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सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को दिया झटका, AAP में बौखलाहट, LG के हाथ लगी चाबी

न्यायालय ने कहा दिल्ली उपराज्यपाल एल्डरमैन की नियुक्ति के मामले मे दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह के लिए बाध्य नही क्योंकि इस संबंध मे उनकी शक्तियां दिल्ली नगर निगम अधिनियम से प्राप्त है।

दिल्ली में जो जमीनी हकीकत है वो भयानक है, सरकार जो कर रही है वो शर्मनाक है।लेकिन फिर भी हिमाकत इतनी है कि खुद को सबसे सच्चा, ईमानदार दिखाने के लिए दिल्ली की आम आदमी सरकार कुछ भी करने को तैयार है। अगर दिल्ली प्यासी मरती है तो पानी के लिए हरियाणा, हिमाचल जिम्मेदार, दिल्ली में बाढ़ आ जाती है तो एलजी जिम्मेदार है। बाढ़ के पानी से दिल्ली में तीन चिरागों को बुझा दिया गया।क्योंकि दिल्ली के नालों में गाध जमी है, वो साफ नहीं हो पा रहे है और ये जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के मुताबिक उसकी भी नहीं है।लेकिन उसे राजनीति करनी है, और उसके लिए वो जो बन पड़ेगा करेगी,लोगों को बहम है कि केजरीवाल को लोगों की सेवा करनी है, लेकिन सच ये है कि केजरीवाल को सत्ता लगी है।

लेकिन उसके सत्ता के लालच को बड़ा झटका लगा है।सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आईना दिखाया है।दरअसल लंबे वक्त से दिल्ली में मनोनीत पार्षदो को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में था। दिल्ली में एलजी बिना सरकार की अमुमति के दस पार्षदो को नियुक्त करते थे, लेकिन केजरीवाल सरकार को इस बात पर ऐतराज था, और वो इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।और लंबे वक्त बाद मामले में फैसला आया, फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि-  एलजी को पार्षदो को मनोनीत करने का अधिकार है, इसके लिए दिल्ली सरकार की सहमति की जरुरत नहीं है।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की वजह से दिल्ली में एमसीडी स्चैंडिंग कमेटी का चुनाव भी रुका था और मनोनीत पार्षद इसमें वोट करते है, यहां पहले एक बार दिल्ली में एमसीडी के गणित को समझ लेना जरुरी है।एमसीडी में आप के पास 134 पार्षद है, बीजेपी के पास 104 पार्षद है, और 10 पार्षद एलजी मनोनीत करते है।

तो केजरीवाल को ड़र है कि अगर आप के कुछ पार्षद गड़बड़ करते है तो केजरीवाल का गणित बिगड़ सकता है।और केजरीवाल को सबसे प्यारी कुर्सी ही है।खैर यहां एक बार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विस्तार से समझने की जरुरत है, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि - पार्षदो की नियुक्ति करना एलजी का वैधानिक काम है, वो सरकार की सलाह से बंधे हुए नहीं है।1993 में संशोधित दिल्ली नगर निगम अधिनियम के मुताबिक एलजी को नियुक्ति का अधिकार देती है, दिल्ली के प्रशासक के तौर पर मिला ये अधिकार न तो अतीत का अवशेष है और ना ही इसके जरिए संवैधानिक शक्तियों का अतिक्रमण होता है। कोर्ट का फैसला करीब 15 महिनों बाद आया है,  सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है उसे आप के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।क्योंकि जब स्टैंडिग कमेटी का चुनाव होगा तो आप की मुस्किलें बढ़ सकती है।हालांकि फैसला ऐसे में व्कत में आया है जब आम आदमी सरकार दिल्ली के बुनियादी ढांचे को लेकर घिरी हुई है।तो अब देखना होगा कि फैसले के बाद क्या दिल्ली की दशा में कुछ सुधार होता है कि हालात ज्यों के त्यों बने रहते है।

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