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आर्मी क्वार्टर की मस्जिद-ए-आलीशान में नमाज नहीं पढ़ सकते बाहरी लोग, सुप्रीम कोर्ट ने एंट्री पर लगाया ब्रेक

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दो जजों की बेंच ने आर्मी क्वार्टर की मस्जिद में बाहरियों को नमाज पढ़ने देने की मांग को सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा बताया.

18 Nov, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
02:28 AM )
आर्मी क्वार्टर की मस्जिद-ए-आलीशान में नमाज नहीं पढ़ सकते बाहरी लोग, सुप्रीम कोर्ट ने एंट्री पर लगाया ब्रेक

सुप्रीम कोर्ट (Suoreme Court) ने मद्रास हाईकोर्ट (Madras high court) के उस फैसले को बरकरार रखा है. जिसमें सैन्य परिसर के अंदर एक मस्जिद (Mosque) में आम लोगों को नमाज अदा करने की परमिशन नहीं दी गई थी. शीर्ष अदालत ने सुरक्षा संबंधी मुद्दों का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया. 

दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट में आर्मी क्वार्टर के परिसर में स्थित मस्जिद (मस्जिद ए आलीशान) में बाहरी लोगों को नमाज पढ़ने देने की अनुमति मांगी गई थी, लेकिन हाई कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप से इंकार कर दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और आर्मी क्वार्टर की मस्जिद में आम लोगों के नमाज के पक्ष में तर्क दिए. 

सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ? 

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने की. इस दौरान उन्होंने कहा, आर्मी क्वार्टर की मस्जिद में आम नागरिकों को नमाज की परमिशन का मुद्दा सुरक्षा से जुड़ा है. हम इसकी अनुमति कैसे दे सकते हैं? 

इस पर याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मस्जिद-ए-आलीशान में नागरिको के प्रवेश पर केवल कोविड-19 महामारी के दौरान ही रोक लगाई थी. साल 1877 से 2022 तक सुरक्षा जैसी कोई समस्या नहीं आई. हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस तर्क से सहमत नहीं था और बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को बदलने से इंकार कर दिया. 

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याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में दी गई दलील के बारे में बताया था. कहा गया था, सेना के अधिकारी सैन्य क्वार्टर के अंदर मस्जिद ए आलीशान में आम लोगों को नमाज की परमिशन नहीं दे रहे हैं. 

हाई कोर्ट ने मस्जिद में नमाज की याचिका पर क्या कहा? 

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जब ये मामला मद्रास हाई कोर्ट में पहुंचा तो सिंगल जज की बेंच ने सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि छावनी भूमि प्रशासन नियम, 1937 के अनुसार, मस्जिद मुख्य रूप से यूनिट से जुड़े लोगों के इस्तेमाल के लिए है. बाहरी लोगों को प्रतिबंधित करने का फैसला प्रशासन और सैन्य अधिकारियों का विशेषाधिकार है. ऐसे में बाहरी लोगों को नमाज की परमिशन दी जाए या नहीं, यह फैसला लेना प्रशासन ही लेगा. हाई कोर्ट ने कहा कि वह सैन्य अधिकारियों के बाहरी लोगों को उपासना या अन्य किसी मकसद से परिसर में एंट्री की अनुमति नहीं देने के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता. 

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