तो सबक सीख जाता ड्रैगन...भारत-चीन युद्ध में नहीं थी वायुसेना के इस्तेमाल की इजाजत, CDS अनिल चौहान का बड़ा खुलासा
लेफ्टिनेंट जनरल थोराट ने 1962 के युद्ध के दौरान चीनी सेना के आक्रमण के खिलाफ भारतीय वायुसेना के इस्तेमाल के बारे में सोचा था, लेकिन तत्कालीन सरकार (नेहरू) ने इस तरह के कदम की अनुमति नहीं दी. वायु सेना के इस्तेमाल और इसके फायदे पर CDS अनिल चौहान ने बड़ा खुलासा किया है.
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चीन के साथ हुए युद्ध को भारत कभी भूल नहीं सकता है. इस दौरान नीति, नीयत और निजाम सब की कमी खली और देश को शर्मसार होना पड़ा. इसी इतिहास के पन्नों को भारत के सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने फिर से पलटा है. CDS चौहान ने कहा कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अगर बखूबी रूप से भारतीय वायुसेना का इस्तेमाल होता तो PLA यानी कि चीन का आक्रमण काफी धीमा पड़ जाता. हालांकि उन्होंने कहा कि अगर एयरफोर्स के इस्तेमाल का फैसला लिया जाता तो उस दौरान इस कदम को 'तनाव बढ़ाने वाला' एस्केलेशन कहा जा सकता था, लेकिन अब मौहाल और परिस्थितियां अलग हैं. अब ऐसा नहीं है, जैसा कि हमने 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान देखा.
चीन के साथ करीब 63 साल पहले हुए युद्ध पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि उस समय अपनाई गई अग्रिम नीति (Forward Policy) को लद्दाख और नेफा (उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी, जिसे अब अरुणाचल प्रदेश कहा जाता है) पर एक जैसी तरह से लागू नहीं किया जाना चाहिए था. इस संबंध में उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि दोनों क्षेत्रों में विवाद का अपना इतिहास है और दोनों की परिस्थिति भी अलग है, भूगोल भी पूरी तरह अलग है, ऐसे में एक जैसी रणनीति अपनाना गलती थी. CDS ने यह भी कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा हालात बदल चुके हैं और अब युद्ध का स्वरूप भी पहले जैसा नहीं रहा.
'फॉरवर्ड पॉलिसी को कॉमनली लागू करना गलती थी!'
फॉरवर्ड पॉलिसी भारतीय सेना द्वारा गढ़ा गया एक शब्द था जिसका प्रयोग भारत सरकार द्वारा चीन द्वारा कब्ज़ा किए गए विवादित क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए फॉरवर्ड पोस्ट (अग्रिम चौकियां) स्थापित करने के निर्देश के लिए किया गया था. विशेष रूप से ढोला पोस्ट, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो ही 1962 के भारत-चीन युद्ध का एक प्रमुख कारण बना. हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है.
आपको बता दें कि जनरल चौहान ने ये टिप्पणी पुणे में दिवंगत लेफ्टिनेंट जनरल एस पी पी थोराट की संशोधित आत्मकथा-'रेवेली टू रिट्रीट' के विमोचन के मौके पर अपने प्री रिकॉर्डेड वीडियो संदेश में की. यहां ये बताना जरूरी है कि लेफ्टिनेंट जनरल थोराट भारत-चीन युद्ध से पहले पूर्वी कमान के 'जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ' थे.
वायु सेना के इस्तेमान की PM नेहरू ने नहीं दी इजाजत!
सीडीएस ने इस बारे में खुलासा करते हुए कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल थोराट ने चीनी सेना के आक्रमण के खिलाफ भारतीय वायुसेना के इस्तेमाल के बारे में सोचा था, लेकिन तत्कालीन सरकार (नेहरू) ने इस तरह के कदम की अनुमति नहीं दी. वायु सेना के इस्तेमाल और इसके फायदे पर CDS चौहान ने कहा कि 1962 के युद्ध के दौरान इससे काफी फ़ायदा ज्यादा होता, नुकासन को भी मिनिमाइज किया जा सकता था. सीडीएस ने आगे कहा कि हवाई शक्ति के इस्तेमाल से चीनी आक्रमण की गति काफ़ी धीमी हो जाती.
अब चीजें बदल गई हैं!
उन्होंने इस दौरान कहा कि "वायु सेना के एक्शन से थल सेना को तैयारी के लिए काफ़ी समय मिल जाता. उन दिनों, मुझे लगता है, वायु सेना के इस्तेमाल को तनाव बढ़ाने वाला माना जाता था. मुझे लगता है कि अब यह सच नहीं है, और ऑपरेशन सिंदूर इसका एक सटीक उदाहरण है."
सीडीएस जनरल अनिल चौहान का बढ़ा कार्यकाल!
उनकी चीन के साथ युद्ध में वायुसेना के इस्तेमाल को लेकर दिए गयए बयान के ठीक बाद ही केंद्र सरकार ने बुधवार को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) और सैन्य मामलों के विभाग के सचिव के रूप में जनरल अनिल चौहान का कार्यकाल 30 मई, 2026 तक बढ़ा दिया. रक्षा मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) ने 24 सितंबर 2025 को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के रूप में जनरल अनिल चौहान के सेवा विस्तार को मंजूरी दे दी है. वे 30 मई 2026 तक या अगले आदेश तक भारत सरकार के सैन्य मामलों के विभाग के सचिव के रूप में भी कार्य करेंगे."
बिपिन रावत के बाद CDS बने थे जनरल चौहान
गौरतलब है कि अपने पूर्ववर्ती जनरल बिपिन रावत के हेलीकॉप्टर दुर्घटना में आकस्मिक निधन के बाद, वे 28 सितंबर, 2022 को सीडीएस बने थे. उन्हें सीडीएस के रूप में सेवा देने के लिए सेवानिवृत्ति से वापस बुलाया गया था, और वे पहले तीन स्टार नियुक्त अधिकारी हैं, यह भूमिका पारंपरिक रूप से चार स्टार अधिकारी को दी जाती है.
पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं CDS चौहान
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के रहने वाले जनरल चौहान इसी वर्ष 58वें पाठ्यक्रम के भाग के रूप में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खड़कवासला (एनडीए) में शामिल हुए. इसके बाद, वे 1980 में 68वें कोर्स के तहत भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून (आईएमए) में शामिल हुए. वे डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन से भी स्नातक हैं.
जनरल चौहान 1981 में भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त हुए थे और उनका एक विशिष्ट और शानदार करियर रहा है, जिसमें उन्होंने प्रमुख कमांड और स्टाफ नियुक्तियां की हैं.
अपने शानदार करियर में, उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में व्यापक रूप से काम किया है. इसके अलावा, जनवरी 2018 में, उन्हें सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) नियुक्त किया गया, जिस दौरान उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 2019 के बालाकोट हवाई हमले के क्रियान्वयन की निगरानी की.
जनरल चौहान को भारतीय सेना के प्रति उनकी अनुकरणीय सेवाओं के लिए परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, सेना पदक और विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया.
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