सिर्फ 2 नंबर कम आये थे…18 साल की अदिति ने आत्महत्या कर ली !
सॉरी मम्मी पापा ! मेरा समय अब ख़त्म, ये बोलकर 18 साल की लड़की ने आत्महत्या कर ली। अदिति के ऐसा कदम उठाने के बाद से ही पूरे देश में उसकी चर्चा हो रही है।
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सॉरी मम्मी पापा ! मेरा समय अब ख़त्म। माता रानी ने 18 साल के लिए ही मुझे भेजा था ।और ये कहकर 18 साल की अदिति मिश्रा ने अपनी ज़िंदगी को ख़त्म कर मौत को गले लगा लिया, वजह जानते हैं क्या थी ? वजह थी एक मामूली सी परीक्षा में असफल होना, वजह थी कट ऑफ लिस्ट से बस कुछ नंबर दूर रह जाना, वजह थी असफलताओं का बोझ ना संभाल पाना, वजह थी अपेक्षाओं पर खरा ना उतर पाना।
2022 NCRB की एक रिपोर्ट बताती है कि एक साल में 13 हज़ार 44 बच्चों ने मौत का रास्ता चुना, क्यों ? क्योंकि वो परीक्षाओं में असफल रहे। ये किसकी गलती है ? उन बच्चों की जो आत्महत्या कर रहे हैं ? उन माता पिताओं की जिनकी परवरिश बच्चों को उम्मीदों के बोझ तले दबाये जा रही है ? या फिर सिस्टम की जिसने आरक्षण की आड़ में दो नंबर कम वाले को तो कट ऑफ से बाहर कर दिया लेकिन 30 नंबर कम वाले पर सफल होने का ठप्पा लगा दिया ?
ये अंतहीन बहस का विषय हो सकता है, लेकिन कोई लाइलाज बीमारी तो नहीं ? अब सवाल शिक्षा में आरक्षण का तो रह ही नहीं गया है, बात तो उन फूल जैसे दिल वाले बच्चों की है जो अपनी एक असफलता नहीं झेल पा रहे हैं और मौत को गले लगा रहे हैं। आप सोचिये ये 18 साल की बच्ची अदिति मिश्रा जो इंजीनियरिंग की छात्रा थी। उसने JEE का Exam दिया था, नतीजे उसके पक्ष में नहीं आये तो उसने अपनी पूरी ज़िंदगी को ही असफलता की श्रेणी में रख लिया, उसने ये मान लिया कि वो जिंदगीभर अब कुछ नहीं कर पाएगी ? उसने ख़ुद को Looser समझा और दुनिया को अलविदा कह दिया।
अदिति मिश्रा का परिवार संत कबीरनगर जिले का रहने वाला है।
अदिति गोरखपुर में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी।
मंगलवार को JEE का रिज़ल्ट आया जिसमें वो असफल हुई थी।
हताश अदिति ने बुधवार को पहले अपने पिता को फ़ोन किया, उनसे रिचार्ज कराने के लिए कहा और उसके बाद सीधा उसकी मौत की ख़बर आई।
फांसी लगाकर जान देने वाली अदिति ने एक सुसाइड नोट छोड़ा।
अदिति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा-
सॉरी मम्मी-पापा, मुझे माफ कर देना। मैं यह नहीं कर पाई। ये हमारे रिश्ते का अंत था। आप लोग अच्छे हैं, हमेशा सपोर्ट किए, मुझसे हमेशा प्यार किया, लेकिन मेरा समय अब खत्म हो चुका है। ऐसा समझिए कि माता रानी ने बस 18 साल के लिए ही मुझे भेजा था। इतने साल मेरे लिए स्वर्ग था, मुझे आप लोगों के रूप में भगवान जो मिल गए थे। आप लोग मत रोना।आपने मुझे बहुत प्यार दिया। मैं आपके सपने पूरे नहीं कर पाई। आप लोग छोटी का ख्याल रखना।वो जरूर आपके सपने पूरे करेगी। आपकी प्यारी बेटी - अदिति।
अदिति का इस तरह से अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर लेना ख़बर मात्र नहीं है, ये सबक़ है माता पिता के लिए जो अपने बच्चों पर अपनी आकांक्षाओं का बोझ लाद देते हैं, ये सबक़ है उन बच्चों के लिए भी जिनके लिए महज़ एक आम सी परीक्षा ज़िंदगी से बड़ी हो जाती है। शायद इसीलिए प्रसिद्ध बिज़नेसमैन गौतम अड़ानी ने इस ख़बर को देखकर दुख तो जताया ही साथ ही देशवासियों को एक बहुत अच्छा संदेश भी दिया। गौतम अड़ानी ने लिखा- अपेक्षाओं के बोझ तले दबकर एक होनहार बेटी का यूं चले जाना हृदयविदारक है।जीवन किसी भी परीक्षा से बड़ा होता है- यह बात अभिभावकों को खुद भी समझनी होगी और बच्चों को भी समझानी होगी। मैं पढ़ाई में बहुत सामान्य था। पढ़ाई एवं जीवन में कई बार असफल भी हुआ, लेकिन हर बार जिंदगी ने नया रास्ता दिखाया।मेरी आप सभी से बस इतनी सी विनती है - असफलता को कभी आखिरी मंज़िल न समझें। क्योंकि ज़िंदगी हमेशा दूसरा मौका देती है!
सिर्फ़ अडानी ही नहीं, जाने माने पत्रकार अजीत भारती ने लिखा- प्रिय नरेंद्र मोदी जी, तंत्र ने अदिति मिश्रा की हत्या कर दी। सामान्य वर्ग के कटऑफ से दो कम पाने पर, उसे भविष्य अंधकारमय दिखा, माता-पिता को त्याग कर ईश्वर के पास चली गई। वहीं इससे तीस कम लाने वाले IIT में जाएँगे, चार वर्ष बर्बाद करेंगे, फेल होते रहेंगे और अंततः पास हो कर भी नौकरी नहीं कर पाएँगे। मैं शिक्षा में आरक्षण के विरोध में नहीं हूँ, परंतु 92 और 62 के अंतर के विरोध में हूँ। जब ऐसे ‘अवसर’ का आँकड़ा, 90% को हर वर्ष अनुत्तीर्ण होने के लिए दिया जाता रहेगा, तो यह अंतर कभी नहीं घटेगा। भारत में हर घंटे एक छात्र/छात्रा आत्महत्या करते हैं। इनमें से बहुत अदिति की तरह के होते हैं, जिन्हें पता होता है कि तंत्र उनकी सहायता नहीं कर सकता। जो हर दिन यह देखते हैं कि नहीं पढ़ने वाले, लिस्ट में नाम देख कर नाचते हैं, और पढ़ने वाले पंखे में लटक कर जान दे देते हैं।
अदिति मिश्रा की मौत की ख़बर से हर कोई स्तब्ध है, अब ये बच्चों के साथ साथ माता पिता की भी ज़िम्मेदारी बन जाती है अपने बच्चों की परवरिश में इस बात को रचा बसा देना कि कि महज़ कुछ टेस्ट, या कुछ परीक्षा या चंद नंबर ये तय नहीं करते कि वो ज़िंदगी में नाकामयाब ही होंगे।
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