देवभूमि से जुड़े दिल्ली हमले के तार, दो इमामों से NIA की पूछताछ, क्या उत्तराखंड बन रहा स्लीपर सेल का नया टारगेट?
दिल्ली में हुए ब्लास्ट की जांच के दौरान उत्तराखंड के हल्द्वानी और नैनीताल में सुरक्षा एजेंसियों की एंट्री ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. 20 घंटों तक चली पूछताछ, डिजिटल डिवाइस की जांच और अचानक हुई कार्रवाई…क्या ये किसी बड़ी साज़िश की तरफ इशारा है या महज़ एक संयोग? इस हाई-सिक्योरिटी ऑपरेशन के बाद सवाल ये उठने लगे हैं कि देश का सबसे राष्ट्रवादी माना जाने वाला राज्य उत्तराखंड में आतंकवाद के बीज कौन बो रहा है.
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एक झटका, एक डर, एक सन्नाटा, और अब एक खौफनाक शक…दिल्ली का बम धमाका, एक ऐसा धमाका जो राजधानी के दिल पर हुआ…अब उसकी परछाई देवभूमि उत्तराखंड की वादियों तक पहुंच चुकी है. ये कोई मामूली खबर नहीं है. ये कोई लोकल चौक-चौराहे की बात नहीं है. जी हां, वो राज्य, वो जमीन जहां का हर बच्चा देश पर अपनी जान छिड़कता है, जहां के लगभग घरों से कोई न कोई सेना में है, अर्धसैनिक बलों में है, उस राष्ट्रवादी जज्बे वाले राज्य में जब जांच एजेंसियों के कदम पड़ते हैं, तो समझ लीजिए, मामला सिर्फ “संदेह” का नहीं रह जाता, मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का बन जाता है. यानी कि दिल्ली बम ब्लास्ट की जांच में जुटी केंद्रीय एजेंसियों मसलन NIA की जांच की आंच अब हल्द्वानी और नैनीताल तक पहुंच चुकी हैं.
क्या है पूरा मामला?
आपको बता दें कि शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात. करीब तीन बजे जब पूरी दुनिया सो रही थी. तभी वनभूलपुरा इलाके में नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी यानी कि NIA दिल्ली पुलिस और उत्तराखंड STF की टीम के साथ पहुंचती है. दो लोगों को हिरासत में लिया जाता है. करीब 20 घंटे की लंबी पूछताछ शुरू होती है, मोबाइल फोन खंगाले जाते हैं, लैपटॉप्स की स्कैनिंग होती है, कॉल डिटेल्स और चैट हिस्ट्री की परत-दर-परत जांच होती है.
इन जांच पड़तालों के बीच सामने आता है बनभूलपुरा का एक नाम, जहां इससे पहले भी कई बार माहौल तनावपूर्ण रहा है. जिस एरिया को सेंसेटिव कहा जाता रहा है. इस दौरान शक की सुई घूमती है मस्जिद के इमाम की ओर. फिर शुरू होती है मैराथन पूछताछ.
इमाम से हुई 20 घंटे की पूछताछ!
सूत्रों का दावा है कि जिनसे पूछताछ हुई, उनमें एक स्थानीय मस्जिद का इमाम और उसका एक सहयोगी शामिल था. कहा गया कि दोनों का संबंध संदिग्ध नेटवर्क से हो सकता है. यहां तक कि पाक-प्रायोजित संगठनों के कनेक्शन की भी बात सामने आती है. हालांकि ये बेहद अहम है कि करीब 20 घंटे की पूछताछ के बाद एजेंसियों ने कागज़ी कार्रवाई के बाद, दोनों को रात करीब 10 बजकर 45 मिनट पर छोड़ दिया गया. हालांकि आगे भी पूछताछ और जांच की संभावना बनी हुई है.
‘खत्म नहीं हुए सवाल… संदेह और गहरे हो गए’
पूरी पूछताछ के बाद सवाल ये उठता है कि अगर कुछ नहीं था तो NIA को यहां आने की ज़रूरत क्यों पड़ी? इतनी बड़ी एजेंसी सिर्फ “शक” के आधार पर देवभूमि के भीतर क्यों दाखिल हुई?
दूसरा कि ये उत्तराखंड जैसे राष्ट्रवादी राज्य में देश से गद्दारी और दुश्मनी की सोच को कौन खाद पानी दे रहा है?
