कौन हैं जस्टिस सूर्यकांत? जो बन सकते हैं देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश, CJI बी.आर. गवई ने सरकार को भेजी सिफारिश
देश के मौजूदा सीजेआई बी.आर. गवई के सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस सूर्यकांत मुख्य न्यायाधीश का पद संभाल सकते हैं. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही वे 24 नवंबर को शपथ लेंगे और उनका कार्यकाल 9 फरवरी 2027 तक रहेगा. हरियाणा के हिसार में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत 2000 में एडवोकेट जनरल, 2004 में हाई कोर्ट जज, 2018 में हिमाचल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और 2019 में सुप्रीम कोर्ट जज बने थे.
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देश की न्यायपालिका में अगले महीने यानी नवंबर में बड़ा बदलाव होने वाला है. देश के 53वें मुख्य न्यायधीश जस्टिस सूर्यकांत हो सकते है. मौजूदा चीफ जस्टिस बी आर गवई ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर उनके नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेज दी है. सीजेआई गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ऐसे में अगर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इस सिफारिश को मंजूरी दे देती हैं, तो 24 नवंबर को जस्टिस सूर्यकांत देश के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. उनका कार्यकाल लगभग 15 महीनों का होगा, जो 9 फरवरी 2027 तक चलेगा.
दरअसल, भारतीय न्याय व्यवस्था में यह परंपरा रही है कि मौजूदा मुख्य न्यायाधीश अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश कानून मंत्रालय को तभी भेजते हैं जब उनसे औपचारिक रूप से ऐसा करने को कहा जाता है. वर्तमान में यही परंपरा इस बार भी निभाई गई है.
जस्टिस सूर्यकांत कब बने पहली बार जज?
जस्टिस सूर्यकांत का जीवन संघर्ष और सफलता की प्रेरणादायक कहानी वाला है. उनका जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में हुआ. वे एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत शुरू की और वर्ष 2000 में हरियाणा के एडवोकेट जनरल नियुक्त हुए. इसके बाद 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का जज बनाया गया. न्याय के प्रति उनकी निष्पक्षता और गहराई से सोचने की क्षमता ने उन्हें 2018 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया. इसके अगले ही साल, यानी 24 मई 2019 को, उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया.
कोर्ट में रखते हैं बेहद संतुलित रवैया
जस्टिस सूर्यकांत अपने संतुलित और उदार रवैये के लिए जाने जाते हैं. अदालत में वे न केवल वकीलों को पूरी बात रखने का अवसर देते हैं, बल्कि खुद भी सटीक और तर्कसंगत प्रश्नों के माध्यम से हर मामले की गहराई तक जाते हैं. व्यक्तिगत रूप से पेश होने वाले पक्षकारों के प्रति उनका रवैया हमेशा दयालु और मानवीय रहा है. कई बार वे परिवार के सदस्य की तरह लोगों की बातें सुनते और समाधान सुझाते देखे गए हैं. उनकी इसी छवि और कार्य करने की शैली में आज उन्हें देश के मुख्य न्यायधीश की कुर्सी पर विराजमान होने के मुहाने पर लाया है.
महत्वपूर्ण मामलों में निर्णायक भूमिका
अपने न्यायिक करियर के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कई ऐतिहासिक मामलों की सुनवाई की है. वे उस सात जजों की बेंच का हिस्सा थे जिसने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक संस्थान मानने के पक्ष में फैसला सुनाया और 1967 के पुराने निर्णय को पलट दिया. वे पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच के लिए बनी कमिटी वाली बेंच में भी शामिल रहे. इसके अलावा, अंग्रेजों के जमाने के राजद्रोह कानून पर रोक लगाने वाले ऐतिहासिक फैसले में भी वे शामिल थे. इसके अलावा जस्टिस सूर्यकांत इस समय भी वह बिहार SIR (मतदाता सूची पुनरीक्षण), शिवसेना चुनाव चिह्न विवाद, अवैध घुसपैठियों के निष्कासन और डिजिटल अरेस्ट समेत कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने हाल ही में हुए उदार दृष्टिकोण का उदाहरण तब पेश किया, जब एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश की ओर जूता उछालने की हरकत की. कोर्ट ने उस पर अवमानना नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए कहा कि अदालत ऐसे व्यक्ति को महत्व नहीं देना चाहती.
बताते चलें कि अगर सब कुछ तय योजना के मुताबिक हुआ, तो 24 नवंबर को जस्टिस सूर्यकांत भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालेंगे. न्यायपालिका में उनका आगमन न केवल एक नई शुरुआत का संकेत होगा, बल्कि यह उम्मीद भी जगाएगा कि आने वाला दौर संवेदनशील, पारदर्शी और आम जनता के हित में न्याय देने वाला होगा.
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