खालिस्तानियों का गढ़ बने कनाडा को पहली बार मिल सकता है हिंदू PM, 2 भारतीय मूल के सांसदों ने ठोकी दावेदारी
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस्तीफे का ऐलान कर दिया है। इसके बाद से खालिस्तानियों का गढ़ बन चुके कनाडा के अगले पीएम को लेकर चर्चाएं तेज हो चुकी है दो भारतवंशियों का नाम कनाडा के पीएम पद की रेस में आगे चल रहा है. जिससे ट्रूडो के साथ साथ खालिस्तानियों की तकलीफ बढ़ती जा रही है
भारत को आँख दिखाकर ख़ुद दो तानाशाह समझ रहे जस्टिन ट्रूडो पर ऐसी आफ़त आई। ना कुर्सी बच पाई। ना सत्ता का सुकून।क्योंकि जस्टिस ट्रूडो के ख़िलाफ़ दूसरे देश बाद में मोर्चा खोलत। ख़ुद अपनों ने ट्रूडो के आगे मुश्किल खड़ी कर दी। हारकर जस्टिस ट्रूडो को प्रधानमंत्री पद के साथ साथ पार्टी नेता पद से भी इस्तीफ़े का ऐलान करना पड़ा। ऐसे में अब खालिस्तानियों का गढ़ बन चुके कनाडा के अगले प्रधानमंत्री को लेकर चर्चाएं तेज हो गई है। लेकिन जो नाम निकलकर सामने आ रहे हैं। उन नामों ने ना सिर्फ़ ट्रूडो की ज़मीन हिलाकर रख दी है। बल्कि खालिस्तानियों में भी हड़कंप मचा दिया है।क्योंकि कनाडा के प्रधानमंत्री पद के जो दो दावेदार हैं वो खालिस्तानियों के लिए काल बनकर खड़े हो सकते हैं।
कनाडा के पीएम पद के दावेदारों में दो भारतवंशियों के नाम भी शामिल हैं।कनाडा के इस सर्वोच्च पद के लिए चंद्र आर्य और अनित आनंद ने अपनी अपनी दावेदारी पेश की है।चंद्र आर्य और अनिता आनंद दोनों ही भारतीय मूल के हिंदू सांसद हैं।
सबसे आगे कनाडा के पीएम बनने के दावेदारों में किसी का नाम चल रहा है तो वो हैं भारतीय मूल की हिंदू सांसद अनीता आनंद तो आगे कुछ बताएँ। उससे पहले ये बताते हैं कि आख़िर ।
कौन हैं अनीता आनंद ?
अनीता आनंद भारतीय मूल की कनाडाई महिला है। अनीता आनंद लिबरल पार्टी की वरिष्ठ सदस्य हैं। अनीता आनंद फिलहाल परिवहन मंत्री और आंतरिक व्यापार मंत्री है। इससे पहले उन्होंने कनाडा के राष्ट्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी ज़िम्मेदारी निभाई थी।अनीता के माता-पिता भारतीय मूल के थे पिता एसवी आनंद दक्षिण भारत से थे और वो डॉक्टर थे। अनीता के माता पिता 1960 के दशक में कनाडा चले गए थे। अनीता ने क्वींस यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ आर्ट्स किया है।डलहौज़ी यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री प्राप्त की है, ऑक्सोर्ड यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया।करियर की शुरुआत अनीता आनंद ने वकील और प्रोफ़ेसर के रूप में की।
तो अगर अनीता आनंद कनाडा की अगली पीएम बनती हैं तो भारत और कनाडा के बीच बिगड़े रिश्तों में सुधार की संभावनाएँ बढ़ जाएंगी। क्योंकि ट्रूडो के शासन में दोनों देशों के बीच के रिश्ते अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे। कनाडा भारत के बीच खटास का सबसे अहम मुद्दा खालिस्तानी आतंकियों की रहा है। जिसे हमेशा ट्रूडों ने बढ़ावा दिया है। तो ऐसे में अगर एक भारतीय मूल की महिला सांसद कनाडा की कमान सँभालती है। तो ये भारत के लिए भी अहम होगा। वहीं दूसरी तरफ़ एक और भारतीय मूल के नेता का नाम पीएम बनने की रेस में आगे चल रहा है। वो नाम है। चंद्र आर्य का। जिनका नाम पीएम की रेस में सबसे आगे चल रहा है। बता दें की एक वक़्त पर चंद्र आर्य जस्टिस ट्रूडो के करीबी थे। लेकिन जब भारत कनाडा के बीच तनाव पैदा हुआ तो ट्रूडो का भारत विरोधी रवैया सामने आया तो वैसे ही उनके और ट्रूडो के रिश्ते में भी दूरियां आ गई। अब आप सोच ही सकते हैं कि जब चंद्र आर्य भारत को आँख दिखाने पर ट्रूडो से दुश्मनी ले सकते हैं। तो प्रधानमंत्री बनने पर वो भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर भारत विरोधियों के साथ क्या कुछ नहीं कर सकते हैं.. चलिए ये भी बताते हैं कि आख़िर।
कौन हैं चंद्र आर्य ?
चंद्र आर्य का जन्म कर्नाटक के तुमकुरु में हुआ था। कौसाली इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़, धारवाड़ से एमबीए किया। भारत में एमबीए करने के बाद आर्य साल 2006 में कनाडा चले गए। कनाडा जाकर राजनीति में कदम रखने से पहले आर्य इंडो कनाडा इटावा बिज़नेस चैंबर के अध्यक्ष थे।
2015 में चंद्र आर्य पहली बार सांसद बने, साल 2019 में दूसरी बार चुनाव जीते।
तो दोनों ही भारतीय मूल के नेताओं ने कनाडा के अगले पीएम की दावेदारी में अपना अपना नाम आगे बढ़ा दिया है। बताया जा रहा है कि दोनों ही खालिस्तानियों आतंकियों के विरोधी हैं। चंद्र आर्य खालिस्तानी गतिविधियों के आलोचक हैं। समय समय पर खालिस्तानी गतिविधियों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। और अपनी पार्टीतक से वो इसको लेकर उलझ चुके हैं। हालांकि में जब ब्रैम्पटन शहर में हिंदू मंदिर पर हमला हुआ तो चंद्र आर्य ने अपने विचार सामने रखे थे। और वो खुलकर हिंदू समाज की आवाज़ बने थे। इसी के साथ पिछले साल चंद्र आर्य भारत की यात्रा पर आए थे। तो उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से भी मुलाक़ात की थी। तो ऐसे में भारत की तरफ़ अपना रुख़ रखने वाला नेता यानी भारतीय मूल का नेता कनाडा का प्रधानमंत्री बनता है तो जस्टिन ट्रूडो कहीं के नहीं रहेंगे। जबसे ये दो नाम चर्चा में छाए हैं। सबसे ट्रूडो की टीम और खालिस्तानियों के हालत ख़राब हो गई है।