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सुप्रीम कोर्ट ने CBI को सौंपी डिजिटल अरेस्ट स्कैम की जांच, RBI को भी बनाया पक्षकार, बैंक भी एजेंसी के रडार पर

डिजिटल अरेस्ट के बढ़ते मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. इस केस की जांच CBI को सौंप दी गई है. इस मामले में RBI से भी सवाल-जवाब किया गया है. इतना ही नहीं बैंकों की भी भूमिका की जांच की जाएगी. CJI सूर्यकांत ने राज्यों को भी इस मामले में सख्त आदेश दिए हैं.

देशभर में तेजी से डिजिटल अरेस्ट के मामले बढ़ रहे हैं. अब इस अपराध में शामिल लोगों की खैर नहीं. दरअसल साइबर फ्रॉड के उन्नत स्वरूप डिजिटल अरेस्ट की लगातार सामने आ रही शिकायतों पर गंभीर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है. कोर्ट ने कहा कि इस स्कैम की जांच अब CBI करेगी. यह जांच अन्य किसी स्कैम से अलग और प्राथमिकता के आधार पर की जाएगी.

CJI की अगुवाई वाली बेंच का आदेश

मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने सीबीआई को मामलों की विस्तृत जांच का निर्देश दिया. साथ ही एजेंसी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत बैंकरों की भूमिका की जांच करने की पूरी आजादी भी दी है, खासकर उन मामलों में जहां डिजिटल अरेस्ट स्कैम को अंजाम देने के लिए बैंक अकाउंट खोले गए हैं.

RBI को भी बनाया गया पक्षकार

सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट पर स्वतः संज्ञान लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भी पक्षकार बनाया है. कोर्ट ने आरबीआई से पूछा कि देश में ऐसे बैंक खातों की पहचान कर अपराध की कमाई को फ्रीज करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग कब लागू की जाएगी. बेंच ने कहा कि यह तकनीक लाखों लोगों को ठगने वाले डिजिटल अरेस्ट गिरोहों पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभा सकती है.

CBI को फुल पावर!

कोर्ट ने साफ कहा कि आईटी इंटरमीडियरी रूल्स 2021 के तहत सभी अथॉरिटीज सीबीआई को पूरा सहयोग देंगी. जिन राज्यों ने अभी तक सीबीआई को मंजूरी नहीं दी है, उन्हें भी आईटी एक्ट 2021 से जुड़े मामलों की जांच के लिए अनुमति देने का निर्देश दिया गया है ताकि सीबीआई पूरे देश में बड़े स्तर पर कार्रवाई कर सके.

इंटरपोल की मदद भी ले सकेगी CBI

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जरूरत पड़ने पर सीबीआई इंटरपोल की मदद भी ले सकती है. डिजिटल अरेस्ट स्कैम में फर्जी या एक ही पहचान पर कई सिम कार्ड जारी करने के मामलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम विभाग को निर्देश दिया है कि वह एक विस्तृत प्रस्ताव दाखिल करे. इसका उद्देश्य टेलीकॉम कंपनियों को सख्त दिशानिर्देश जारी करना है ताकि सिम कार्ड का दुरुपयोग रोका जा सके और अपराधियों पर लगाम कसी जा सके.

राज्यों में साइबर क्राइम सेंटर स्थापित करने के आदेश!

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी राज्य सरकारें तुरंत साइबर क्राइम सेंटर स्थापित करें. अगर किसी राज्य को इस प्रक्रिया में कोई दिक्कत आती है तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट को सूचित करे. कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आईटी नियमों के तहत, राज्यों की पुलिस साइबर अपराध मामलों में जब्त किए गए सभी मोबाइल फोन और डिजिटल डिवाइस का डाटा सुरक्षित रूप से संरक्षित करे.

IT Act के तहत दर्ज FIR सीबीआई को सौंपेंगे राज्य!

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया है कि आईटी एक्ट 2021 के तहत दर्ज हर एफआईआर को सीबीआई को सौंप दिया जाए ताकि एक केंद्रीकृत और मजबूत जांच हो सके. सीजेआई सूर्यकांत ने कहा कि कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने के बाद बड़ी संख्या में पीड़ित सामने आए, जिनमें से अधिकतर सीनियर सिटिजन्स हैं. उन्हें विभिन्न तरीकों से धमकाकर, डराकर और ऑनलाइन गिरफ्तार दिखाकर ठगा गया.

वहीं बीते दिनों वित्तीय धोखाधड़ी रोकने के लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाया था. इसके तहत अब ED द्वारा जारी समन पर क्यूआर कोड को अनिवार्य कर दिया गया. यानी कि अब ईडी के सभी समन क्यूआर कोड के साथ जारी किए जाएंगे, जिससे आसानी से इसकी पुष्टि हो सकेगी कि यह असली है या नहीं. 

क्यों अनिवार्य किया गया QR कोड वाला फैसला?

दरअसल कई मामलों में जाली समन ईडी के असली समन के जैसे लगते हैं. इस कारण से कई बार असली-नकली में अंतर करना काफी कठिन हो सकता है. इस कारण, अब ईडी सिस्टम जनरेटेड समन जारी करेगा, जिस पर क्यूआर कोड और यूनिक पासकोड होगा. इससे कोई नागरिक इन समन की प्रामाणिकता की आसानी से पुष्टि कर सकेगा. इन समन की पुष्टि ईडी वेबसाइट पर जाकर या क्यूआर को स्कैन करके आसानी से की जा सकती है.

डिजिटल अरेस्ट पर क्या है ED का स्टैंड?

आपको बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय यानी कि ईडी कभी भी डिजिटल और ऑनलाइन अरेस्ट नहीं करता है. इस कारण नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वे सतर्क रहें और ऑनलाइन स्वयं को ईडी अधिकारी बताने वाले धोखेबाजों के झांसे में न आएं.

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया जब कुछ जालसाज पुलिस, कस्टम, ईडी, CBI और RBI अधिकारी बनकर आम नागरिकों से पैसे ऐंठने के लिए “डिजिटल अरेस्ट” का इस्तेमाल कर रहे हैं.

साइबर क्राइम की रोकथाम को लेकर क्या कहता है कानून?

भारत के संविधान के सातवें शेड्यूल के अनुसार, ‘पुलिस’ और ‘पब्लिक ऑर्डर’ राज्य के विषय हैं. राज्य और केंद्रशासित प्रदेश मुख्य रूप से अपनी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों के जरिए साइबर क्राइम और डिजिटल अरेस्ट स्कैम जैसे अपराधों की रोकथाम, पता लगाने, जांच और मुकदमा चलाने के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसकी जांच सीबीआई को देनी ही होगी.

एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, केंद्र सरकार अपनी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों की कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए अलग-अलग स्कीम के तहत सलाह और फाइनेंशियल मदद देकर इन कोशिशों को सपोर्ट करती है.

TRAI ने भी उठाया था ठोस कदम!

वित्तीय धोखाधड़ी को कम करने के लिए टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने बीते दिनों बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस (बीएफएसआई) सेक्टर की सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के लिए '1600' नंबरिंग सीरीज अपनाने को अनिवार्य कर दिया था. आधिकारिक बयान में कहा गया कि ट्राई की पहल के तहत 1600 नंबर की सीरीज दूरसंचार विभाग द्वारा बीएफएसआई सेक्टर को आवंटित की गई है. इससे लोगों को वित्तीय संस्थाओं से सही और विश्वसनीय कॉल मिलेंगे.

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