसाइल फोर्स: 10 SSM (DF-21, चीनी बैलिस्टिक मिसाइल)
वित्तीय स्थिति कैसी है?
सऊदी अरब का सैन्य बजट $75 बिलियन से ज्यादा है. वो हथियारों के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है. और जैसा कि आपको कहा अमेरिका उसका सबसे बड़ा और मेन आर्म्स सप्लायर है. उसके पास अमेरिका के दिए F-15, पैट्रियट, ब्रिटेन का टाइफून, फ्रांस का AMX-30 और चीन की मिसाइलें भी हैं.
परमाणु क्षमता के मामले में कहें तो वो पीछे है. उसके पास कोई आधिकारिक परमाणु हथियार नहीं है. चुकि न्यूक्लियर वेपन आम तौर पर कोई बेचता नहीं, इसे खरीदा नहीं जा सकता, इसका आयात आसान नहीं है इसलिए वह इसे हासिल नहीं कर पाया है. हालांकि पाकिस्तान से इस संबंध में उसकी भूमिका संदेह के घेरे में है. GFP में भी इसे गैर-परमाणु देश माना गया.
सऊदी की असली ताकत आधुनिक हथियारों और अमेरिका का लगातार समर्थन है. इतनी भारी मात्रा में हथियारों के आयात के बावजूद वह वह इस रैंकिंग में ईरान से (रैंक 14) पीछे है. इसकी मुख्य वजह है ईरान का इंडिपेंडेंट वेपेन प्रोग्राम, प्रोडक्सन और R&D है. यहां तक कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम भी एडवांस स्टेज में है. लेकिन संख्या में ईरान से पीछे है. GFP में वह मध्य पूर्व में तीसरा सबसे मजबूत है लेकिन इजरायल और ईरान के बाद.
सऊदी अरब की सेना दुनिया की सबसे आधुनिक और महंगी हथियारों वाली सेनाओं में से एक है. 2025 में $142 बिलियन का अमेरिकी आर्म्स डील (मई 2025) से नई डिलीवरी हो रही हैं.
सऊदी आर्मी के मुख्य हथियार कौन से हैं?
टैंक और बख्तरबंद वाहन: M1A2 अब्राम्स (अमेरिकी, 315), M60A3 (450), AMX-30 (फ्रेंच, 290)
IFV: M2 ब्रैडली (400), AMX-10P (570). APC: M113 (3,000+), अल-फहद (100, स्वदेशी).
तोपखाने और मिसाइल: M109 सेल्फ-प्रोपेल्ड गन (110), M270 MLRS (60).
एंटी-टैंक: TOW मिसाइल (2,000+).
सरफेस-टू-एयर: पैट्रियट PAC-3 (अमेरिकी), THAAD (नई डील में).
वायुसेना के पास हथियार: F-15SA स्ट्राइक ईगल (81, अमेरिकी), यूरोफाइटर टाइफून (72, ब्रिटिश-यूरोपीय), टॉरनेडो (81, इटालियन-ब्रिटिश).
ड्रोन: MQ-9B रीपर (नई डील में). हेलीकॉप्टर: अपाचे AH-64 (12 अटैक), ब्लैक हॉक UH-60 (50 ट्रांसपोर्ट). नौसेना हथियार: फ्रिगेट: अल-मदीनाह क्लास (4), साव-सिपेक (3). कोरवेट: अवाड (4). पैट्रोल बोट: 59. मिसाइल: हार्पून एंटी-शिप
रणनीतिक हथियार: DF-21 बैलिस्टिक मिसाइल (चाइनीज, 10). स्मॉल आर्म्स: M16, AK-47, G3 राइफलें. नई खरीदारी (2025): $142 बिलियन अमेरिकी डील में F-35 जेट्स (संभावित), C-130J ट्रांसपोर्ट, MQ-9B ड्रोन, THAAD मिसाइल डिफेंस और C4ISR (कमांड-कंट्रोल सिस्टम) लॉकहीड मार्टिन, बोइंग, RTX जैसी कंपनियां शामिल. ये हथियार मुख्य रूप से अमेरिका (70%), यूरोप और चीन से आते हैं.
क्या सऊदी अरब-पाकिस्तान का सैन्य सहयोग तुर्की जितना मददगार हो सकता है?
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सैन्य संबंध लंबे समय से करीब 1960 से मजबूत हैं. सऊदी आज के डेट में पाकिस्तान का सबसे करीबी मध्य पूर्वी सहयोगी है. लेकिन तुर्की भी पाकिस्तान का सहयोगी मुल्क और आर्म्स सप्लायर है. जहां तक सऊदी के साथ इस्लामाबाद के सहयोग की बात है तो वह है फाइनेंशियल, रेमिटेंस के लेवल पर है. जहां तक सऊदी का सवाल है वो पाकिस्तान को पैसे से सहयोग करता है. लोन वेबर, बेलआउट पैकेस देता है और इंटेरेस्ट फ्री क्रूड ऑयल प्रोवाइड करता है. वहीं पाक एक मर्शीनरी आर्मी और वर्कर्स की सप्लाइ तक ही सीमित है. देने के मामले में उसके हाथ खाली हैं.
