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मुस्लिम बेटे ने हिंदू मां को दी मुखाग्नि, त्रिवेणी में अस्थि विसर्जन करेंगे असगर, मिसाल बना रिश्ता

भीलवाड़ा के जंगी मोहल्ले की तंग गलियों से निकली असगर अली और शांति देवी की कहानी ने मजहब की दीवारें तोड़ इंसानियत की मिसाल कायम की. जिसने बताया हिंदू मुस्लिम भाई-भाई ही नहीं मां-बेटे भी हो सकते हैं.

राजस्थान के भीलवाड़ा मां बेटे के रिश्ते की ऐसी मिसाल देखने को मिली. जिसने साबित कर दिया कि रिश्तों की डोर किसी मजहब की मोहताज नहीं है. यहां मुस्लिम बेटे असगर अली ने हिंदू मां को मुखाग्नि दी. पूरे रिति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया और अब त्रिवेणी संगम में मां की अस्थियां विसर्जित करेंगे. 

ये मामला है भीलवाड़ा के जंगी मोहल्ले का. जहां की तंग गलियों से निकली असगर अली और शांति देवी की कहानी ने हर किसी को भावुक कर दिया. दरअसल, 42 साल के असगर अली की मनियारी के जंगी मोहल्ले में छोटी सी दुकान है. उनके पड़ोस में 67 साल की शांति देवी रहती थीं. शांति देवी का कोई नहीं था पड़ोस में रहने वाले असगर अली ने सालों पहले जब उन्हें पहली बार मां कहा तो वह हमेशा के लिए शांति देवी का बेटा बन गया और उनकी मौत पर बेटे का फर्ज निभाते हुए शांति देवी को मुखाग्नि दी और बेटे के सारे फर्ज निभाए. 

मां के निधन पर असगर अली ने कहा, मेरे लिए सब कुछ खत्म हो गया है. मां के बिना अब लावारिस और बिल्कुल अकेला हो गया हूं. मैं मेरा दुख किसी को सुना नहीं सकता. दुआ है मुझे हर जन्म ऐसी ही मां मिले.


कैसे जुड़ा शांति देवी और असगर अली का रिश्ता? 

दरअसल, शांति देवी और उनके पति ने करीब 30 साल पहले जंगी मोहल्ले में दुकान लगाई थी. उसी दुकान के पास असगर अली के मां-पिता भी काम करते थे. तभी से दोनों परिवार एक दूसरे के बेहद करीब हैं. 30 साल से दोनों न केवल फैमिली फ्रेंड्स हैं बल्कि एक फैमिली ही है. साल 2010 में शांति देवी के पति की मौत हो गई. इसके बाद शांति देवी अपने बेटे के साथ उसी मकान में किराए पर रहने लगी. जहां अली असगर का परिवार पहले से किराए पर रहता था. नीचे शांति देवी अपने बेटे के साथ रहती थीं तो वहीं, पहले फ्लोर पर असगर अली का परिवार रहता था. 

अली की मां को दिया सहारा

असगर अली ने बताया कि साल 2017 में उसके पिता का देहांत होने के बाद शांति देवी मां के साथ बहन की तरह खड़ी रही. हर समय हिम्मत दी. असगर अली उन्हें मासी कहा करते थे. फिर साल 2018 में शांति देवी का बेटा जंगली जानवर का शिकार हो गया और उसकी मौत हो गई. बेटे को खोने के बाद जब शांति देवी गहरे अवसाद में चली गई तब असगर अली के परिवार ने उन्हें बड़ा सहारा दिया, सब साथ में ही रहने लगे. शांति देवी ने असगर अली को बेटे की तरह प्यार दिया. 
साल 2023 में असगर अली की मां का निधन हो गया. इसके बाद शांति देवी ने असगर अली को कभी अकेला नहीं छोड़ा हमेशा बेटे की तरह प्यार दिया. असगर अली ने भी शांति देवी की खूब सेवा की. 

मां के लिए छोड़ा नॉनवेज खाना 

असगर अली ने बाया कि, शांति देवी नॉनवेज नहीं खाती थी इसलिए उन्होंने भी घर में नॉनवेज खाना और बनाना छोड़ दिया था. वह हर अच्छे काम में मां के लिए साड़ी और मिठाई लाया करते थे. ये देख शांति देवी की आंखे भर आती थीं और हमेशा वह असगर की तरक्की के लिए प्रार्थना करती थीं. ईद हो या दीपावली दोनों परिवारों ने हमेशा एक दूसरे के साथ ही त्यौहार मनाए. 

मां की इच्छा पूरी करेंगे असगर

असगर अली ने बताया कि, शांति देवी की अस्थियां प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में विसर्जित की जाएंगी. वह खुद प्रयागराज जाकर हिंदू संस्कार के साथ अस्थियां विसर्जित करेंगे. क्योंकि शांति देवी की इच्छा थी कि त्रिवेणी संगम में ही उनकी अस्थियों का विसर्जन किया जाए. असगर अली का कहना है कि, उन्हें मां माना तो हर कर्म पूरे करना मेरा फर्ज है. हिंदू और मुस्लिम दोनों को ऊपर ही जाना है और साथ केवल मोहब्बत जाती है. 

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