जांच का अगला पड़ाव नैनीताल
शांत पहाड़, सैलानियों से भरा शहर, लेकिन इसी शहर के तल्लीताल इलाके में एक मस्जिद, जहां के इमाम से भी पूछताछ हुई है. इतना ही नहीं, उसकी पत्नी और बेटे के भी अलग-अलग बयान दर्ज किए जाते हैं. अब सवाल ये है कि एक ही केस में दो शहर, दो अलग-अलग इमाम और दिल्ली ब्लास्ट की जांच. ऐसे में कुछ सवालों के जवाब खोजने जरूरी हैं.
क्या ये सिर्फ इत्तेफाक है? या ये किसी बड़े नेटवर्क का हिस्सा है?
क्या उत्तराखंड को अब स्लीपर सेल्स की सेफ ज़ोन समझा जा रहा है?
क्या धार्मिक पहचान की आड़ में देश की सुरक्षा को चुनौती दी जा रही है?
क्या देवभूमि की शांति को किसी साजिश के तहत निशाना बनाया जा रहा है?
हल्द्वानी और नैनीताल में इमाम से पूछताछ के बाद एक और जानकारी सामने आ रही है कि दिल्ली ब्लास्ट मामले में 3 डॉक्टर और एक मौलवी की हिरासत 10 दिन बढ़ाई जा चुकी है. यानी मामला केवल एक आदमी, एक बैग या एक गाड़ी तक सीमित नहीं है. तार कहीं ज्यादा दूर तक फैले हुए हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब एजेंसियों को कोई सीधा सबूत नहीं मिला तो क्या अब ये मामला धीरे-धीरे ठंडा कर दिया जाएगा? या फिर आने वाले दिनों में और बड़ी गिरफ्तारियां होंगी?
क्या सच अभी सामने आना बाकी है? या फिर किसी की ढाल बनकर चुप हो जाएंगे ये सवाल? देवभूमि सिर्फ एक राज्य नहीं है ये आस्था की जमीन है, शांति की पहचान है. अगर यहां भी आतंकी कनेक्शन की हल्की-सी भी आहट है, तो ये पूरे देश को चौकन्ना कर देने के लिए काफी है.
आपको बताएं कि इस पूरी तस्वीर में एक बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि कैसे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार जिस तरह से लगातार वेरिफिकेशन ड्राइव, घुसपैठ पहचान अभियान, और अवैध कब्जों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है वो अब इस तरह के संवेदनशील ऑपरेशन में अहम भूमिका निभा रही है. राज्य में चल रहा व्यापक सत्यापन अभियान केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह डेमोग्राफी बदलने वालों की कमर तोड़ने का एक मजबूत हथियार बन चुका है.
क्या है धामी सरकार का व्यापक सत्यापन अभियान ?
बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की शिनाख्त
फर्जी दस्तावेजों पर रह रहे लोगों की पहचान
‘लैंड जिहाद’ के नाम पर की जा रही जमीनों की घुसपैठ पर जो बुलडोज़र कार्रवाई हो रही है. यानी कि इस ड्राइव के माध्यम से केवल जमीन खाली नहीं हो रही, एक संभावित खतरे को जड़ से खत्म की जा रही है. यही वजह है कि जब दिल्ली ब्लास्ट जैसे मामलों में कोई कनेक्शन उत्तराखंड तक पहुंचता है, तो एजेंसियों को यहां पहले से तैयार एक साफ और मजबूत डाटा नेटवर्क, स्थानीय प्रशासन का फुल सपोर्ट, और एक ज़ीरो टॉलरेंस मॉडल मिलता है.
यानी साफ है कि जो भी देवभूमि की शांति से खेलने की कोशिश करेगा, जो भी यहां की जनसांख्यिकी से छेड़छाड़ करेगा, जो भी धर्म, पहचान या नकाब की आड़ में देश विरोधी एजेंडे पर काम करेगा, धामी सरकार की नीति उसके खिलाफ दीवार बन चुकी है. और यही सख्ती आने वाले दिनों में कई बड़े खुलासों की वजह भी बन सकती है. इतना ही नहीं देश की अखंडता को खंड-खंड करने की कोशिशों को मोदी सरकार कामयाब नहीं होने देगी.
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