वहीं तुर्की के साथ पाक के सहयोग अलग प्रकार के हैं. तुर्की ने पाकिस्तान को MILGEM जहाज, T129 हेलीकॉप्टर बेचे. वहीं कुछ मोर्चों पर संयुक्त उत्पादन (SIPRI) भी है. इसके अलावा कई बार उसे कश्मीर पर राजनीतिक समर्थन भी दिया. और तो और 2023-2024 में तुर्की-पाकिस्तान-सऊदी ट्राइलेटरल डिफेंस कोलेबोरेशन शुरू हुआ.
क्या सऊदी और पाकिस्तान एक दूसरे की मदद कर सकते हैं? क्या इस्लामाबाद के लिए तुर्की की भूमिका को रिप्लेस कर सकता है सऊदी अरब?
सऊदी-पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग का इतिहास 1967 से हैं. इसी साल डिफेंस प्रोटोकॉल साइन हुआ और 1982 में नया समझौता किया गया, जिसके तहत पाकिस्तानी सेना के जवान सऊदी में तैनात हुए (1980-90 में 15,000-20,000).
वहीं यमन युद्ध (2015) में पाकिस्तान ने सलाह देने तक अपनी भूमिका सीमित रखी. इस संबंध में पाकिस्तानी कौमी असेंबली का निर्णय था कि वो सीधे सऊदी-यमन जंग में शामिल नहीं होगा. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि उसकी आने वाले दिनों में क्या भूमिका होगा. इसके बाद अब 2025 में सितंबर में 'स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट' साइन हुई है जो दोनों देशों के बीच आर्थिक, सैन्य और खुफिया सहयोग बढ़ाएगा.
हथियार और ट्रेनिंग: सऊदी अरब फिलहाल पाकिस्तानी अधिकारियों मॉडर्न वेपनरी की ट्रेनिंग देता है. वहीं पाकिस्तान सऊदी को सैन्य सलाह और ट्रेनिंग देता है.
दोनों देशों के बीच संयुक्त अभ्यास 'अल-समसम' (2015 से जारी है. सऊदी ने पाकिस्तान को $5 बिलियन की आर्थिक मदद और कम ब्याजर दर पर कर्ज दी, जिसका वो उसकी हथियार की खरीदारी में मदद करता है.
2023 में रियाद में ट्राइलेटरल मीटिंग, जहां R&D, तकनीक ट्रांसफर और संसाधन साझा करने पर सहमति. सऊदी पाकिस्तान को तेल सस्ता बेचता है, जो अर्थव्यवस्था मजबूत करता है.
सऊदी अरब की तरह ही तुर्की और पाकिस्तान का सहयोग सैन्य क्षेत्र में लंबे समय से गहरा रहा है. तुर्की ने पाकिस्तान को आधुनिक हथियार उपलब्ध कराए हैं, जिनमें MILGEM कोरवेट जहाज (4 ऑर्डर), T129 ATAK हेलीकॉप्टर और Bayraktar TB2 ड्रोन शामिल हैं। तुर्की NATO का भी मेंबर है. जहां उसके लिए वेपनरी का आयात भी आसान हो जाता है और उसकी कैपेबिलिटी भी बढ़ जाती है.
इसके अलावा दोनों देशों ने Super Mushshak ट्रेनर विमान के संयुक्त उत्पादन में भी भागीदारी की है. राजनीतिक स्तर पर भी तुर्की ने पाकिस्तान का साथ दिया है. खासकर कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में खुला समर्थन देकर तुर्किये ने भारत जैसे बड़े देश की दुश्मनी और नाराजगी मोल ली. 2024 में दोनों देशों के बीच हाई लेवल मिलिट्री डायलॉग ग्रुप की बैठक ने इस सहयोग को और मजबूत किया.
इसके मुकाबले सऊदी अरब और पाकिस्तान का रिश्ता ज्यादा आर्थिक और सैन्य ट्रेनिंग पर आधारित रहा है और हथियारों की बिक्री सीमित रही है, लेकिन 2025 की नई डील से सऊदी अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की मदद कर सकता है, खासकर ट्राइलेटरल फ्रेमवर्क (जहां तीसरे देश भी शामिल होंगे) के ज़रिए। हालांकि भविष्य में ईरान या यमन जैसी स्थिति पनपती है, तो सऊदी और पाकिस्तान के बीच भागीदारी की असली परीक्षा होगी. इसके अलावा ये भी देखने वाली बात होगी कि ऑपरेशन सिंदूर जैसी स्थिति आती है तो पाक के लिए सऊदी क्या करेगा और अफगानिस्तान के साथ पाक आर्मी के जवानों का झड़प होती रहती है, तो वहां वो क्या करेगा.
सऊदी और तुर्की की पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद में फर्क यह है कि तुर्की पाकिस्तान को तकनीकी ट्रांसफर और स्वदेशी हथियार क्षमता देने में मदद करता है, जबकि सऊदी अरब आर्थिक सहायता, सैन्य ट्रेनिंग और फोर्स तैनाती के जरिए सहयोग करता है। ट्राइलेटरल ढांचे के तहत सऊदी पाकिस्तान के साथ संयुक्त R&D और रक्षा परियोजनाओं में भी उतर सकता है।
हालांकि, वैश्विक मोर्चे पर सऊदी अरब उतना मुखर नहीं है जितना कि तुर्की है, खासकर कश्मीर जैसे मुद्दों पर। लेकिन सामरिक और आर्थिक नजरिए से देखा जाए तो सऊदी पाकिस्तान का 'बड़ा भाई' है.
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