'भारत कभी बंटा हुआ था ही नहीं…', RSS चीफ मोहन भागवत ने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए खोली अंग्रेजों की पोल
नागपुर के राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव में मोहन भागवत ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत की एकता को लेकर झूठा नैरेटिव फैलाया था. उन्होंने गांधी की ‘हिंद स्वराज’ का हवाला देते हुए बताया कि भारत हमेशा से एक राष्ट्र रहा है और इसकी एकता किसी सत्ता से नहीं, बल्कि साझा जीवन-दर्शन से बनी है.
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत नागपुर में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने ऐसी बातें कही, जिन्होंने वहां मौजूद हर व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर दिया. उनका संबोधन सिर्फ एक भाषण नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा, उन्होंने अपनी बातों के जरिए उसके इतिहास और भविष्य को समझने का एक अनोखा प्रयास था. संघ प्रमुख ने अपने संबोधन की शुरुआत महात्मा गांधी की प्रसिद्ध कृति हिंद स्वराज का उल्लेख करते हुए की.
अंग्रेजों ने फैलाया झूठा नैरेटिव: मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि गांधी ने एक सदी पहले ही यह सच सामने रख दिया था कि अंग्रेजों ने भारत के बारे में झूठा नैरेटिव फैलाया था कि यहां कभी एकता थी ही नहीं. भागवत ने जोर देकर कहा कि यह दावा पूरी तरह से आधारहीन था और इसे भारतीयों को भ्रमित रखने और शासन पर पकड़ मजबूत करने के लिए रचा गया था. संघ प्रमुख ने गांधी का उद्धरण पढ़ते हुए बताया कि, 'अंग्रेजों ने हमें सिखाया कि हम एक राष्ट्र नहीं थे और राष्ट्र बनने में सदियां लगेंगी. जबकि सच यह है कि हम हमेशा से एक राष्ट्र थे.' उनका कहना था कि भारत को जोड़ने वाली कड़ी न कोई सत्ता थी और न ही कोई राजनीतिक ढांचा, बल्कि एक साझा जीवन-दर्शन था, जिसने हजारों वर्षों से इस देश को एकता की डोर में बांधे रखा है.
भारत भाईचारा बढ़ाने वाला देश
अपने संबोधन के दौरान RSS प्रमुख ने भारत की ‘राष्ट्र’ अवधारणा की तुलना पश्चिमी राष्ट्र-राज्य मॉडल से भी की. उन्होंने कहा कि पश्चिम में राष्ट्र बनने का अर्थ एक केंद्रीकृत सत्ता और राजनीतिक व्यवस्था से है, जबकि भारत में राष्ट्रत्व सांस्कृतिक चेतना से पैदा हुआ है. उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा विविधता में एकता है और यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति भी रही है. भागवत ने यह भी कहा कि भारत विवाद से दूर रहने और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला देश रहा है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम नेशनलिज़्म शब्द की जगह राष्ट्रीयता शब्द का उपयोग करते हैं, क्योंकि अत्यधिक राष्ट्रवादी अहंकार ने दो विश्व युद्धों को जन्म दिया था. भारत का राष्ट्रत्व कभी अहंकार से नहीं, बल्कि आपसी जुड़ाव और प्रकृति के साथ सहअस्तित्व से विकसित हुआ है.
आधुनिक तकनीक का रखें ध्यान
कार्यक्रम में युवाओं के सवालों का जवाब देते हुए मोहन भागवत ने तकनीक और AI पर भी खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि तकनीक को रोका नहीं जा सकता, लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि इंसान उसका मालिक रहे, उसका दास नहीं. AI का उपयोग मानवता के लाभ के लिए होना चाहिए, न कि उसके नुकसान के लिए. वैश्वीकरण पर विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया अभी असली वैश्वीकरण देख ही नहीं रही. उनके अनुसार, सच्चा वैश्वीकरण भारत ही देगा, जिसे हम ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के रूप में जानते हैं, यानी दुनिया एक परिवार है.
बताते चलें कि राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव का यह सत्र सिर्फ भाषणों का सिलसिला नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक यात्रा और आने वाले समय की दिशा को समझने का एक मौका था. संघ प्रमुख की बातों ने इस बात पर जोर दिया कि भारत की ताकत उसकी सांस्कृतिक पहचान में छिपी है, जिसने इस देश को सदियों से मजबूती के साथ खड़ा रखा है.
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