बिहार सरकार की कैबिनेट में BJP का प्रभाव बढ़ाना CM नीतीश की मजबूरी या जरूरत ?
एक सवाल यह भी उठता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा नेताओं को तरजीह देकर बड़ा दिल दिखाया है या फिर उनकी सियासी मजबूरी है भारतीय जनता पार्टी को आगे करना ?

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कैबिनेट का बुधवार को विस्तार हुआ। कैबिनेट विस्तार में कुल सात विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि नीतीश कुमार की अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के किसी भी नेता को मंत्री पद नहीं मिला जबकि भाजपा के 7 नेताओं को मंत्री बनाया गया। मंत्रिमंडल विस्तार को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि बिहार सरकार में अब भारतीय जनता पार्टी का वजन बढ़ चुका है। हालांकि इन सब से इतर एक सवाल यह भी उठता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा नेताओं को तरजीह देकर बड़ा दिल दिखाया है या फिर उनकी सियासी मजबूरी है भारतीय जनता पार्टी को आगे करना ?
बीजेपी का कितना बढ़ा प्रभाव ?
बुधवार की शाम पटना के राजभवन में नए मंत्रियों को शपथ दिलाया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और सम्राट चौधरी भी राजभवन में मौजूद रहे। ऐसे में अगर बिहार मंत्रिमंडल पर अगर नजर डाले तो अब बिहार के एनडीए सरकार में भाजपा कोटे के कुल मंत्रियों की संख्या 21 हो चुकी है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह मंत्रिमंडल विस्तार सिर्फ और सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव को मध्य नजर रखते हुए किया गया है, जो 7 नए मंत्री बनाए गए हैं। उनकी जाति, राजनीतिक दखल, कितना है और कोई महिला को क्यों मौका मंत्री भी बनाया गया, सीमांचल से कौन, मिथिलांचल से कौन मंत्री बना और किस वजह से मौका मिला। यह सब एक बड़ा सवाल है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में एनडीए की सरकार चल रही है और यह भी माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव एनडीए बिहार में नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ेगी तो मंत्रिमंडल विस्तार में उनकी पार्टी के एक भी नेता मंत्री क्यों नहीं बना यह सबसे बड़ी राजनीतिक चर्चा का विषय बनी हुई है।
किन वजहों से माने होंगे नीतीश
मंत्रिमंडल विस्तार में केवल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को जगह देने के पीछे की वजह यह भी मानी जा रही है कि नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच कोट का बंटवारा। जिस पार्टी के जितने विधायक उसके उतने मंत्री। इस तरह से देखा जाए तो बिहार में बीजेपी के ज्यादा विधायक है तो सरकार में उसके मंत्री भी ज्यादा होंगे लेकिन ऐसे में सवाल यह भी है कि अगर नीतीश इस फार्मूले पर बात नहीं मानते तो क्या होता। दरअसल, बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार पिछले 1 साल से प्रस्तावित था लेकिन किन्हीं कारणों के चलते मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा था। इस बीच बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा और बाद में फिर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का पटना दौरा। इसके बाद ऐसा क्या हुआ कि नीतीश कुमार मान गए और मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया। इस सवाल को अगर सरल शब्दों में समझे तो आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागलपुर की रैली पर ध्यान देना चाहिए। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में नीतीश कुमार को लाडला मुख्यमंत्री कहा था। पीएम मोदी की इस बात ने नीतीश कुमार संतुष्ट कर दिया होगा कि भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें बिहार में बड़े भाई की भूमिका दे दी है तो उन्हें भी बड़ा दिल दिखाते हुए कुछ करना पड़ेगा। नहीं तो बीजेपी नाराज भी हो सकती है। इसके बाद जेपी नड्डा और नीतीश कुमार की मुलाकात हुई और अब बिहार में मंत्रिमंडल की तस्वीर पूरे तरीके से बदल गई है।
क्या नीतीश कुमार के पास था कोई और विकल्प
मंत्रिमंडल के विस्तार में केवल बीजेपी के नेताओं को मौका देना यह ऊपरी तौर पर जितना आसान दिख रहा है उतना था नही। यह फैसला कहीं ना कहीं बिहार के मुख्यमंत्री के लिए मजबूरी के तौर पर भी देखा जा रहा है क्योंकि अगर नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी की बात नहीं मानते और उनके नेताओं को मंत्री नहीं बनते तो आगामी विधानसभा चुनाव में बातचीत थोड़ी बिगड़ने के आसार भी थे, क्योंकि बीजेपी बिहार में अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने में सक्षम है लेकिन नीतीश कुमार नहीं। नीतीश कुमार बिहार में अकेले सरकार बन पाने के स्थिति में नहीं है हालाँकि वह दूसरों का खेल बिगड़ तो सकते हैं लेकिन अपना काम बन भी नहीं सकते। ऐसे में उनके पास सिर्फ दो विकल्प थे या तो वह भारतीय जनता पार्टी की हर बात माने या फिर एक बार फिर से वह महागठबंधन का हिस्सा बन जाए। शायद यही वजह रही कि वह भारतीय जनता पार्टी की बात मानते हुए उनके नेताओं को मंत्री बनाए हैं क्योंकि अगर वह फिर से महा गठबंधन का हिस्सा बनने की सोचेंगे तो उन्हें ही हिचकना पड़ेगा। नीतीश कुमार पहले भी कई बार पलटी मार चुके हैं। और वह जितनी बार पाल पलटते हैं उतनी बार वह खुद को कमजोर कर लेते है। ऐसे में नीतीश कुमार अगर विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले अगर पाला बदलते तो यह उनकी राजनीतिक साख को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता। नीतीश कुमार मौजूदा समय में अपने बेटे निशांत को राजनीति में सक्रिय करने की कोशिश में लगे हुए हैं और बिहार में इन दोनों निशांत का मीडिया में दिए जाने वाला हर बयान सुर्खियां बटोर रहा है। इसे नीतीश कुमार द्वारा अपने बेटे की सॉफ्ट लॉन्चिंग के तौर पर भी देखा जा रहा है।
नीतीश के मन में क्या किसी को नही पता
नीतीश कुमार पिछले 19 सालों से लगातार बिहार की सत्ता संभाल रहे है। ऐसे में उनके मन में क्या और कब चलता है यह कोई नहीं समझ पाता। लोकसभा चुनाव से लेकर बिहार में मंत्रिमंडल के विस्तार तक नीतीश कुमार ने बीजेपी की हर बात मानकर एक मानसिक दबाव भारतीय जनता पार्टी पर बना ही दिया है। इस तरह वो बीजेपी के जरिए वह चिराग पासवान को इस बात के लिए राजी करने में कामयाब हो सकते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में जेडीयू के सामने चिराग पासवान अपने उम्मीदवार न उतारें। दूसरा यह भी की बिहार में जब विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में सीट का बंटवारा होगा तो नीतीश कुमार इन बातों का हवाला देते हुए अधिक सेट की डिमांड रख सकते है।